जल ही जीवन है

जल ही जीवन है

जल ही जीवन है

शांत, स्वच्छ, निर्मल धारा, कभी है चंचल चितवन
जल, नीर, पानी, कह लो, या कह लो इसको जीवन ।।

धरती के गर्भ में पड़ते ही, हुआ जीवन का स्फूटन
हृदय धरा का धड़क उठा, शुरू हुआ स्पंदन ।।

झरने, झीलें, पोखर बने, बने बाग, वन, उपवन
हरियाली की चूनर ओढ़े, वसुंधरा बनी नव दुल्हन ।।

जलचर, थलचर, नभचर, और प्रकृति का कण-कण
सदियों से जल ही बना हुआ है, सृष्टि का आलंबन ।।

नीर बिना खो ही देगी, अवनि अपना यौवन
जल बिना संभव नहीं, भूमि पर कहीं जीवन ।।

बहुमूल्य यह निधि हमारी, करें आज यह चिंतन
बूंद-बूंद कर इसे सहेजें, क्योंकि जल ही तो है जीवन ।।
रचना चेतन

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