खुद को है -मनीभाई ‘नवरत्न’

यहाँ पर मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित खुद को है आप पढ़ेंगे आशा आपको यह पसंद आएगी

खुद पर कविता -मनीभाई ‘नवरत्न’

खुद को है

जिन्दगी के हरेक  दंगल में …
लड़ना खुद को है।
   भिड़ना खुद को है।
  टुटना खुद को है।
  जुड़ना खुद को है।

खुद को है -मनीभाई’नवरत्न’

ये वक्त,बेवक्त माँगती हैं कुर्बानियाँ…
  बिखरना खुद को है।
  सिसकना खुद को है।
  संभलना खुद को है।
  उठना खुद को है।

यूँ ही नहीं, कोई इतिहास के पन्नों में …
    लुटाना खुद को है।
    झोंकना खुद को है।
  तपाना खुद को है।
   निखरना खुद को है।

खुदा के रहमों करम हम बंदों पे सदा से …
   समझना खुद को है।
  पहचानना खुद को है।
  मानना खुद को है।
    जानना खुद को है।

✍मनीभाई”नवरत्न”

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