खुद को है -मनीभाई ‘नवरत्न’

यहाँ पर मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित खुद को है आप पढ़ेंगे आशा आपको यह पसंद आएगी

खुद पर कविता -मनीभाई ‘नवरत्न’

खुद को है

जिन्दगी के हरेक  दंगल में …
लड़ना खुद को है।
   भिड़ना खुद को है।
  टुटना खुद को है।
  जुड़ना खुद को है।

खुद को है -मनीभाई’नवरत्न’

ये वक्त,बेवक्त माँगती हैं कुर्बानियाँ…
  बिखरना खुद को है।
  सिसकना खुद को है।
  संभलना खुद को है।
  उठना खुद को है।

यूँ ही नहीं, कोई इतिहास के पन्नों में …
    लुटाना खुद को है।
    झोंकना खुद को है।
  तपाना खुद को है।
   निखरना खुद को है।

खुदा के रहमों करम हम बंदों पे सदा से …
   समझना खुद को है।
  पहचानना खुद को है।
  मानना खुद को है।
    जानना खुद को है।

✍मनीभाई”नवरत्न”

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

This Post Has 0 Comments

  1. Akil khan

    Very nice sir ji.

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