परम्परानुसार इस दिन प्रतीकात्मक उपहार देने तथा कुछ परम्परागत महिला कार्य जैसे अन्य सदस्यों के लिए खाना बनाने और सफाई करने को प्रशंसा के संकेत के रूप में चिह्नित किया गया था। मातृ दिवस, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में कई देशों में 8 मार्च को मनाया जाता हैं।
मुख्य बिन्दु :-
माँ पर दोहे- प्रेमचन्द साव “प्रेम”
ममतामयी ममत्व की,है पावन प्रतिरूप।
श्रेष्ठ सदा संसार में,माँ का प्यार अनूप।।१।।
माँ से बढ़़कर कब कहाँ,है कोई भगवान।
माँ ही है संसार में,ममता की पहचान।।२।।
माँ निज बच्चों के लिए,सदा लगाकर प्राण।
जीवन के दुखदर्द से,नित करती हैं त्राण।।३।।
माँ ही सुख की छाँव है,माँ ही सरस फुहार।
माँ के आशीर्वाद बिन,कब हो बेड़ापार ?।।४।।
क्या समझे इस बात को,जग में जो मतिहीन।
जिनकी माँ होती नहीं,वही मनुज है दीन।।५।।
माँ ही है गुरुवर प्रथम,जिनसे पाया ज्ञान।
कृपा मिले जब मातु का,मानव बना महान।।६।।
माँ मंगलमय मूर्त बन,सदा करे उपकार।
पीड़ा पीकर भी भरे,बच्चों में संस्कार।।७।।
बेटे को जिनसे मिला,जग में प्यार अकूट।
उस माता को त्याग दी,हो माया वशीभूत।।८।।
बूढ़ी माँ क्या मांँगती,दो रोटी अरु दाल।
पुत्र,वधु समझे उसे,जीवन का जंजाल।।९।।
जिस माँ ने परिवार का,सदा उठाया भार।
नहीं सके उसको जतन,बेटे मिलकर चार।।१०।।
*”प्रेम”* कभी तुम मातु का,मत करना अपमान।
माँ रूठे तब रूठता,इस जग का भगवान।।११।।
*प्रेमचन्द साव “प्रेम”,बसना, महासमुंद*
*छत्तीसगढ़,8720030700*
मातृपितृ पूजा दिवस भारत देश त्योहारों का देश है भारत में गणेश उत्सव, होली, दिवाली, दशहरा, जन्माष्टमी, नवदुर्गा त्योहार मनाये जाते हैं। कुछ वर्षों पूर्व मातृ पितृ पूजा दिवस प्रकाश में आया। आज यह 14 फरवरी को देश विदेश में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में रमन सरकार द्वारा प्रदेश भर में आधिकारिक रूप से मनाया जाता है
मातृ दिवस पर दोहे- -गजेन्द्र हरिहारनो “दीप”
विषय :- माँ
विधा :- दोहा छंद
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आशीषों की पोटली , अनुपम माँ का प्यार ।
बिन माँगे मिलता मुझे , माँ का लाड़ दुलार ।
माँ से मिलता प्यार है , माँ से लाड़ दुलार ।
जीवन भर मिलता रहे , माँ से ये उपहार ।
हर पल हर क्षण हर घड़ी,रखती सबका ध्यान ।
माँ होती पहली गुरू , माँ ही है भगवान ।
ममता से ही सींचकर , पाले माँ परिवार ।
ख़ुशी बाँटने के लिए, सब कुछ देती वार ।
माँ की आँखें रो रही , वाणी देखो मौन ।
ऐसा वीर जवान फिर , देगा मुझको कौन ?
मां विषय पर दोहे
(1)
*हमे सुलाए सूख में*,मां गीले में सोय।
उसके इस उपकार का,मोल नही है कोय।
(2)
*माँ से अच्छा कौन है*,दुनिया में सरताज।
*सुंदरता में मंद है*,उससे भी मुमताज।।
(3)
दुनिया में निर्माण की, माता ही है मूल।
कृपा होय तो दूर हों, सकल जगत के शूल।
(4)
नहीं मातु बिन होत है, दुनिया का कल्याण।
चरणों मे सिर जा पड़े,सबका हो कल्याण।
©✍️रामेश्वर प्रसाद’करुण’,दौसा