मैं गुलाब हूं – रामबृक्ष

यह कविता गुलाब पर लिखी गई एक सामाजिक कविता है जिसमें गुलाब की तुलना मानव जीवन से की गयी है। जिस प्रकार गुलाब अपने गुणों के द्वारा सभी को प्रसन्न और खुश रखता है या विभिन्न उच्च व उचित या आदर्श स्थानों पर स्थान लेता है उसी प्रकार मानव को भी अपने उत्तम कार्यों के द्वारा उचित और उत्तम स्थान बनाना चाहिए

मैं गुलाब हूं – रामबृक्ष

गुलाब

मैं गुलाब हूं फूलों में,
रहता कृष्ण के झूलों में,
या वीर जवानों के पथ पर
या सुंदर बालों के जूड़ो में|

मेरा जन्म हुआ है कांटों में,
जीवन के विघ्न सा बाटो में,
वो चुभ जाए जो हिलूं जरा,
हूं जिह्वा जैसा दांतों में |

पंखुड़ियां रंग भरे कोमल,
ले भरी जवानी गातो में,
कोई विघ्न भला क्या कर सकता?
जब खिलूं हरे भरे पातों में।

मैं गुलाब ,कई रंगों में,
मन मीत मनोहर अंगों में,
मैं बिखेर खुशबू अपना,
जीवन जीता सानन्दो में।

फूलों में नाम मेरा पहला,
मैं प्रेम निशानी अलबेला,
वो प्यार में प्यारा बन जाता
कांटों में जीवन जीने वाला।

मेरा रूप गुलाबी गालों पर,
निखरे जस झूमती डालो पर,
तारीफ़ सदा होता मेरा,
मद मस्त जवानी हालो पर।

है प्रेम रंग से बड़ा कौन?
खिलते चेहरे को पढ़ा कौन?
मैं गुलाब तन मन का हूं,
ख़ुश रहो सदा न रहो मौन|

रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर
ग्राम-बलुआबहादुरपुर पोस्ट-रुकुनुद्दीनपुर जनपद-अम्बेडकरनगर (उत्तर प्रदेश) पिनकोड- 224186

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