मनीभाई नवरत्न के सेदोका
सेदोका – पंछी की दिशा
पंछी की दिशा
बता रही है सदा
होने को महानिशा।
लौट आओ रे
घर से जाने वालों
मंजिल बुला रही।
🖊मनीभाई नवरत्न
समुद्री हवा
समुद्री हवा
एक होके बूंदों से
बारिश की तीरों से
बरस रही
मदमस्त गिरि को
धीरे से घिस रही।
🖊मनीभाई नवरत्न
जूते
बिखरे हुए
कई अकेले जूते
हमसफ़र ढूँढे।
पुछता नहीं
कोई हाल उनकी
साथी न हो जिनकी।
🖊मनीभाई नवरत्न
दिन की शुरुआत
बड़ी मधुर
सुबह का भजन
दिन की शुरुआत
हंसते गाते
गुज़रे ये जिंदगी
इससे ज्यादा नहीं।
🖊मनीभाई नवरत्न
मान्यता
हिलता नहीं
जो निज मान्यता से।
धंस चुका जड़ सा।
नहीं सीखेगा,
उसने पर्दा डाला।
अपने ही आंखों में।
🖊मनीभाई नवरत्न
सूखती लता
लटकी हुई
सूखती लता संग
वो जीवन का फल
बेताब है वो
टूट जाने के लिए।
निहारने को कल।
🖊मनीभाई नवरत्न
ख्वाहिश
बैठा रहता
बेवजह गली में
सब हाल जानता
लिखता उसे,
किसी से न कहता
बस यही ख्वाहिश।
🖊मनीभाई नवरत्न
आकांक्षाएँ
मन में दबी
कुंठित आकांक्षाएँ
पनपती रहती
निकल आती
स्वप्न चलचित्र में।
सत्य का उजागर।
🖊मनीभाई नवरत्न
अनकही
मैंने समझा
जो वो कही नहीं थी।
पर क्यों मान लिया?
जैसे वो कही
और मैंने ही सुना
वो बातें अनकही।
🖊मनीभाई नवरत्न
चार मेंढक
चार मेंढक
जाने क्या बतियाते?
हर रोज टर्राते।
पास जाते ही
डबरे में कूदके
हर राज़ छिपाते।
🖊मनीभाई नवरत्न
पंछी की दिशा
पंछी की दिशा
बता रही है सदा
होने को महानिशा
ओ मेरे राही !
लौट आना तू घर
मंजिल बुला रही ।
🖊मनीभाई नवरत्न
समुद्री हवा
समुद्री हवा
एक होके बूंदों से
बारिश की तीरों से
बरस रही
मदमस्त गिरि को
धीरे से घिस रही।
🖊मनीभाई नवरत्न
फूल में शूल
फूल में शूल
बड़ी बात नहीं है
यही तो प्रकृति है।
अचंभित क्यों?
जीवन का रीत ये
है बड़ी सीख ये।
🖊मनीभाई नवरत्न
हवा में शोर
हवा में शोर
जैसे बावला हुआ
कुछ तो कह रहा।
बेजुबां नहीं
यही इसका ढंग है।
ये जीने का रंग है।
🖊मनीभाई नवरत्न
चमके पानी
चमके पानी
जैसे खिलखिलाती
हंसती-गाती-जाती।
उमंग भरी
मचलती सरिता।
सागर से मिलने।
🖊मनीभाई नवरत्न
इंसानियत
भरा पड़ा है
पत्थर से दुनिया
घर, देव, मंदिर।
इंसानियत
सब बेजान दिखे,
शक्ल है पत्थर सा।
🖊मनीभाई नवरत्न
बारिश
मिट्टी महके
बारिश बूंदे मिले,
जीवन खिल जाये।
धन्य हो धरा
बीज बने पादप
सहज स्वर्ग लाये।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – तुलसी चौरा
तुलसी चौरा
गृह सुधा कलश।
देव ग्राम सर्वस्व।
कल्प वृक्ष ये
पूर्ण मनोकामना
सुख, शांति, आरोग्य।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – गुलाबी शीत
निखार बसा
हर एक पग में।
ठंड आई जग में।
गुलाबी शीत
मन रखे गुलाब ।
चेहरा आफताब।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – वसंत ऋतु
वसंत ऋतु
कोयल कलरव
आम्रवृक्ष के बौर।
प्रेम मिलाप,
चितवन में छाई।
शोभा की अगुवाई।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – आंसू
वर्षा ही तो है
आंखों में आंसू आना
गालों का गीला होना।
कालिमा झर
निर्मल नभ सा हो
मन का हल्का होना।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – वैश्विक ताप
ग्रीष्म बताता
आनेवाला संकट
आ गई है निकट
संभल जाओ
वैश्विक ताप वृद्धि
मानव लगा बुद्धि।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – प्रकृति पुत्र
भोला कृषक
सच्चा प्रकृति पुत्र
नहा रहा स्वेद से।
जग के लिए
अपना जग भूला
धीरे धीरे वो घुला।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका- समय
सब जा फंसे
काम की ट्रेफिक में
बाह्यर्जगत पर।
चलती सदा,
घड़ी की टिक टिक
समय है आजाद।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – बच्चे
बच्चे बीज हैं,
संस्कार की खाद से
जब फसल पके।
साकार होते,
हर देखा सपना।
जीवन ये अपना।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका- गाँव
मुर्गे की बांग,
गइया की पुकार
पंछी के कलरव।
चले जा रहे,
विलुप्ति की दिशा में,
गाँव स्वर्ग बचाओ।
🖊मनीभाई नवरत्न
सेदोका – भीड़
खुद से मिलो
भीड़ से निकलके
जरा ठंडी सांस लो।
तेरी जिन्दगी
तेरे बिन अधुरा।
हो ले आज तू पूरा।
🖊मनीभाई नवरत्न
सन्यासी
कहाँ सन्यासी?
किस वन में स्थित
उनकी तपोभूमि?
बाना कौशेय
जग ने धरा जब,
अदृश्य हैं तब से।
मनीभाई नवरत्न छत्तीसगढ़