महंगाई
महंगी दालें क्यों रोज रुलाती।
सब्जी दूर खड़ी मुंह चढाती।।
अब सलाद अय्याशी कहलाता है,
महंगाई में टमाटर नहीं भाता है,
मिर्ची बिन खाए मुंह जलाती।।
मिट्ठे फल ख्वाबों में ही आते हैं,
आमजन इन्हें नहीं खरीद पाते हैं,
खरीदें तो नानी याद है आती।।
कङवे करेलों के सब दर्शन करलो,
आम अनार के फोटो सामने धरलो,
सुनके कीमत, भूख भाग जाती।।
कैसे होए गरीबों का गुजारा,
पेट पर पट्टी बांधना ही चारा,
पतीली चुल्हे पर न चढ पाती।।
सिल्ला’ से मिर्च मसाले विनोद करें,
एक आध दिन नहीं, रोज रोज करें,
खरददारी औकात बताती।।
विनोद सिल्ला, हरियाणा,
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