मनोरम छंद विधान
- मापनी – २१२२ २१२२
- चार चरण का छंद है
- दो दो चरण सम तुकांत हो
- चरणांत में ,२२,या २११ हो
- चरणारंभ गुरु से अनिवार्य है
- ३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य
- मापनी – २१२२, २१२२
कल
काल से संग्राम ठानो!
साहसी की जीत मानो!
आज आओ मीत सारे!
काल-कल बातें विचारे!
सोच ऊँची बात मानव!
भाव होवें मान आनव!
आज है तो कल रहेगा!
सोच कैसे जल बचेगा!
पुस्तकों से नेह जोड़ो!
वेद ग्रंथो को न छोड़ो!
भारती की आरती कर!
मानवी मन भाव ले भर!
कंठ मीठे गीत गाना!
आज को करलें सुहाना!
आज है तो मानले कल!
वायु नभ ये अग्नि भू जल!
चेतना मानव पड़ेगा!
आज से ही कल जुड़ेगा!
दूर दृष्टा सृष्टि पालक!
काल-कल के चक्र चालक!
आलसी क्यों हो पड़े जन!
आज ही कल खो रहे मन!
रुष्ट जन मन को मनाओ!
आज ही कल को जगाओ!
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आनव~मानवोचित
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान