मैं हूँ मोहब्बत – विनोद सिल्ला

मोहब्बत

मुझे
खूब दबाया गया
सूलियों पर
लटकाया गया
मेरा कत्ल भी
कराया गया
मुझे खूब रौंदा गया
खूब कुचला गया
मैं बाजारों में निलाम हुई
गली-गली बदनाम हुई
तख्तो-ताज भी
खतरा मानते रहे
रस्मो-रिवाज मुझसे
ठानते रहे
जबकि में एक
पावन अहसास हूँ
हर दिल के
आस-पास हूँ
बंदगी का
हसीं प्रयास हूँ
मैं हूँ मोहब्बत
जीवन का पहलू
खास हूँ।

विनोद सिल्ला©

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