मुझको तुम याद आये
खेतों में जब सरसों फूली,
परसा के दिन आये।
फागुन ने जब दस्तक दी तो,
मुझको तुम याद आये।
लगा चैत्र जब,ज्योत जले,
नववर्ष मनाने लोग चले।
वैसाखी की धूम मची तो,
मुझको तुम याद आये।
जेठ माह की तपती दोपहरी,
असाढ़ में गुरुपूर्णिमा आये।
सावन की जब झड़ी लगी तो,
मुझको तुम याद आये।
भादों आया तीज पर्व ले,
और गजानन घर-घर पूजे।
क्वांर माह जब माता विराजी,
मुझको तुम याद आये।
कार्तिक में फिर आयी दीवाली,
अगहन माता लक्ष्मी पधारीं।
रात पूस की जब ठिठुराई,
मुझको तुम याद आये।
आया माघ फिर सरसों फूली,
परसा के दिन आये।
फागुन ने जब दस्तक दी तो,
मुझको तुम याद आये।
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विजिया गुप्ता “समिधा”
दुर्ग-छत्तीसगढ़
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