नश्वर काया – दूजराम साहू “अनन्य “
कर स्नान सज संवरकर ,
पीहर को निकलते देखा ।
नूतन वसन किये धारण ,
सुमन सना महकते देखा ।
कुमकुम चंदन अबीर लगा ,
कांधो पर चढ़ते देखा ।
कम नहीं सोहरत खजाना ,
पर खाली हाथ जाते देखा ।
गुमान था जिस तन का ,
कब्र में उसे जाते देखा ।
कर जतन पाला था जिस को,
उसकों चिता पर चढ़ते देखा ।
स्वर्ण जैसे काया को ,
धूँ-धूँ कर जलते देखा ।
निवास -भरदाकला(खैरागढ़)
जिला – राजनांदगाँव (छ.ग.)
शरीर की नश्वरता पर बेहद सुंदर कविता
बहुत बढ़िया साहू जी
Bahut hi sundar…👏👏👏