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  • चाँद पर कविता

    चाँद पर कविता

    चाँद, पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है, जो रात के आकाश में एक चमकदार और मोहक वस्तु के रूप में चमकता है। इसकी सतह पर बहुत सारे गड्ढे, पर्वत और समतल क्षेत्र हैं, जो इसे एक अद्वितीय और सुंदर दृश्य प्रदान करते हैं। चाँद की उपस्थिति पर विभिन्न संस्कृतियों में गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ भी जुड़ी हैं। यह पृथ्वी पर ज्वार-भाटा के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और रात की सुंदरता को निखारता है।

    चाँद पर कविता

    चाँद बिखरता चाँदनी

    चाँद बिखरता चाँदनी,
    करता जग अंजोर।
    चंद्र कांति से नित लगे,
    अभी हुआ है भोर।।

    दुनिया भर से तम मिटा,
    चारों दिशा प्रकाश।
    नील गगन पर दिव्यता,
    आलोकित आकाश।।

    नवग्रह देव मयंक हैं,
    धरो मनुज तुम ध्यान।
    पूज्यनीय है परम प्रभु,
    चंद्र देव को मान।।

    शीतल पुंज प्रकाश से,
    नाद करे भू ताल।
    वही निशापति चाँद हैं,
    शोभित शंकर भाल।।

    सारे तारे देख लो,
    शशिधर दिव्य प्रकाश।
    किरणें उसके हैं लगे,
    लाल रंग आकाश।।

    ~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”
    रायपुर (छ.ग.)

    धवल चन्द्र रात्रि में

    सफेद चांद धवल चन्द्र रात्रि में
    आए जब श्वेत मेघों पे ,
    देखते ही बनता है नजारा
    चांदी जैसा मेघ चमकता
    लगता है बड़ा ही प्यारा ।
    खो जाता हूं मनोहर दृश्य में ।


    धवल चन्द्र रात्रि में
    आए जब श्वेत मेघों पे ।
    चंचल चितवन पंछी चकोरा
    देख चांद का रूप वो गोरा
    नजर कभी ढूंढने न देता
    घूरे बैठ अथक डाल पे ।

    धवल चन्द्र रात्रि में
    आए जब श्वेत मेघों पे ।
    चांदी जैसे चमक रहे
    तोतिया तरूओं के पत्ते
    चंपा जूही के पौधों पर
    खिले श्वेत फूलों के गुच्छे
    धवल चन्द्र रात्रि में
    आए जब श्वेत मेघों पे ।


    ऐसा मनोहर चित्र प्यारा
    शायद ना हो कोई दूसरा
    देख कर करता अभिनन्दन
    फिर आंखें बंद कर ऊतारूं मन में
    धवल चन्द्र रात्रि में
    आए जब श्वेत मेघों पे ।
                     -0-                                
    नवलपाल प्रभाकर “दिनकर”

  • सरसी छंद में कैसे लिखें

    सरसी छंद को समझने से पहले आइए हम छंद विधान को समझते हैं । अक्षरों की संख्या और क्रम , मात्रा, गणना और यति गति से संबंद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य रचना को छंद की संज्ञा दी गई है।

    मात्रिक छंद की परिभाषा

    छंद के भेद में ऐसा छंद जो मात्रा की गणना पर आधारित रहता है, उसे मात्रिक छंद कहा जाता है । जिन छंदों में मात्राओं की समानता के नियम का पालन किया जाता है किंतु वर्णों की समानता पर ध्यान नहीं दिया जाता। उसे मात्रिक छंद कहा जाता है।

    सरसी छंद की जानकारी

    सरसी छंद भी मात्रिक छंद का एक भेद है। इसके प्रत्येक चरण में 27 मात्राएं होती हैं और 16 -11 मात्रा पर यति होती है । अंत में एक गुरु और एक लघु आता है ।

    उदाहरण के लिए ,

    नीरव तारागण करते थे, झिलमिल अल्प प्रकाश।

    इसके अतिरिक्त आज के कवियों के द्वारा रचित कुछ सरसी छंद के उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं आप इन्हें पढ़कर इस विधा के बारे में और अधिक जानकारी पा सकते हैं।

    सरसी छंद में कविता :

    पेड़ लगाओ-महेंद्र देवांगन माटी

    आओ मिलकर पेड़ लगायें, सबको मिलेगी छाँव ।
    हरी-भरी हो जाये धरती,  मस्त दिखेगा गाँव ।।1।।

    पेड़ों से मिलती हैं लकड़ी , सबके आती काम ।
    जो बोते हैं बीज उसी का, चलता हरदम नाम ।।2।।

    सुबह शाम तुम पानी डालो , इतना कर उपकार ।
    गाय बैल से उसे बचाओ , बनकर पहरेदार ।।3।।

    आओ मिलकर पेड़ लगायें,  सबको मिलेगी  छाँव ।
    हरी-भरी हो जाये धरती, मस्त दिखेगा गाँव ।। 4।।

    -महेंद्र देवांगन माटी

  • कलम पर कवितायें

    हाय! कलम क्यों थककर बैठी?

    ध्येय अधूरा है फिर भी तुम, कैसे करती हो विश्राम?
    हाय! कलम क्यों थककर बैठी? भूल गई क्या अपना काम?

    नहीं मरी भूखमरी भू की, विपन्नता भी हुई न दूर।
    शिक्षा से वंचित हैं बच्चे, धन अर्जन को हैं मजबूर।।
    रहें अभावों में जीते सब, संसाधन भी हुए अनाम।
    हाय! कलम क्यों थककर बैठी? भूल गई क्या अपना काम?

    सुख का सूरज छुपकर बैठा, दुख के बादल लेते घेर।
    भटक रही है जनता दर-दर, अंधा-बहरा बैठा शेर।।
    काज सफल भी होता तब ही, जब जेबों में होते दाम।
    हाय! कलम क्यों थककर बैठी? भूल गई क्या अपना काम?

    युवा घूमते बेगारी में, धन अर्जन का ढूंढ़े स्रोत।
    रद्दी होती डिग्री सारी, प्यारी लगती उनको मौत।।
    गलत राह में भटक रहे हैं, जाने क्या होगा परिणाम?
    हाय! कलम क्यों थककर बैठी? भूल गई क्या अपना काम?

    अब भी घर में घर का भेदी, खोले जग में घर का भेद।
    दृश्य महाभारत का अब भी, देख हृदय में होता खेद।।
    द्वेष-क्लेश है मानव मन में, प्रेम भाव पर पूर्ण विराम।
    हाय! कलम क्यों थककर बैठी? भूल गई क्या अपना काम?

    शपथ लिया था तुमने ही तो, संचारित हो शुभ संदेश।
    हरें जगत से कुरीतियों को, सुखमय हो जग में परिवेश।।
    धीरे-धीरे होती देखो, मानवता का काम तमाम।
    हाय! कलम क्यों थककर बैठी? भूल गई क्या अपना काम?

    विनोद कुमार चौहान “जोगी”
    जोगीडीपा, सरायपाली

    कलम की ताकत

    समझ कलम की ताकत को अब , क्या से क्या कर देती है ।
    कभी शांति की वार्ता लिखती , कभी युद्ध कर देती है ।।

    कभी किसी की प्राण बचाती , कभी प्राण ले लेती है ।
    अपराधी को सीधा करती , फाँसी भी दे देती है ।।

    घाव बने जो तलवारों से , जल्दी ही भर जाता है ।
    अगर कलम से लिखा गया तो , कभी नहीं मिट पाता है ।।

    महेंद्र देवांगन माटी

  • वर्तमान परिस्थितियों पर कविता

    हो रहा कटु द्वेष का आयात है

    अब न जीवन में रही वह बात है,
    दिन नहीं उजला न उजली रात है।

    क्या कहें सम्बन्ध के सम्बन्ध में,
    यह परस्पर स्वार्थ का अनुपात है।

    दीप बुझने हैं लगे जनतंत्र के,
    देश में दुर्दम्य झंझावात है।

    शांति का संदेश देने के लिए,
    वह कराने लग गया उत्पात है।

    जागरण है आज गहरी नींद में,
    स्वप्न ने ऐसा किया आघात है।

    काक-दल में बैठकर बगुला-भगत,
    “हंस हूँ,”कहता फिरे,कुख्यात है।

    है सरोवर स्नेह का सूखा सखे!
    अब नहीं खिलता यहाँ जलजात है।

    सत्य था आराध्य,थी सत्ता नहीं,
    रत्न वह इतिहास का सुकरात है।

    हो गया परिवार भी अब खंडहर,
    भाईयों में घात है, प्रतिघात है।

    प्रेम निर्वासित हृदय से हो गया ,
    हो रहा कटु द्वेष का आयात है।

    हाथ हिंसक हो हमेशा हारते,
    हाथ की जयमाल तो प्रणिपात है।

    रेखराम साहू

  • हिन्दी वर्णमाला पर कविता

     हिन्दी वर्णमाला विचार

    अ से अनार , का फल है ताजा ।
    आ से आम , फलों में राजा ।

    इ से इमली , वो खट्टी-खट्टी ।
    ई से ई ईख , वो उतनी ही मीठी ।

    उ से उल्लू , रात को आए ।
    ऊ से ऊन का, ठंड में भाए ।

    ऋ से ऋषि है , आद्यात्म झरोखा ।
    देख-देख लगे , जीवन चोखा ।

    ए से एडी , जो पांव आधार ।
    ऐ से ऐनक से ,सब दिखता संसार ।

    ओ से ओखली ,अन्न कूट के खाएं ।
    औ से औरत , घर शोभा बढ़ाए ।

    अं से अंगूर , वो खट्टे-मीठे ।
    अः से हँस लो , तुम सुनो लतीफ़े ।

    क से कबूतर , छत,खा रहा दाना ।
    ख से खरगोश ,दम, होड़ लगाना।

    ग से गमला , घर शोभा बढ़ाएं ।
    घ से घर ही , आराम में भाए ।

    ङ खाली, खाली नहीं भइया ।
    चढ़े ‘ दिनांक ‘ पर ,बदले दिन ढइया ।

    च से चम्मच , से मन चाहे खा लो।
    छ से छाता , खुद वर्षा बचा लो ।

    ज से जग में , तुम पानी भर लो ।
    झ से झंडा , नभ ऊँचा कर लो ।

    ञ खाली , ‘ व्यंजन ‘ में लगता ।
    तरह-तरह के स्वाद तु चखता ।

    ट से टमाटर , वो लालमलाल ।
    ठ से ठठेरा , दिन भर है धमाल ।

    ड से डमरु , शिव का बाजा ।
    ढ से ढककर , पानी रख ताजा ।

    ण खाली , ‘ ठण्डक ‘ है बनाता ।
    ‘ बाण ‘ में लगकर लक्ष्य पहुंचाता ।

    त से तरबूज , फल बड़ा है भारी ।
    थ से थरमस , रखें गरमाई सारी ।

    द से दरवाजा , तुम ठीक भिड़ाओ ।
    ध से धन , चोरों से बचाओ ।

    न से नल में , व्यर्थ बहाओ न पानी ।
    रीत गया जल तो ,सब खत्म कहानी ।

    प से पतंग , तुम खूब उड़ाओ ।
    फ से फल , मुन्ना सब खाओ ।

    ब से बतख , पानी में डोले ।
    भ से भालू , वन शहद टटोले ।

    म से मछली , जल की रानी ।
    साफ पानी को समझे सयानी ।

    य से यज्ञ में , सब आहुति डालो ।
    र से रस्सी ,कूदो ,स्वास्थ्य बनालो ।

    ल से लट्टू , गोल-गोल ही घूमे ।
    व से वन , मन-मंगल झूमे ।

    क्ष से क्षत्रिय , वो युद्ध मैं सज्ज ।
    त्र से त्रिशूल , वह शक्ति ‘ अजस्र ‘ ।

    ज्ञ से ज्ञानी , सब ज्ञान सिखाए ।
    श्र से श्रमिक , पसीने की ही खाए ।

    डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)