परम प्रेम की शुभ परिभाषा -हिंदी कविता
निर्मल मन-मुरली की धुन पर प्रेम गीत गाया जाता है।
राग-द्वेष से मुक्त हृदय ही,गान दिव्यतम् गा पाता है।।
सरल,सरल होना है दुर्लभ,
किन्तु जटिलता बड़ी सरल है।
सुधा समर्पण से मिलती है,
अहंकार ही आप गरल है।
मनोभाव मानव-दानव का, सुख-दुख का होता दाता है…..
जन्मभूमि जननी की ममता,
त्याग,प्रेम की अनुपम भाषा।
नीलकंठ की कथा सुनाती,
परम प्रेम की शुभ परिभाषा।
त्राण त्रास से जग को देता,प्रेम जगत् हित का त्राता है।…….
रवि-शशि की किरणों में ढलता,
ईश्वर उज्जवल प्रेम तुम्हारा।
प्रीति बनी पर्जन्य तुम्हारी,
श्रावण मासी करुणा-धारा।
प्रेम नहीं याचक होता है,दान-धर्म ही अपनाता है।………
अगणित वर्णों-पुष्षों वाला,
सुरभित शोभित यह मधुवन है।
शोणित,स्वेद कणों से सिंचित,
सत्य-सुमन विकसित यौवन है।
प्रेम बिना निष्प्राण जगत् है,जीवन यह ही उपजाता है।
रेखराम साहू
बिटकुला / बिलासपुर