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  • जय शिव शम्भू कृपा करो

    जय शिव शम्भू कृपा करो

    जय शिव शम्भू कृपा करो
    हम भक्तन के क्लेश हरो
    जय शिव जय शिव ॐ नम:
    ॐ नम: जय शिव जय शिव

    1

    पर्वत पर हरियाली तुम से
    सागर में खुशहाली तुम से
    गंगा हैं मतवाली तुम से
    संतन के संताप हरो
    हे शिव शम्भू कृपा करो

    2

    कृपा सिंधु है ह्रदय तुम्हारा
    मांगो जो मिलता एक बारा
    गदगद है जिसने भी पुकारा
    मम मन अपनी ज्योति भरो
    हे शिव शम्भू कृपा करो

    3

    जगत हेतु उपहार तुम्हारे
    चाँद दिवाकर धरा सितारे
    कहाँ एक दो अनगिन सारे
    हमें उपकृत किया करो
    हे शिव शंकर कृपा करो

    4

    ज्ञानवापि के ज्ञान तुम्हीं हो
    अरि दल नहीं, महान तुम्हीं हो
    धर्म ध्वजा सम्मान तुम्हीं हो
    नंदी सम्मुख रहा करो
    हे शिव शम्भू कृपा करो

    5

    ज़हर न हरदम पीना अब तुम
    चुप्पी साध न जीना अब तुम
    तोड़ो दानव सीना अब तुम
    ज्योति पुंज मंदिर में भरो
    हे शिव शम्भू कृपा करो

    रमेश

  • जय गणपति जय जय गणनायक

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    गणेश
    गणपति

    जय गणपति जय जय गणनायक

    जय गणपति जय जय गणनायक
    विघ्न विनाशक शुभ फलदायक
    शंकर सुवन भवानी नंदन
    हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन

    1
    जो भी सुमिरे सांझ सकारे
    उसके तुमने काज सँवारे
    पान पुष्प लड्डू ही भायें
    ये सब प्रात: काल चढ़ाएं
    मोदक भोग लगायें चन्दन
    हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन

    2

    अंधों को जो दृष्टि दिलाए
    कोढ़ी सुन्दर काया पाए
    बाँझन को संतान का सुख हो
    दुखियों से ओझल सब दुख हो
    ऐसे लम्बोदर का वंदन
    हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन

    3

    दारा जिनकी ऋद्धि सिद्धि
    बुद्धि विवेक के जो हैं अधिपति
    लाभ और शुभ पुत्र रतन है
    एक दन्त भुज चार मगन है
    माथे पर सिंदूर का लेपन
    हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन

    4

    जो कपीथ जम्बू फल खाए
    मूसा वाहन जिसको भाये
    कार्तिकेय हैं भाई जिनके
    जो विघ्नेश जगत दुख हरते
    देवों के हैं देव गजानन
    हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन

    5

    दूब और सिंदूर अर्पित हो
    लड्डू मेवा से जो मुदित हो
    विघ्नेश्वर का चरण कमल हो
    शीश झुकाते सब मंगल हो
    अष्ट सिद्धि नव निधि का मज्जन
    हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन

    रमेश

  • जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    जय हनुमान

    शक्तिपुंज ! सब विघ्न विनाशक
    रामदूत वैभव सुखदायक
    संकट-मोचक मारुति-नंदन
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    1

    हे कपीश बुध्दिबल स्वामी
    अंजनि तनय पवनसुत नामी
    गुणसागर सुखपर्वत धामी
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    2

    हे बजरंग ज्ञान के बादल
    बरस जाओ उर कर दो निर्मल
    द्वेष – मोह के काटो जंगल
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    3
    राम ध्वजा इक हाथ विराजे
    दूजे हाथ बज्र यम साजे
    सियाराम के पूरण काजे
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    4
    सेवक धर्म तुम्हीं से उज्जवल
    है प्रमाण सागर का जल बल
    सीता मां को कर दिया विह्वल
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    5

    तुमने सागर लांघ ही डाला
    कोई नहीं तुमसा मतवाला
    भानु कपोल में तुमने संभाला
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    6

    सूक्ष्म रूप धरि सिय हर्षाये
    विकट रूप में लंक जलाये
    सकल काज कर प्रभु मन भाये
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन

    7
    रावण का कर के यश मर्दन
    पूंछ जला किये लंका दाहन
    मुदित हुए कर सागर मज्जन
    जय हनुमान तुम्हारा वंदन
    संकट-मोचक मारुति-नंदन

    रमेश

  • आम जन की हालात पर कविता – विनोद सिल्ला

    खप-खप मरता आमजन

    खप-खप मरता आमजन, मौज उड़ाते सेठ।
    शीतकाल में ठिठुरता, बहे पसीना जेठ।।

    खून-पसीना बह रहा, कर्मठ करता कार।
    परजीवी का ही चला, लाखों का व्यापार।।

    कमा-कमा कर रह गया, मजदूरों का हाथ।
    पूंजी ने फिर भी किया, सेठों का ही साथ।।

    अंधी चक्की पीसती, कुत्ता चाटे चून।
    कर्मठ तेरी कार से, सेठ कमाते दून।।

    नहर सड़क पुल बन गए, तेरा श्रम परताप।
    सदियों से है झेलता, फिर भी तू संताप।।

    तुझबिन किसका कब सरे,फिर भी तू बेगोर।
    ले चाबुक सिर पर खड़े, तेरी श्रम के चोर।।

    सिल्ला कर्मठ का करो, सदा मान-सम्मान।
    कर्मठता ही हो सदा, मानव की पहचान।।

    -विनोद सिल्ला

  • शिव जी पर कविता – हरीश बिष्ट

    शिव जी पर कविता

    शिवशंकर के चरणों में सब,
    नित-नित शीश नवाते हैं |
    नीलकंठ भोलेबाबा की,
    प्रतिपल महिमा गाते हैं ||
    दूध-नीर अरु बेलपत्र सब,
    शिव के शीश चढाते हैं |
    महादेव,गणनाथ, स्वरमयी,
    सेवा भाव जगाते हैं ||
    भक्तों की भक्ती से खुश हो,
    उनको पार लगाते हैं |
    कामारी, सुरसूदन जग में,
    सबके भाग जगाते हैं ||
    देव-दनुज, जन, ऋषिगण सारे,
    त्रिलोकेश को ध्याते हैं |
    शिवाप्रिय, महाकाल, अनीश्वर,
    कृपा सदा बरसाते हैं ||

    हरीश बिष्ट “शतदल”
    स्वरचित / मौलिक
    रानीखेत || उत्तराखण्ड ||