आज यहाँ निर्धन का भोजन, छीन रहा धनवान है
हड़प रहा क्यों राशन उनका, यह कैसा इंसान है।
हमने देखा नंगे भूखे, राशन कार्ड बिना रहते हैं
हाय व्यवस्था की कमजोरी, जिसको बेचारे सहते हैं
जिसने उनका मुँह खोला है, वह खुद उनका पेट भरेगा
अनुचित लाभ उठाने वालों, न्याय स्वयं भगवान करेगा
जो सक्षम है आज किसलिए, करता वह अभिमान है
तरस नहीं आता है जिसको, मानो वह हैवान है।
आज यहाँ निर्धन का….
खाता बिना मिले क्यों पैसा, सूनी उनकी रहे रसोई
वे केवल बदनाम हो गए, लाभ उठाता इससे कोई
हम दु;ख- दर्द समझ सकते हैं, उनको अपना कह सकते हैं
भोले- भाले नन्हे बच्चे, कब तक भूखे रह सकते हैं
तन- मन- धन से लगा हुआ जो, गुपचुप देता दान है
भूखे को भोजन करवाता, समझो वही महान है।
आज यहाँ निर्धन का…..
बनी योजनाएँ जितनी भी, उतने ही मिल गए बहाने
आयुष्मान कार्ड को भी क्यों,लगे लोग तिकड़म से पाने
कार्ड नहीं है जिस निर्धन पर, बीमारी में यों ही मरना
पैसा पास नहीं है तो फिर, उसे मौत से भी क्या डरना
नहीं झोपड़ी भी नसीब में, छत केवल अरमान है
सत्ता चाहे कोई भी हो, दुरुपयोग आसान है।
आज यहाँ निर्धन का….
रचनाकार -✍️उपमेन्द्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद -निवास’
Blog
निर्धन पर अत्याचार – उपमेंद्र सक्सेना
होबै ब्याहु करौ तइयारी – उपमेंद्र सक्सेना
होबै ब्याहु करौ तइयारी
चलिऔ संग हमारे तुमुअउ, गौंतर खूब मिलैगी भारी
राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।
माँगन भात गई मइके बा, लेकिन नाय भतीजी मानी
बोली मौको बहू बनाबौ, नाय करौ कछु आनाकानी
जइसे -तइसे पिंड छुड़ाओ, खूबै भई हुँअन पै ख्वारी
राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।
पहिना उन कौ भात बाइ के, भइया औ भौजाई आए
टीका करिके बाँटे रुपिया, घरि बारिन कौ कपड़ा लाए
गड़ो- मढ़ौ फिरि लगी थाप, बइयरबानी देउत हैं गारी
राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।
बाके घरै लगुनिया आए, ढोलक बजी लगुन चढ़बाई
बाने पहिले ऐंठ दिखाई, खूबै रकम हाय बढ़बाई
पइसा मिलै बाय कौ तौ बस, होय बहुरिया केती कारी
राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।
दाबत होय बँटैगो खूबइ, हियाँ कुल्लड़न मै सन्नाटा
आलू भरिके बनैं कचौड़ी, हलबाइन ने माढ़ो आटा
गंगाफल आओ है एतो,बनै खूब बा की तरकारी
राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।
नैकै दूर बरात जायगी, खूब बराती नाचैं- गाबैं
घोड़ी पै बइठैगो दूल्हा, जीजा बा के पान खबाबैं
निकरौसी जब होय कुँआ पै,पाँय डारि बइठै महतारी
राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।
रचनाकार ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद- निवास’, बरेली (उत्तर प्रदेश)मंजिल पर कविता – सृष्टि मिश्रा
मंजिल पर कविता
राही तू आगे बढ़ता चल,
देखो मंजिल दूर नहीं है।
मेहनत कर आगे बढ़ता चल,
देखो वो तेरे पास खड़ी है।।
सच्चाई के ताकत के बल पर,
अपने सपनों को पूरा कर।
दिखा दे अपने जज्बे को तू,
मातृभुमि की रक्षा कर।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।
मत सह जुल्म और अत्याचारों को तुम,
सिंहनाद करो, संघर्ष करो तुम।
देखो, दुनिया तेरे साथ खड़ी है,
कानून तेरे लिए खड़ी है।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।
चौखट पर बैठी वो मां,
तेरे लिए ख्वाब सजा रही है।
कर उनके सपनों को पूरा,
जो तेरे लिए ही जी रही है।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।
मुश्किल हजार आएगी राह में,
खुद को तू मजबूत कर।
लोगों के तानों से अपने,
आत्मविश्वास को परिपूर्ण कर।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।
जब तक न सफल हो,
सुख चैन का त्याग करो तुम।
मेहनत के बल पर ही,
अपने लक्ष्य को भेदो तुम।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल पास खड़ी है।
अपने सफल होने पर,
न कभी तू अभिमान कर।
बेसहारों का सहारा,
पिछड़ों की तू आवाज बन।।
कर्त्तव्य पथ और सदमार्ग पर, तू सदा गतिमान रह,
राही तू आगे बढ़ता चल, मंजिल तेरे साथ खड़ी है।
सृष्टि मिश्रा (सुपौल, बिहार)स्वाभिमान पर कविता
स्वाभिमान पर कविता
जब शब्द अधरों से परे हुए
और
कोरे कागज काले कर जायें तो
जब अंधेरा ही अंधेरा हो
और एक चिंगारी जल जाए तो
जब हार गए और टूट गए
बिखरे फिर भी रूके नहीं
स्वाभिमान फिर भी मरा नहीं
गिरे मगर झुके नहीं।।
तूफानों का मंजर था
सामने दुश्मन लिए खंजर था
फिर भी राख में छिपी
एक चिंगारी थी
दुश्मन कि बस्ती ज़ारी थी।।
जब अधरों का अवरोध बने
तब कलम नहीं रूकने दूंगा
जब समर शेष का रण होगा
तब स्वाभिमान नहीं झुकने दूंगा।।तृपित समर
माँ शारदे की कृपा
माँ शारदे की कृपा
अज्ञानता का नाश हो
ज्ञान का दीप जले
माँ शारदे की कृपा हो जाए
सफलता तब गले मिले।निकाल लाता ज्ञान के मोती
उच्च हो जाती ज्ञान की ज्योति
माँ शारदे की कृपा जो होती
अब तक अज्ञानता में पले।ज्ञान का कमल खिलता
अज्ञानता के सरोबर में
मेहनत से कर लूं हासिल
जो लिखा मुकद्दर में
माँ मेरी मन-मस्तिष्क की सुधी ले।