शंकर छंद [सम मात्रिक] विधान – 26 मात्रा, 16,10 पर यति, चरणान्त में 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l
उदाहरण : सुरभित फूलों से सम्मोहित, बावरे मत भूल, इन फूलों के बीच छिपे हैं, घाव करते शूल। स्निग्ध छुअन या क्रूर चुभन हो, सभी से रख प्रीत, आँसू पीकर मुस्काता चल, यही जग की रीत।
सरसी/कबीर/सुमंदर छंद [सम मात्रिक] विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष : चौपाई का कोई एक चरण और दोहा का सम चरण मिलाने से सरसी का एक चरण बन जाता है l
उदाहरण : पहले लय से गान हुआ फिर, बना गान ही छंद, गति-यति-लय में छंद प्रवाहित, देता उर आनंद। जिसके उर लय-ताल बसी हो, गाये भर-भर तान, उसको कोई क्या समझाये, पिंगल छंद विधान।
गर्मी की छुट्टियां पर बाल कविता : गर्मी की छुट्टी या गर्मी की छुट्टी स्कूल के वर्षों और स्कूल शैक्षणिक वर्ष के बीच गर्मियों में एक स्कूल की छुट्टी है। छात्र आमतौर पर आठ से नौ सप्ताह के बीच बंद रहते हैं। देश और जिले के आधार पर, कर्मचारियों को आंशिक रूप से या पूरी तरह से बाहर रखा जा सकता है।
गर्मी की छुट्टियां पर बाल कविता
(1) गर्मी की छुट्टी लो आई हम बच्चों के मन को भाई (2) मई महीने के आते ही नानी जी की याद सताई (3) गर्मी के मौसम में माँ ने घर पर ठंडी खीर बनाई (4) गर्मी में जी-भर कर खाओ आइस-क्रीम बर्फ ठंडाई (5) गुठली कौन आम की खाए इसी बात पर हुई लड़ाई (6) लीची का है स्वाद निराला वाह-वाह क्या जब भी खाई ——————————————-
तरबूज पर बाल कविता : तरबूज़ ग्रीष्म ऋतु का फल है। यह बाहर से हरे रंग के होते हैं, परन्तु अंदर से लाल और पानी से भरपूर व मीठे होते हैं। इनकी फ़सल आमतौर पर गर्मी में तैयार होती है। पारमरिक रूप से इन्हें गर्मी में खाना अच्छा माना जाता है क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करते हैं।
तरबूज पर बाल कविता
देख सकल तरबूज का,मन भावन है रूप। प्यासे कंठों को करे,सरस तरल नित धूप।।
हर प्यासे की मांग है,खाने को तरबूज। बदहजमी को रोक दे,आए पेट न सूज।।
नयन देखते खुश हुए, गए विरह सब भूल। खाते ही तरबूज फल,भागे फौरन शूल।।
दुख में साथी बन यही,करे हरण जन पीर। खुशी खुशी मानव कहे, जग में सबसे बीर।।
सूखे कांठों को करे,थंडकता अहसास। अदभुत गर्मी में मजा,लगे विपुल मधुमास।।
लाल रंग को देखते,मन में उठे हिलोर। काली काली बीज है,नाचे है मनमोर।।
सागर जैसे ही भरा,पावन पानी कोष। खाते गर्मी है भगे, तन मन लाए होश।।
परमेश्वर प्रसाद अंचल
बाल गीत-तरबूज
एक हरा भरा बाग सुन कोकिला का राग बच्चे धीमी चाल से कोई जाये न जाग।
नानी लाठी टेकती मुनिया ताली ठोकती भान तरबूज का हो, खुद को कैसे रोकती।
अहा !हुए मालामाल देख गूदा लाल -लाल बीज काले धँसे हुए लगे जड़ा टीका गाल।
मीठे रस भरा थाल भाए अब कहाँ दाल छीना झपटी में अब देखो भीगे बाल भाल।।
मिट गई सबकी प्यास बढ़ी तरबूजी आस रखे सेहत भरपूर आये यह हमें रास।।
लावणी/कुकुभ/ताटंक छंद [सम मात्रिक] विधान – 30 मात्रा, 16,14 पर यति l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष – इसके चरणान्त में वर्णिक भार 222 या गागागा अनिवार्य होने पर ताटंक , 22 या गागा होने पर कुकुभ और कोई ऐसा प्रतिबन्ध न होने पर यह लावणी छंद कहलाता है l
उदाहरण : तिनके-तिनके बीन-बीन जब, पर्ण कुटी बन पायेगी, तो छल से कोई सूर्पणखा, आग लगाने आयेगी। काम अनल चन्दन करने का, संयम बल रखना होगा, सीता सी वामा चाहो तो, राम तुम्हें बनना होगा।
– ओम नीरव
विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है – 22 22 22 22, 22 22 22 2 गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा गा फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन अल किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l