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  • सोरठा छंद [अर्ध सम मात्रिक] कैसे लिखें

    सोरठा छंद [अर्ध सम मात्रिक]

    विधान – 11,13,11,13 मात्रा की चार चरण , सम चरणों के अंत में वाचिक भार 12 (अपवाद स्वरुप 12 2 भी), विषम चरणों के अंत में 21 अनिवार्य, सम चरणों के प्रारंभ में ‘मात्राक्रम 121 का स्वतंत्र शब्द’ वर्जित, विषम चरण तुकांत जबकि सम चरण अतुकांत l

    छंद
    छंद

    विशेष – दोहा छंद के विषम और सम चरणों को परस्पर बदल देने से सोरठा छंद बन जाता है ! इसप्रकार अन्य लक्षण दोहा छंद के लक्षणों से समझे जा सकते हैं l

    उदाहरण :
    चरण बदल दें आप,
    दोहा में यदि सम-विषम,
    बदलें और न माप,
    बने सोरठा छंद प्रिय l

    – ओम नीरव

  • शबरी (अनुगीत छंद) – बाबू लाल शर्मा

    अनुगीत छंद

    विधान– २६ मात्रा प्रति चरण
    चार चरण दो-दो समतुकांत हो
    १६,२६ वीं मात्रा पर यति हो
    चरणांत लघु १ हो।

    छंद
    छंद

    शबरी अनकही कहानी…सी

    त्रेता युग अन कही कहानी, सुनो ध्यान धर कर।
    बात पुरानी नहीं अजानी, कही सुनी घर घर।
    शबरी थी इक भील कुमारी, निर्मल सुन्दर तन।
    शुद्ध हृदय मतिशील विचारी,रहती पितु घर वन।

    बड़ी भई मात पितु सोचे, सुता ब्याह जब तब।
    ब्याह बरात रीति अति पोचा, नही सहेगी अब।
    मारहिं जीव जन्तु बलि देंही, निर्दोषी का वध।
    शबरी जिन प्रति प्रीत सनेही, कैसे भूले सुध।

    गई भाग वह कोमल अंगी, डोल छिपे तरु वन।
    वन ऋषि तपे जहाँ मातंगी, भजते तपते तन।
    ऋषि मातंगी ज्ञानी सागर, शबरी सेवा गुण।
    शबरी में ऋषिआयषु पाकर,भक्ति बढ़े सदगुण।

    मिले राम तोहिं भक्ति प्रवीना, मातंगी ऋषि घर।
    ऋषि वरदान यही कह दीना, शबरी के हितकर।
    तब से नित वह राम निहारे, पूजन करे भजन।
    प्रतिदिन आश्रम स्वच्छ बुहारे, ऐसी लगी लगन।

    कब आ जाएँ राम दुवारे, वह पल पल चिंतित।
    फूलमाल सब साज सँवारे,कमी रहे कब किंचित।
    राम हेतु प्रतिदिन आहारा, लाए वह ऋतु फल।
    लाती फल चुन चखती सारे, शबरी भाव विमल।

    एहि विधि जीवन चलते शबरी, बीत रहा जीवन।
    कब आए प्रभु राम देहरी, तकते थकती तन।
    प्रतिदिन जपती प्रीत सुपावन, आओ नाथ अवध।
    बाट जोहती प्रभु की आवन, बीती बहुत अवधि।

    जब रावण हर ली वैदेही, व्याकुल बंधु युगल।
    रामलखन फिर खोजे तेंही, वन मे फिरे विकल।
    तापस वेष खोजते फिरते, माया पति सिय वन।
    वन मृग पक्षी आश्रम मिलते, पूछ रहे प्रभु उन।

    आए राम लखन दोऊ भाई, शबरी वाले वन।
    शबरी सुन्दर कुटी छवाई, सुंदर मन छावन।
    शबरी देख चकित वे भारी,पुलकित मनोविकल।
    राम सनेह बात विस्तारी, शबरी सुने अमल।

    छबरी भार बेर ले आती, भूख लगी प्रभुवर।
    चखे मीठ वे रामहिं देती,स्वागत अतिथि सुमिर।
    नित्य सनेहभक्ति शबरी वे, उलझे प्रभु चितवन।
    खाए बेर राम बहु नीके, चकित भाव लक्ष्मन।

    शबरी प्रेम भक्ति आदर्शी, पाई चरण शरन।
    राम सदा भक्तन समदर्शी, महि धारी लक्ष्मन।
    भाव प्रेम मय शुद्ध अचारे, शबरी शुभ जीवन।
    जाति वर्ग कुल दोष निवारे, प्रभु के पद पावन।
    . ______
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा, *विज्ञ*
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
    Pin. ३०३३२६
    Mob.no. ९७८२४४७९

  • आम और तरबूजा बाल कविता

    आम और तरबूजा बाल कविता

    आम और तरबूजा बाल कविता

    कहा आम तरबूजे से
    सुन लो मेरी बात
    फलों का राजा आम मैं
    तेरी क्या औकात
    गांव शहर घर-घर में मेरी
    सबमें है पहचान
    बड़े शान से बच्चे बूढ़े
    करते खूब बखान
    अमृतफल फलश्रेष्ट अंब
    आम्र अनेकों नाम
    लंगड़ा चौसा दशेहरी
    रूपों से संनाम
    स्वादों में अनमोल मै
    मिलता बरहो मांस
    शादी लगन बरात में
    रहता हूं खुब खास
    कच्चा पक्का हूं उपयोगी
    सिरका बने आचार
    लू लगने पर मुझसे होता
    गर्मी में उपचार।
    सुनते सुनते खरबूजे ने
    जोड़ा दोनों हाथ
    तुम्ही बड़े हो मैं छोटा हूं
    आओ बैठो साथ
    एक बात मेरी भी सुन लो
    मैं भी फलों में खास
    चलते रस्ते में राही का
    मै बुझाता प्यास
    कुदरत का भी खेल निराला
    उगता हूं मैं रेत
    प्यासे का तो प्यास बुझाता
    भर भी देता पेट
    सबका अपना गुण है भाई
    सबका अपना काम
    नहीं किसी से कोई कम है
    सबका है सम्मान।


    रचनाकार- रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर।

  • बहुत छोटे बच्चों के लिए कविता कैसी हो?

    छोटे बच्चों के लिए कविता

    बहुत छोटे बच्चों के लिए कविता कैसी हो?

    बहुत छोटे बच्चों के लिए मनोरंजक कविता लिख लेना बड़े बच्चों के लिए कविता लिखने की अपेक्षा कहीं अधिक कठिन है। छोटे बच्चों का स्वभाव इतना चंचल और मनोभावनाएँ इतनी उलझी हुई होती हैं कि बड़े उन्हें प्रायः आसानी से समझ भी नहीं पाते। उन उलझी हुई भावनाओं में रमकर और अपने गंभीर स्वभाव में उनके स्वभाव की जैसी चंचलता भरकर, उनके राग-द्वेष को उनकी-सी अस्फुट भाषा में व्यक्त कर सकना सरल कार्य नहीं है।

    बड़े बच्चों की भावनाएँ अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट होती हैं। वह भावना और विचारों का तारतम्य भी कुछ-कुछ समझने लगते हैं। उनके मन इतने चंचल भी नहीं होते कि एक विषय पर पल भर से अधिक टिक न सकें। इसलिए उनकी भावनाओं को बहुत छोटी आयु के बच्चों की भावनाओं की अपेक्षा आसानी से आत्मसात करके उनकी भाषा में व्यक्त किया जा सकता है।

    बड़े बच्चों को सुसंस्कृत और शिक्षित बनाने की भावना से प्रेरित कविताएँ भी लिखी जा सकती हैं क्योंकि उनमें थोड़ी बहुत समझ का आना प्रारम्भ हो जाने से वह उनसे लाभ उठा सकते हैं। पर कविता का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन ही होता है। और बड़े बच्चे भी उपदेशात्मक या ज्ञानवर्धन करने वाली कविताओं को उतना पसन्द नहीं करते जितना सरल मनोरंजन करने वाली कविताओं को।

    बड़ों को ही जब कविता या उपन्यास में भले से भले सिद्धान्त, ज्ञान और उपदेश की बातें उतनी अच्छी नहीं लगतीं जितनी रस और राग की बातें लगती हैं तो बहुत छोटे बच्चे भला किस प्रकार अपने स्वभाव और मन के प्रतिकूल कविता द्वारा उपदेश-ज्ञान की बातों को ग्रहण कर सकते हैं।

    हिन्दी में बच्चों के लिए लिखी गई कविताओं को देखने से ज्ञात होता है कि वह अधिकतर बड़े बच्चों के लिए लिखी गई कविताएँ हैं। जो बच्चे स्कूलों में साल दो साल पढ़कर एक-दो परीक्षाएँ पास कर चुके होते हैं, जिन्हें भाषा और व्याकरण का भी प्रारम्भिक ज्ञान होता है वही बच्चे उन कविताओं को पढ़ या सुनकर उनमें रस ले सकते हैं।


    आ गई पहाड़ी ॥
    छूट गई गाड़ी।
    लुढ़की पिछाड़ी ॥
    पड़ी एक झाड़ी ।
    फँस गई साड़ी ॥
    रुक गई गाड़ी।
    लाओ कुल्हाड़ी ॥
    काटेंगे झाड़ी ।

    मुन्नू मुन्नू छत पर आजा।
    बजने लगा द्वार पर बाजा ॥
    पीं पीं पीं ढम ढम ढम ढम।
    खिड़की पर से देखेंगे हम ||

    फुदक फुदक कर आतीं चिड़ियाँ ।
    चह चह चूँगाती चिड़ियाँ ॥
    फर फर पर फैलाती चिड़ियाँ ।
    फुर फुर फुर उड़ जातीं चिड़ियाँ ॥

  • खरबूज बाल कविता

    खरबूज बाल कविता

    खरबूज बाल कविता

    हरे रंग खरबूज के,होते हैं ये गोल
    काले-काले बीज भी,लगते हैं अनमोल।।

    करते हैं ये फायदे,पानी भी भरपूर।
    खाते सब खरबूज को,पूँजीपति मजदूर।।

    मीठे फल खरबूज के,उपज नदी मैदान।
    लाल-लाल होते गुदे,खाने में आसान।।

    नदियों के तट पर लगे,जहाँ बिछी हों रेत।
    खेती हों खरबूज की,रेत बने सुंदर खेत।।

    खाते जब खरबूज को,मिलता बढ़िया स्वाद।
    भर जाता है पेट भी,करते हैं फल याद।।


    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जाँजगीर छत्तीसगढ़