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  • भूट्टे की भड़ास बाल कविता

    बाल कविता भूट्टे की भड़ास

    भूट्टे की भड़ास बाल कविता

    एक भूट्टा का मूंछ पका था,
    दूसरे भूट्टे का बाल काला।
    डंडा पकड़ के दोनों खड़े थे,
    रखवाली करता था लाला।।

    शर्म के मारे दोनों ओढ़े थे,
    हरे रंग का ओढ़नी दुशाला।
    ठंड के मौसम टपकती ओस,
    खूब पड भी रहा था पाला।।

    मारे ठंड के दोनों ही भूट्टे,
    मांगने लगे चाय का प्याला।
    चूल्हे की आग से सेंक रहे थे,
    अपने दोनों हाथों को लाला।।

    गीली लकड़ी से उठता धुंआ,
    कैसे धधकती आग की ज्वाला।
    सारे धुंआ भूट्टे के सिर पर,
    इसीलिए बाल रंगा था काला।।

    भूट्टे की भड़ास तवा के ऊपर,
    वो नहीं था मानने वाला।
    उछल उछल के कूद रहा था,
    मैं नहीं बनूंगा अब निवाला।।

    सन्त राम सलाम,
    भैंसबोड़
    जिला-बालोद, छत्तीसगढ़।

  • नश्वर काया – दूजराम साहू अनन्य

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    नश्वर काया – दूजराम साहू “अनन्य “

    कर स्नान सज संवरकर ,
    पीहर को निकलते देखा ।


    नूतन वसन किये धारण ,
    सुमन सना महकते देखा ।
    कुमकुम चंदन अबीर लगा ,
    कांधो पर चढ़ते देखा ।


    कम नहीं सोहरत खजाना ,
    पर खाली हाथ जाते देखा ।
    गुमान था जिस तन का ,
    कब्र में उसे जाते देखा ।


    कर जतन पाला था जिस को,
    उसकों चिता पर चढ़ते देखा ।
    स्वर्ण जैसे काया को ,
    धूँ-धूँ कर जलते देखा ।

    दूजराम साहू “अनन्य “

    निवास -भरदाकला(खैरागढ़)
    जिला – राजनांदगाँव (छ.ग.)

  • हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता- तोषण कुमार चुरेन्द्र “दिनकर “

    हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता- तोषण कुमार चुरेन्द्र “दिनकर “

    हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता

    हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता- तोषण कुमार चुरेन्द्र "दिनकर "

    रुख राई अउ जंगल झाड़ी
    बचालव छत्तीसगढ़ के थाती ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    किसम किसम दवा बूटी
    इही जंगल ले मिलत हे
    चिरइ चिरगुन जग जीव के
    सुग्घर बगिया खिलत हे
    झन टोरव पुरखा ले जुड़े
    हमर डोर परपाटी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    चंद रुपिया खातिर
    कोख ल उजरन नइ देवन
    जल जंगल जमीन बचाए बर
    आज पर न सब लेवन
    खनन नइ देवन कहव मिलके
    छत्तीसगढ़ के माटी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    कोइला के लालच म काबर
    हमर जंगल उजड़ै गा
    सुमत रहय हम सबके संगी
    नीत नियम ह सुधरै गा
    नइ मानय त टें के रखव
    तेंदू सार के लाठी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    आदिवासी पुरखा मन के
    जल जंगल ह चिन्हारी हे
    एकर रक्षा खातिर अब
    हमर मनके पारी हे
    कोनों  ल लेगन नइ देवन
    महतारी के छांटी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    जल जंगल जमीन नइ रही त
    हम हवा पानी कहां पाबो
    बांचय हमर पुरखौती अछरा
    अइसन अलख जगाबो
    जुरमिलके हम रक्षण करबे
    दिन देखन न राती ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    तोषण कुमार चुरेन्द्र “दिनकर “
    धनगांव डौंडीलोहारा
    बालोद

  • रसीले आम पर कविता – सन्त राम सलाम

    🥭रसीले आम पर कविता🥭

    रसीले आम पर कविता - सन्त राम सलाम

    रसीले आम का खट्टा मीठा स्वाद,
    बिना खाए हुए भी मुंह ललचाता है।
    गरमी के मौसम में अनेकों फल,
    फिर भी आम मन को लुभाता है।।

    वृक्ष राज बरगद हुआ शर्मिंदा,
    पतझड़ में सारे पत्ते झड़ जाते हैं।
    आम की ड़ाल पर बैठ के कोयल,
    फुदक – फुदक के तान सुनाते हैं।।

    बसन्त ऋतु में बौराते है आम,
    ग्रीष्म ऋतु में सुन्दर फल देता है।
    चार-तेंदू और महुआ फल का भी,
    यही रसीले आम ही राज नेता हैं।।

    सदाबहार वृक्ष धरती पर शोभित,
    सदैव प्राकृतिक सुंदरता बढ़ाता है।
    औषधीय गुणों से भरपूर आमरस,
    गर्मी और लू के थपेड़ो से बचाता है।।

    कच्चे फलों को आचार बनाकर,
    या आमचूर पाउडर घर में रखते हैं।
    रसीले आम मिले तो बड़ा मजेदार,
    बिना पकाए भी वृक्षों पर पकते हैं।।

    सन्त राम सलाम
    जिला- बालोद, छत्तीसगढ़।

  • जिंदगी एक पतंग – आशीष कुमार

    जिंदगी एक पतंग – आशीष कुमार

    उड़ती पतंग जैसी थी जिंदगी
    सबके जलन की शिकार हो गई
    जैसे ही बना मैं कटी पतंग
    मुझे लूटने के लिए मार हो गई

    सबकी इच्छा पूरी की मैंने
    मेरी इच्छा बेकार हो गई
    कहने को तो आसमान की ऊँचाईयाँ मापी मैंने
    चलो मेरी ना सही सबकी इच्छा साकार हो गई

    ऐसा भी ना था कि पाँव जमीन पर ना थे मेरे
    किसी ना किसी से मेरी डोर अंगीकार हो गई
    मगर जमाने भर की बुरी नजर थी मुझ पर
    मुझे काटने के लिए हर पतंग तैयार हो गई

    पंख लगाकर उड़ना था मुझे
    मेरी यह इच्छा स्वीकार हो गई
    जब तक साँस चली उड़ाया गया
    फिर यह जिंदगी मिट्टी में मिलने के लिए लाचार हो गई

    सबको खुशियाँ देता रहा मैं
    मेरी खुशियाँ सब पर उधार हो गई
    हर रंग देखा पल भर की जिंदगी में
    जाते-जाते सबकी यादें बेशुमार हो गई

                            – आशीष कुमार
                             मोहनिया बिहार