बाल कविता भूट्टे की भड़ास
एक भूट्टा का मूंछ पका था,
दूसरे भूट्टे का बाल काला।
डंडा पकड़ के दोनों खड़े थे,
रखवाली करता था लाला।।
शर्म के मारे दोनों ओढ़े थे,
हरे रंग का ओढ़नी दुशाला।
ठंड के मौसम टपकती ओस,
खूब पड भी रहा था पाला।।
मारे ठंड के दोनों ही भूट्टे,
मांगने लगे चाय का प्याला।
चूल्हे की आग से सेंक रहे थे,
अपने दोनों हाथों को लाला।।
गीली लकड़ी से उठता धुंआ,
कैसे धधकती आग की ज्वाला।
सारे धुंआ भूट्टे के सिर पर,
इसीलिए बाल रंगा था काला।।
भूट्टे की भड़ास तवा के ऊपर,
वो नहीं था मानने वाला।
उछल उछल के कूद रहा था,
मैं नहीं बनूंगा अब निवाला।।
सन्त राम सलाम,
भैंसबोड़
जिला-बालोद, छत्तीसगढ़।