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  • सुई धागा -माला पहल

    सुई धागा -माला पहल

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सुई बोले धागे से
    पतले हो तुम मुझ से,
    मुड जाते हो पल- पल,
    हमेशा करते हो हलचल।
    धागा मंद मंद मुसकाया,
    सुई की बातों से शरमाया।
    छोटी,बडी ,मोटी,पतली
    हरदम लगती तुम बदली बदली।
    सिलकर देती हो कई रूप,
    निखार देती हो रूप कुरूप ।
    हँसकर बोली सुई सयानी,
    तुम बिन मेरी अधूरी कहानी,
    गर न हो साथ हमारा,
    कुछ भी नहीं महत्व हमारा,
    तुम्हारे बिना मैं निरर्थक ,
    साथ रहे तो जीवन सार्थक।
    तुम्हारे बिना मैं अधूरी,
    कभी न होगी सिलाई पूरी ।
    सुई-धागा बोले मुसकुराते,

    ‘जीवन जिओ साथ निभाते’।।


    माला पहल ‘मुंबई’

  • मुक्ति संघर्ष-आशीष कुमार (कविता)

    मुक्ति संघर्ष-आशीष कुमार (कविता)

    पिंजड़े में कैद पंछी
    करुण चीत्कार कर रहा।
    ऊपर गगन विशाल है
    वह बंद पिंजड़े में रह रहा।

    टीस है उसके दिल में।
    तिल-तिल कर, है मर रहा।
    निरीह कातर नेत्रों से
    मुक्ति की राह तक रहा।

    उसे बंदिशें उन्होंने दी
    उन्मुक्तता जिन्हें पसंद।
    पर कतर कर रख दिए
    दासता से जिन्हें डर रहा।

    तोड़ देगा सारे बंधन
    गहन विचार कर रहा।
    डर के आगे जीत है
    अब मुक्ति मार्ग पर बढ़ रहा ।

    हथियार उसके चोंच थे।
    पिंजड़े पर वार कर रहा।
    दो कदम पीछे हटे
    फिर बढ़कर प्रहार कर रहा ।

    हौसला चट्टान सा
    मजबूत इरादा रहा।
    तोड़ दिया लौह पिंजर
    स्वतंत्र होकर जा रहा।

  • नारी का सम्मान – अकिल खान

    नारी का सम्मान – अकिल खान

    kavita

    नारी की महिमा है अपरंपार,
    सदा संभालती है हर घर-द्वार।
    बिन नारी के सूना है घर – संसार,
    नारी है हम पर रब का उपकार।
    नारी है शक्ति नारी कुल का मान,
    बुजुर्गों का ज्ञान,नारी का सम्मान।

    मां-बहन और अर्धांगिनी नारी के कई रूप,
    करती है खूब मेहनत चाहे वर्षा हो या धूप।
    नारी के आंचल में है ममता का छांव,
    मां है खिवय्या पार कराती हमारी नाव।
    नारी के मुख पर रहे सदा मुस्कान,
    बुजुर्गों का ज्ञान,नारी का सम्मान।

    जो नामुमकिन को कर दे मुमकिन,
    ना करना कभी भी नारी का तौहीन।
    खुशियों की बगिया में नारी है प्रेम की बहार,
    मर्द कभी चुका नहीं पाएगा नारी का उपकार।
    मत करो जुल्म नारी भी है इंसान,
    बुजुर्गों का ज्ञान,नारी का सम्मान।

    जब जन्म ले बेटी तो स्वतःघर आए धन,
    बेटी है अनमोल इसका करो सब जतन।
    ब्याह होकर बेटी जब जाए पर घर-द्वार,
    साथ में जाए लक्ष्मी करे घर का उद्धार।
    नारी बिन घर-द्वार लगे सुनसान,
    बुजुर्गों का ज्ञान,नारी का सम्मान।

    अदम्य सहन-शक्ति का प्रतीक है नारी,
    सभी को भाति बड़ी लगती है प्यारी।
    नारी के अभाव में मानव-समाज है अर्थहीन,
    नारी से ही पुरुष का जीवन होता बेहतरीन।
    नारी है शक्ति-रूपा नारी है महान,
    बुजुर्गों का ज्ञान,नारी का सम्मान।

    — अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.)पिन – 496440.

  • मेरे बाबा का बक्सा – अतुल भारद्वाज

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मेरे बाबा का बक्सा – अतुल भारद्वाज

    ये बात उस समय की है-
    जब आंसू टपकने से पहले दुकान खुल जाते थे,
    बस करवट बदलने से पंखे डोल जाते थे।

    उसमें रखा कुछ ऐसा मेरा साजो-सामान था,
    जिनका मतलब समझना सिर्फ उनके लिए आसान था।

    उन्हें रख दूँ कहीं पे ऐसी जगहें अनेक थीं,
    पर दुनिया की सबसे महफूज़ जगह सिर्फ एक थी।

    उसमें जन्नत तक जाने के रास्तों का नक्शा था,
    कोई छोटी मोटी चीज़ नहीं वो मेरे बाबा का बक्सा था।।

    —अतुल भारद्वाज—
    Address: Varanasi
    Uttar Pradesh

  • शुभ संध्या नभ तले (संध्या-वन्दन)

    प्रस्तुत संध्या-वन्दन राजेश पाण्डेय वत्स छत्तीसगढ़ द्वारा रचित है.

    शुभ संध्या नभ तले (संध्या-वन्दन)

    morning
    प्रातःकालीन दृश्य


    दिन रात संधिकाल, शुभ लग्न संध्या हाल,
    तारागण झाँक पड़े,
    पल सुखदाई में!

    नीड़ दिशा उड़ी दल,विहगों की कोलाहल,
    तिमिर को न्यौता मिला,
    सुर शहनाई में!

    लाडली सुन्दरी शाम, पल भर मेहमान,
    विमल आकाश खेली,
    मृदु शीतलाई में!

    शुभ संध्या नभ तले,पग घर ओर चले
    वत्स वही फिर रट,
    प्रीत रघुराई में!

    -राजेश पाण्डेय वत्स छग