प्रीत शेष है मीत धरा पर

नवगीत- प्रीत शेष है मीत धरा पर प्रीत शेष है मीत धरा पररीत गीत शृंगार नवल।बहे पुनीता यमुना गंगापावन नर्मद नद निर्मल।। रोक सके कब बंधन जल कोकूल किनारे टूट बहेआँखों से जब झरने चलतेसागर का इतिहास कहे पके उम्र के संग नेह तबनित्य खिले सर मनो कमल।प्रीत……………………..।। सरिताएँ सागर से मिलतीनेह नीर की ले … Read more

आज पंछी मौन सारे

आज पंछी मौन सारे नवगीत (१४,१४) देख कर मौसम बिलखताआज पंछी मौन सारेशोर कल कल नद थमा हैटूटते विक्षत किनारे।। विश्व है बीमार या फिरमौत का तांडव धरा परजीतना है युद्ध नित नवव्याधियों का तम हरा कर छा रहा नैराश्य नभ मेंरो रहे मिल चंद्र तारे।।।देख कर…………….।। सिंधु में लहरें उठी बसगर्जना क्यूँ खो गई … Read more

भगत सिंह हों घर घर में

यह कविता मनुष्य के स्वार्थपरता को व्यक्त करते लिखी गई है