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  • संस्कारों की करते खेती

    संस्कारों की करते खेती

    संस्कारों की करते खेती

    बीज रोप दे बंजर में कुछ,
    यूँ कोई होंश नहीं खोता।
    जन्म जात बातें जन सीखे,
    वस्त्र कुल्हाड़ी से कब धोता।

    संस्कृति अपनी गौरवशाली,
    संस्कारों की करते खेती।
    क्यों हम उनकी नकल उतारें,
    जिनकी संस्कृति अभी पिछेती।
    जब जब अपने फसल पकी थी,
    पश्चिम रहा खेत ही बोता।
    बीज रोप दे बंजर में कुछ,
    यूँ कोई होंश नही खोता।

    देश हमारा जग कल्याणी,
    विश्व समाजी भाव हमारे।
    वसुधा है परिवार सरीखी,
    मानवता हित भाव उचारे।
    दूर देश पहुँचे संदेशे,
    धर्म गंग जन मारे गोता।
    बीज रोप दे बंजर में कुछ,
    यूँ कोई होंश नही खोता।

    मातृभूमि माता सम मानित,
    शरणागत हित दर खोले।
    जब जब विपदा भू मानव पर,
    तांडव कर शिव बम बम बोले।
    गाय मात सम मानी हमने,
    राम कृष्ण हरि कहता तोता।
    बीज रोप दे बंजर में कुछ,
    यूँ कोई होंश नही खोता।

    जगत गुरू पहचान हमारी,
    कनक विहग सम्मान रहा।
    पश्चिम की आँधी में साथी,
    क्यूँ तेरा मन बिन नीर बहा।
    स्वर्ग तुल्य भू,गंगा हिमगिरि,
    मन के पाप व्यर्थ क्यूँ ढोता।
    बीज रोप दे बंजर में कुछ,
    यूँ कोई होंश नही खोता।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा बौहरा
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • एक खनकता गीत मेरा

    एक खनकता गीत मेरा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    पास बैठो और सुनो बस
    एक खनकता गीत मेरा।।

    जीवन समर बहुत है मुश्किल,
    बाधाओं की हाट लगी है।
    दुनिया रंग बिरंगी लेकिन,
    होती देखी नहीं सगी है।
    इसीलिए गाता अफसाने,
    रूठ गया क्यों मीत मेरा।
    एक खनकता गीत मेरा।।

    मैं तो सच्चे मन का सेवक,
    खूब समझता पीर पराई।
    लेकिन दुनिया, दुनिया वाले,
    सबने मेरी पीर बढ़ाई।
    मैं भी भूलूँ इस दुनिया को,
    तू भी सुन संगीत मेरा।
    एक खनकता गीत मेरा।।

    प्रीत करें तो नीति रीति से,
    अपनेपन के भाव बिखेरे।
    शाम सुनहरी, रात रुहानी,
    खिले खिले हर रोज सवेरे।
    इतनी ही बस चाहत थी यह,
    जीवन जाता बीत मेरा।
    एक खनकता गीत मेरा।।

    पास बैठो और सुनो बस,
    एक खनकता गीत मेरा….
    एक खनकता……..।।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा, दौसा,राजस्थान

  • मुझको गीत सिखा देना

    मुझको गीत सिखा देना

    कोयल जैसी बोली वाले,
    मुझको गीत सिखा देना।

    शब्द शब्द को कैसे ढूँढू,
    कैसे भाव सँजोने हैं।
    कैसे बोल अंतरा रखना,
    मुखड़े सभी सलोने हैं।
    शब्द मात्रिका भाव तान लय,
    आशय मीत सिखा देना।
    कोयल जैसी बोली वाले,
    मुझको गीत सिखा देना।

    मन के भाव मलीन रहे तब,
    किसे छंद में रस आए।
    राग बिगड़ते देश धर्म पथ,
    कहाँ गीत में लय भाए।
    रीत प्रीत के सरवर रीते,
    शेष प्रतीत सिखा देना।
    कोयल जैसी बोली वाले,
    मुझको गीत सिखा देना।

    व्याकरणी पैमाने उलझे,
    ज्ञानी अधजल गगरी के।
    रिश्तों के रखवाले बिकते,
    माया में इस नगरी के।
    रोक सके जो इन सौदौं को,
    ऐसी प्रीत सिखा देना।
    कोयल जैसी बोली वाले,
    मुझको गीत सिखा देना।

    गीत गजल के श्रोता अब तो,
    शीशपटल के कायल हैं।
    दोहा छंद गजल चौपाई,
    कवि कलमों से घायल हैं।
    मिले चाहने वाले जिसको,
    ऐसी रीत सिखा देना।
    कोयल जैसी बोली वाले,
    मुझको गीत सिखा देना।।


    ✍”©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा,303326
    दौसा,राजस्थान,9782924479

  • तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ

    तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ

    शादी
    shadi

    मन में शुभ भाव उमड़ते हों,
    तब मैं भी चाहूँ,प्यार करूँ।

    जब रिमझिम वर्षा आती हों,
    ज्यों गीता ज्ञान सुनाती हो।
    खिड़की से तान मिलाती हो,
    मुझको मानो उकसाती हो।
    श्वेद संग वर्षा में गाऊं,
    मै,भी जब कुछ श्रम साध्य करूं।
    मात का उज्जवल भाल सजे,
    तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ।।

    भाती है दिल आलिंगन सी,
    स्वर सरगम हिय के बंधन सी।
    मन मे शुभ भाव सँवरते हो,
    जब नेह दुलारे रिश्तें हों।
    क्यूँ ना चल कर पतवार बनूं,
    बिटिया को शिक्षादान करूं,
    कुछ अपने पन की बातो से,
    तब मै भी चाहूँ प्यार करूँ,

    जन की सेवा हरि की सेवा,
    हरि जन सेवा काज सभी।
    मैं मेटूँ कुछ पीर पराई,
    हो मनुज,मनुज स्वीकार सभी।
    लोकतंत्र के जन गण मन को,
    मन नमित नमन हर बार करूँ।
    जब राम राज्य सा शासन हो,
    तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ।

    कुछ आकुल अधर बुलाते हों,
    तन मन संत्रास जगाते हों।
    कड़वे आकर्षक आमंत्रण,
    इस दिल से तान मिलाते हों।
    अपना भारत,वतन तिरंगा,
    इतिहासी,संस्कृति गान करूँ
    संविधान ,संसद गौरव हो,
    तब मैं भी चाहूँ प्यार करूं।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा,सिकंदरा,
    दौसा(राज.)9782924479

  • हरेली त्यौहार पर हिंदी कवितायें

    हरेली त्यौहार

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    सावन की अमावस है वर्षा की बौछार,
    लो आ गई जीवन में खुशियाँ अपार।
    छ.ग.का प्रथम त्यौहार भरा है संस्कार,
    खुशियाँ लेकर आई, हरेली त्यौहार।

    पशु- हल औजारों की करें पुजा,
    है श्रद्धा मन में कोई नहीं है दूजा।
    लोग करते हैं सभी से सद्व्यवहार,
    खुशियाँ लेकर आई, हरेली त्यौहार।

    चारों दिशाओं में है छाई हरियाली,
    सभी लोग व्यस्त हैं कोई नहीं खाली।
    प्रकृति ने किया प्राणियों का उद्धार,
    खुशियाँ लेकर आई, हरेली त्यौहार।

    खुशबू की बौछार लेकर आई है पवन,
    चहकते पशु पक्षी और खुश है चमन।
    बच्चे खेले रस्सी दौड़ और नारियल फेंक,
    प्रकृति है मंत्रमुग्ध प्राणियों के खुशी देख।
    कोई दे बधाई और कोई दे उपहार,
    खुशियाँ लेकर आई हरेली त्यौहार।

    नई है मौसम – हवा नए है मित्र,
    खेतों में है धान रोपा का चित्र।
    छत्तीसगढ़ में लोक कला का ऐसा है योग,
    हरेली त्यौहार में सभी करें गेड़ी का प्रयोग।
    प्रकृति के उपहार को दो तुम संवार,
    खुशियाँ लेकर आई, हरेली त्यौहार।

    अकिल खान रायगढ़ जिला रायगढ़ (छ.ग.) पिन – 496440.

    हरियाली पर्व

    हर हर शंभू सावन का महीना है।
    पर्व हरियाली का लेकर आया पहला उत्सव है ।
    धरती हरे रंग की साड़ी पहनी,लगती कोई सुन्दर दुल्हन है ।

    सावन की झड़ी में , आकाश में घुमड़ता बादल है । मंदिरों में शिवनाम है ।देखो किसानों को खेतों में करता काम है । हरियाली पर्व प्रकृति का उत्सव है ।

    नये फसल अंकुरण होने लगें हैं ।
    नदियों में तालों में उफ़ान है ।
    भारत में कहीं जल मग्न कहीं सुखा और तुफ़ान है। पर्यावरण को ‌मानव ने दिया है जो दर्द
    उसकी यही पहचान है।

    हरियाली पर्व में ,हो रही ‌हरियाली देवी की पूजा यहां सुंदर विधान है
    आया हरियाली का पर्व आनन्द,और उत्सव लिए यही जीवन की पहचान है ।

    स्वपन बोस ,, बेगाना,,
    9340433481