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  • बाघ भारत की शान

    बाघ भारत की शान

    बाघ भारत की शान

    विलुप्त बाघों का न करो शिकार,
    बाघ रक्षा है मानव का अधिकार।
    बाघ है पारिस्थितिकी तंत्र का अंग,
    लालच में मानव इसको करते हैं भंग।
    निडरता – गतिशीलता है इसका पहचान,
    शौर्य का प्रतीक, बाघ भारत की शान।

    पशु- पक्षियों से भरपूर सुंदर अरण्य,
    वर्तमान भारत में 50 बाघ अभ्यारण्य।
    डरे सभी जीव हाथी करे नतमस्तक,
    भयभीत हो सभी बाघ का हो दस्तक।
    बाघ के दहाड़ से गुंजे धरती आसमान,
    शौर्य क प्रतीक, बाघ भारत की शान।

    रंग है नारंगी त्वचा में काली धारी,
    मुंछ-पूंँछ लम्बी आंँख है सफेद कारी।
    70%विश्व बाघों का भारत करता पोषण,
    बहेलिया बाघ का करते शिकार-शोषण।
    दांत-नाखुन नुकीले सतर्क है इसके कान,
    शौर्य का प्रतीक, बाघ भारत की शान।

    सुंदर फुर्तीला सब जीवों से भिन्न-न्यारा,
    भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ सबका प्यारा।
    सुंदर वन बंगाल टाइगर का है घर,
    जनसंख्या वृद्धि – शिकार से लगता डर।
    निडर- सब्र आक्रामकता है इसकी पहचान,
    शौर्य का प्रतीक, बाघ भारत की शान।

    करो वन – बाघों का रखवाली,
    होगा प्रकृति में खुशहाली।
    वन्य जीवों का जमघट पशु-पक्षी होंगे चहूँ ओर,
    बाघ तस्करी रोक कर न बनो पशु चोर।
    बे वजह न लो राष्ट्रीय पशु बाघ का प्राण,
    शौर्य का प्रतीक, बाघ भारत की शान।

    ——अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ.ग.) पिन – 496440.

  • ये आम अनपढ़ बावला है

    ये आम अनपढ़ बावला है

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    दुर्व्यवस्था देख,क्या लाचार सा रोना भला है।
    क्या नहीं अब शेष हँसने की रही कोई कला है।

    शोक है उस ज्ञान पर करता विमुख पुरुषार्थ से जो,
    भाग्य की भी भ्राँतियों ने,कर्म का गौरव छला है।

    आग तो कोई लगा दे,रोशनी के नाम से पर,
    क्रांति का नवदीप केवल चेतना से ही जला है।

    सभ्यता का अंकुरण,अस्तित्व है संघर्ष से ही,
    बीज का संघर्ष ही तो वृक्ष में फूला -फला है।

    तिमिर की अनुभूति बनती प्रेरणा नव चेतना से,
    ज्योति के आह्वान का संकल्प दीपों में ढला है।

    शांति के मिस धर्म का परित्याग केवल क्लीवता है,
    मार्ग पर कर्तव्य के यह मोह भारी अर्गला है।

    कंटकों से भी चुभन का पाँव में अनुराग लेकर,
    फूल बोने के लिए माली सदा सदियों चला है।

    लाख समझा लो फलो मत,मार पत्थर की पड़ेगी,
    पर न मानेगा कभी,ये आम अनपढ़ बावला है।

    वह तमस् को मस बनाकर ज्योति लिखना जानता है,
    सर्जना के गर्भ में वरदान ऐसा ही पला है ।

    रेखराम साहू (बिटकुला बिलासपुर छग )

  • प्रकृति का इंसाफ  पर कविता

    प्रकृति का इंसाफ पर कविता

    प्रकृति का इंसाफ पर कविता

    प्रकृति का इंसाफ पर कविता

    कायनात में शक्ति परीक्षा,दिव्य अस्त्र-शस्त्र परमाणु बम से |
    सारी शक्तियां संज्ञा-शून्य हुई ,प्रकृति प्रदत विषाणु के भ्रम से |
    अटल, अविचल, जीवनदायिनी ,वसुधा का सीना चीर दिया |!
    दोहन किया युगो- युगो तक,प्रकृति को अक्षम्य पीर दिया ||
    सभ्य,सुसंस्कृत बन विश्व पटल पर,कर रहे नित हास-परिहास |

    त्राहिनाद गूंज रहा चहुं ओर ,अब प्रकृति कर रही अट्टाहास ||
    सृष्टि के झंझावत में बहकर ,क्षितिज ने प्राचीर मान लिया |
    पारावर की लहरो ने भी,आज अलौकिक विप्लव गान किया |

    ध्वनि,धूल,धुंआ,धूसर मुक्त धरा,तामसी पर्यावरण दे रहा उपहार |
    अमिय बरसा रही प्रकृति,दानव सीख रहे सौम्य शील व्यवहार|

    नगपति,कान्तार,हिमशिखा ने,खग, मृग, अहि का मान किया
    सरसिज खिले,निर्झरिणी मचली,रत्नगर्भा ने अभयदान दिया |
    द्रुमदल के ललाट शिखर पर,मराल, कलापी, कोयल कूंजे |
    सरिता का पावन निर्मल जल,क्षणप्रभा की चमक से गूंजे ||


    नाम -मोहम्मद अलीम
    विकास खण्ड -बसना
    जिला -महासमुन्द
    राज्य -छत्तीसगढ़

  • बेटी पर कविता

    बेटी पर कविता

    बेटी पर कविता

    beti

    एक मासूम सी कली थी
    नाजों से जो पली थी


    आँखों में ख़्वाब थे और
    मन में हसरतें थीं


    तितली की मानिन्द हर सु
    उड़ती वो फिर रही थी

    सपने बड़े थे उस के
    सच्चाई कुछ और ही थी

    अनजान अजनबी जब
    आया था ज़िंदगी में

    दिल ही दिल में उस को
    अपना समझ रही थी

    माँ बाप डर रहे थे
    बहनें भी रो रही थीं

    नाजों पली वो बेटी
    पराई हो चली थी

    ससुराल में ना माँ थी
    बाप की कमी थी

    अपनों की याद दिल में
    समोए तड़प रही थी

    हर दिन मुश्किलें थीं
    हर रात बेकली थी

    इज़त की खातिर सब की
    वोह ज़ुल्म सह रही थी

    नाज़ुक सी वोह तितली
    क़िस्मत से लड़ रही थी

    अच्छी भली वह गुड़िया
    ग़म से गुज़र रही थी
    अदित्य मिश्रा
    दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली
    9140628994

  • बेटी पर दोहा छंद

    बेटी पर दोहा छंद

    बेटी पर दोहा छंद

    beti

    बेटी सृष्टि प्रसारणी , जग माया विस्वास।
    धरती पर अमरित रची, काया श्वाँसो श्वाँस।।
    .
    बेटी जग दातार भी ,यही जगत आधार।
    जग की सेतु समुद्र ये, जन मन देवा धार।।
    .
    बेटी गुण की खान है, त्याग मान बलिदान।
    राज धर्म तन तीन का,सत्य शुभ्र अभिमान।।
    .
    बेटी व्रत त्यौहार की, सामाजिक सद्भाव।
    कुटुम पड़ोसी जोड़ती,श्रद्धा भक्ति सुभाव।।
    .
    बेटी यसुदा मात सम, कौशल्या सम नेम।
    रानी लक्ष्मी सा कहाँ, जन्मभूमि मन प्रेम।।
    .
    बेटी सब न्यौछारती, देश धर्म हित मान।
    पीव पूत भ्राता करे ,जन्म जन्म बलिदान।।
    .
    बेटी धुरी विकास की, कुल की खेवनहार।
    देश धर्म मर्याद की, सच्ची पालन हार।।
    .
    बेटी हाड़ी रानियाँ, चूँड़ावत सिणगार।
    ममतज पन्ना धाय सी, इन्द्रा सी ललकार।।
    .
    बेटी जीजा सम बनो, त्यार करो शिवराज।
    मातृभूमि हित जो बने ,छत्रपति महाराज।।
    .
    बेटी खेजड़ली चिपक, रचती अमृता रीत।
    वन्य वनज रक्षा करें, प्राणी प्राकृत प्रीत।।
    .
    बेटी रण रजपूत की, पद्मनियाँ चित्तौड़।
    जौहर मै कूदे सभी, राज प्राण सब छोड़।।
    .
    बेटी सुर संगीत की, लता सिद्ध शुभ नाम।
    आशा जन मन भारती, सुर संगम सरनाम।।
    .
    बेटी पाल बछेन्दरी, पर्वत पर चढ़ि धाय।
    रची कल्पना चावला, अंतरिक्ष में जाय।।
    .
    बेटी देश विदेश में , कंचन रही लुटाय।
    कुम्भ सुता सीता सरिस, सर्प सरी लहराय।।
    .
    बेटी कर्मेती रची , जौहर पहले पीर।
    मातृ भूमि रक्षा हिते, बना हुमायू बीर।।
    ……
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”