महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं
गुरु पूर्णिमा पर दोहे
आज दिवस गुरु पूर्णिमा,सुरभित और पवित्र।
होते गुरु सम देवता, और हमारे मित्र।।
गुरु महिमा लेखन करूँ,आज कलम की धार।
मैं अबोध बालक प्रभो,कर लेना स्वीकार।।
तेरी महिमा श्रेष्ठ है ,जग में बहुत महान।
मैं अबोध बालक प्रभो,बना दिया विद्वान।।
किया ज्ञान की ज्योति से,तम को ईश प्रकास।
अंधकार यह गात में, हदरम किया उजास।।
कर्जदार जग हैं सही ,पाकर के उपकार।
कृपा आपकी नित रहे,श्रेष्ठ ज्ञान उपहार।।
*परमेश्वर अंचल*