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  • विधाता छंद में प्रार्थना

    विधाता छंद में प्रार्थना

    छंद
    छंद

    विधाता छंद
    १२२२ १२२२, १२२२ १२२२
    . प्रार्थना
    .
    सुनो ईश्वर यही विनती,
    यही अरमान परमात्मा।
    मनुजता भाव मुझ में हों,
    बनूँ मानव सुजन आत्मा।
    .
    रहूँ पथ सत्य पर चलता,
    सदा आतम उजाले हो।
    करूँ इंसान की सेवा,
    इरादे भी निराले हो।
    .
    गरीबों को सतत ऊँचा,
    उठाकर मान दे देना।
    यतीमों की करो रक्षा,
    भले अरमान दे देना।
    .
    प्रभो संसार की बाधा,
    भले मुझको सभी देना।
    रखो ऐसी कृपा ईश्वर,
    मुझे अपनी शरण लेना।
    .
    सुखों की होड़ में दौड़ूँ,
    नहीं मन्शा रखी मैने।
    उड़े आकाश में ऐसे,
    नहीं चाहे कभी डैने।
    .
    नहीं है मोक्ष का दावा,
    विदाई स्वर्ग तैयारी।
    महामानव नहीं बनना,
    कन्हैया लाल की यारी।
    .
    रखूँ मैं याद मानवता,
    समाजी सोच हो मेरी।
    रचूँ मैं छंद मानुष हित,
    करूँ अर्पण शरण तेरी।
    .
    करूँ मैं देश सेवा में,
    समर्पण यह बदन अपना।
    प्रभो अरमान इतना सा,
    करो पूरा यही सपना।
    .
    यही है प्रार्थना मेरी,
    सुनो अर्जी प्रभो मेरी।
    नहीं विश्वास दूजे पर,
    रही आशा सदा तेरी।


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

  • हम तुम दोनों मिल जाएँ

    हम तुम दोनों मिल जाएँ

    शादी
    shadi

    मुक्तक (१६मात्रिक) हम-तुम

    हम तुम मिल नव साज सजाएँ,
    आओ अपना देश बनाएँ।
    अधिकारों की होड़ छोड़ दें,
    कर्तव्यों की होड़ लगाएँ।

    हम तुम मिलें समाज सुधारें,
    रीत प्रीत के गीत बघारें।
    छोड़ कुरीति कुचालें सारी,
    आओ नया समाज सँवारें।

    हम तुम मिल नवरस में गाएँ,
    गीत नए नव पौध लगाएँ।
    ढहते भले पुराने बरगद,
    हम तुम मिल नव बाग लगाएँ।

    मंदिर मसजिद से भी पहले,
    मानवता की बातें कहलें।
    मुद्दों के संगत क्यों भटके,
    हम तुम मिलें भोर से टहलें।

    हम तुम सागर सरिता जैसे,
    जल में जल मिलता है वैसे।
    स्वच्छ रखे जलीय स्रोतों को,
    वरना जग जीवेगा कैसे।

    देश धर्म दोनो अवलंबन,
    मानव हित में बने सम्बलन।
    झगड़े टंटे तभी मिटेंगे,
    आओ मिल हो जायँ निबंधन।

    प्राकृत का संसार निभाएँ,
    सृष्टि सार संसार चलाएँ।
    लेकिन तभी सर्व संभव हो,
    जब हम तुम दोनो मिल जाएँ।
    . _______
    बाबू लाल शर्मा, “बौहरा” विज्ञ

  • भारतीय वायु सेना के सम्मान में कविता

    भारतीय वायु सेना के सम्मान में कविता

    भारतीय वायु सेना के सम्मान में कविता

    भारतीय वायु सेना के जवानों के,
    सम्मान में सादर समर्पित छंद,
    . (३०मात्रिक (ताटंक) मुक्तक)


    मेरे उड़ते….
    .. ….. बाजों का
    चिड़ीमार मत काँव काँव कर,
    काले काग रिवाजों के।
    वरना हत्थे चढ़ जाएगा,
    मेरे उड़ते बाज़ों के।
    बुज़दिल दहशतगर्दो सुनलो,
    देख थपेड़ा ऐसा भी।
    और धमाके क्या झेलोगे,
    मेरे यान मिराजों के।


    तू जलता पागल उन्मादी,
    देख भारती साजों से।
    देख हमारे बढ़े कदम को,
    उन्नत सारे काजो से।
    समझ सके तो रोक बावरे,
    डीठ पिशाची बातों को।
    बचा सके तो बचा कागले,
    मेरे उड़ते बाज़ों से।


    काग पिशाची संग बुला ले,
    चीनी मय सब साजों के।
    नए हौंसले देख हमारे,
    शासन के सरताजों के।
    करें हिसाब पुराने सारे,
    अब आओ तो सीमा पर।
    पंजों में फँस कर तड़पोगे,
    मेरे उड़ते बाजो के।


    हमने भेजे खूब कबूतर,
    . पंचशील आगाजों का।
    हम कहते थेे धीरज रख तू,
    … खून पिये परवाजों का।
    तू मानें यह थप्पड़ खाले,
    . अक्ल तुझे आ जाए तो।
    यह तो बस है एक झपट्टा,
    . मेरे उड़ते बाजों का।


    हमला झेल सके तो कहना,
    . रण बंके जाँबाजों का।
    सिंहनाद क्या सुन पाएगा,
    . रण के बजते बाजों का।
    पहले मरहम पट्टी करले,
    . तब जवाब भिजवा देना।
    फिर से भेजें ? श्वेत कबूतर,
    . देखें हाल जनाजों का?


    काशमीर जो स्वर्ग भारती,
    . घाटी है शहबाजों की।
    डल तो पुण्य सरोवर जिसमेंं,
    . चलती किश्ती नाजों की।
    कैसे दे दूँ केशर क्यारी,
    . यादें तेरी अय्यारी।
    होजा दूर निगाहों से तू,
    . मेरे उड़ते बाजों की।


    जिसमें यादें बसी हुई है,
    . अब तक भी मुमताजों की।
    सैर सपाटे करते जिसमें,
    . राजा व महाराजों की।
    काशमीर को जला सके क्या,
    . भीख मिले हथियारों से।
    निगाह तेज है,भाग कागले,
    . मेरे उड़ते बाज़ों की।


    हमने तो बस मान दिया था,
    . दबी हुई आवाजों को।
    दिल से हमने साथ दिया था,
    . तुम जैसे नासाज़ों को।
    तूने शांत राजहंसो सँग,
    . सोये सिंह जगाए हैं।
    तूने क्रोधित कर डाला है,
    . मेरे उड़ते बाज़ों को।


    यह है भारत वर्ष जहाँ पर,
    . आदर सभी समाजों को।
    चश्मा रखकर देख बावरे,
    . सादर सभी मिजाजों को।
    आसतीन के नाग तुम्हारे,
    . तुमको जहर पिलाते है।
    खूब दिखाई देतें हैं ये,
    . मेरे उड़ते बाज़ों को।


    खुद का पिछड़ापन दूर करो,
    . बचो कबूतरबाजों से।
    वरना हम तो लेना जाने,
    . मूल सहित सब ब्याजों से।
    मानव हो मानवता सीखो,
    . समझो भाव कुरानों का।
    पाक उलूक बचा ले पंछी,
    . मेरे उड़ते बाज़ों से।

    आगे बढ़ना सीख सपोले,
    . मंथन सभी सुराजों से।
    पहले घर मे निपट खोड़ले,
    . उग्र दीन नाराजों से।
    सीख हमारे मंदिर मस्जिद,
    . गीता गीत कुरानों को।
    नहीं बचेंगे आतंकी अब,
    . मेरे उड़ते बाज़ों से।


    शर्मा बाबू लाल लिखे हैं,
    . छंद चंद अलफाजों पे।
    करूँ समर्पित लिख सेना के,
    . पवन वीर जाँबाजो पे।
    याद करें हम पवन पुत्र के,
    . पवन वेग रण वीरों की।
    बहुत नाज रखता है भारत,
    . मेरे उड़ते बाज़ो पे।
    . . ._______
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

  • जीत मनुज की

    जीत मनुज की

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    . (१६,१६)

    काल चाल कितनी भी खेले,
    आखिर होगी जीत मनुज की
    इतिहास लिखित पन्ने पलटो,
    हार हुई है सदा दनुज की।।

    विश्व पटल पर काल चक्र ने,
    वक्र तेग जब भी दिखलाया।
    प्रति उत्तर में तब तब मानव,
    और निखर नव उर्जा लाया।
    बहुत डराये सदा यामिनी,
    हुई रोशनी अरुणानुज की।
    काल चाल कितनी भी खेले,
    आखिर,………………….।।

    त्रेता में तम बहुत बढा जब,
    राक्षस माया बहु विस्तारी।
    मानव राम चले बन प्रहरी,
    राक्षस हीन किये भू सारी।
    मेघनाथ ने खूब छकाया,
    जीत हुई पर रामानुज की।
    काल……….. …. ,…,…।।

    द्वापर कंश बना अन्यायी,
    अंत हुआ आखिर तो उसका।
    कौरव वंश महा बलशाली,
    परचम लहराता था जिसका।
    यदु कुल की भव सिंह दहाड़े,
    जीत हुई पर शेषानुज की।
    काल……. ….. …. ………।।

    महा सिकंदर यवन लुटेरे,
    अफगानी गजनी अरबी तम।
    मद मंगोल मुगल खिलजी के,
    अंग्रेजों का जगती परचम।
    खूब सहा इस पावन रज ने,
    जीत हुई पर भारतभुज की।
    काल……………. ……….।।

    नाग कालिया असुर शक्तियाँ,
    प्लेग पोलियो टीबी चेचक।
    मरी बुखार कर्क बीमारी,
    नाथे हमने सारे अनथक।
    कितना ही उत्पात मचाया,
    जीत हुई पर मनुजानुज की।
    काल…………. ….. ……..।।

    आतंक सभी घुटने टेकें,
    संघर्षों के हम अवतारी।
    मात भारती की सेवा में,
    मेटें विपदा भू की सारी।
    खूब लड़े हैं खूब लडेंगें,
    जीत रहेगी मानस भुज की।
    काल…….. …… ………..।।

    आज मची है विकट तबाही,
    विश्व प्रताड़ित भी है सारा।
    हे विषाणु अब शरण खोजले,
    आने वाला समय हमारा।
    कुछ खो कर मनुजत्व बचाये,
    विजयी तासीर जरायुज की।
    काल…….. ……………….।।


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा *विज्ञ*

  • मातृभूमि वंदना

    ताटंक छंद
    विधान- १६,१४ मात्रा प्रति चरण
    चार चरण दो दो चरण समतुकांत
    चरणांत मगण (२२२)

    मातृभूमि वंदना

    मातृभूमि वंदना

    वंदन करलो मातृभूमि को,
    पदवंदन निज माता का।
    दैव देश का कर अभिनंदन,
    वंदन जीवन दाता का।
    सैनिक हित जय जवान कहें हम,
    नमन शहीद, सुमाता को।
    जयकिसान हम कहे साथियों,
    अपने अन्न प्रदाता को।

    विकसित देश बनाना है अब,
    जय विज्ञान बताओ तो।
    लेखक शिक्षक कविजन अपने,
    सबका मान बढ़ाओ तो।
    लोकतंत्र का मान बढ़ाना,
    भारत के मतदाता का।
    संविधान का पालन करना,
    जन गण मन सुख दाता का।

    वंदन श्रम मजदूरों का तो,
    हम सब के हितकारी हो।
    मातृशक्ति को वंदन करना,
    मानव मंगलकारी हो।
    देश धरा हित प्राण निछावर,
    करने वाले वीरों का।
    आजादी हित मिटे हजारों
    भारत के रण धीरों का।

    प्यारे उन के परिजन को भी,
    वंदित धीरज दे देना।
    नीलगगन जो बने सितारे,
    आशीषें कुछ ले लेना।
    भूल न जाना वंदन करना,
    सच्चे स्वाभिमानी का।
    नव पीढ़ी को सिखा रहे उन,
    देश भक्ति अरमानी का।

    वंदन करलो पर्वत हिमगिरि,
    सागर,पहरेदारों का।
    देश धर्म हित प्रणधारे उन,
    आकाशी ध्रुव तारों का।
    जन गण मन में उमड़ रही जो,
    बलिदानी परिपाटी का।
    कण कण भरी शौर्य गाथा,
    भारत चंदन माटी का।

    ग्वाल बाल संग वंदन करना
    अपने सब वन वृक्षों का।
    वंदन भाग्य विधायक संसद
    नेता पक्ष विपक्षों का।
    भूले बिसरे कवि के मन से,
    वंदन उन सबका भी हो।
    अभिनंदन की इस श्रेणी में,
    हर वंचित तबका भी हो।
    . ————
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा , विज्ञ