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    तोड़ दो बंधन की जंजीरें -रमेश गुप्ता’प्रेमगीत’

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  • मां गंगा हूं कहलाती-इंदुरानी उत्तरप्रदेश

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  • कहाँ बनाऊँ आशियां – मनीभाई नवरत्न

    कहाँ बनाऊँ आशियां – मनीभाई नवरत्न

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  • मैं चली आलू छिलने- ईश्वर सत्ता पर कविता

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  • मशाल की मंजिल – मनीभाई नवरत्न

    मशाल की मंजिल – मनीभाई नवरत्न

    मशाल की मंजिल :-
    रचनाकार:- मनीभाई नवरत्न
    रचनाकाल :- 16 नवम्बर 2020

    ज्ञान
    सतत विकासशील
    लगनशील,
    है जिद्दी वैज्ञानिक I
    वह पीढ़ी दर पीढ़ी
    बढ़ा रहा अपना आकार I
    वह कल्पना करता
    सिद्धांत बनाता स्वयंमेव
    उसकी प्रयोगशाला ये दुनिया।
    हम क्या ?
    बोतल में भरी रसायन
    या फिर बिखरी हुई मॉडल
    दीवाल में झूलता हुआ,
    कंकाल तंत्र सदृश।

    वो हमें परखता,देखता।
    हम पर घटित प्रतिक्रियाओं का
    सूक्ष्म निरीक्षण कर पुष्टि करता,
    नवीन खोज की
    पर अंतिम नहीं।
    अब तक वो पहुँच गया होता
    अपने निष्कर्ष में।
    हमने ही अड़चनें डाली,
    उसके अनुसंधान प्रक्रिया में I
    कोशिश की है
    उसे विकारग्रस्त बनाने की,
    जैसे कोई अतिभावुक प्राणी को,
    आ जाता है वैराग्यभाव
    अनायास।

    हमने कमियाँ गिनाईं हैं
    उसके खोज की गई उपलब्धियों पर I
    अकारण बिना जाने,
    चूँकि आसान होता है
    कारणों को जानना
    परिणाम आने के बाद ।

    पर ज्ञान भ्रमित नहीं
    वो हमारी उपज नहीं।
    जो हमारे कहने मात्र से दिशा बदले।
    हम ही भूल जाते
    अहं दिखाते ।
    बन जाते ज्ञानवान।
    क्या कोई मशाल पकड़कर
    स्वयं ज्योति बन सकता है?
    मशाल धरोहर है
    जो हमें मिला है
    आलोकित होने की चाह में।

    जग की इस मैराथन दौड़ में
    मशाल निरंतर आगे बढ़े I
    धावक के पड़ाव से पहले
    सौंपे जाये सुपात्र को।
    मशाल की मंजिल
    हम तक सीमित नहीं
    न ही होना चाहिए I

    मशाल से मोह
    या उसे एकांगी करना
    लौ धीमा करना ही तो है।
    इतिहास गवाह है
    अकेले हाथ में पड़कर
    कई मशालें बुझ चुकी हैं
    जो जलती तो
    संभवतः ज्यादा
    प्रकाशवान होता संसार।

    [ मनीभाई नवरत्न ]