बंद करो तुम आतंकवाद- अशोक शर्मा (आतंकवाद विरोधी दिवस कविता)
मानव से मानव का झगड़ा,
बढ़ रहा है कितना तगड़ा।
हो रहे हैं नरसंहार,
देश देश से अत्याचार ।
मर रहा मानव दोष क्या,
ऐसा है नर में जोश क्या,
उन्नति का कैसा आस होता।
जिसमें मानव विनाश होता।
सीमाओं का झगड़ा बंद करो,
आपस का रगड़ा बंद करो,
दो गज भर मिट्टी की खातिर,
जाँ लेने में ना बनो शातिर।
शांति की बातें शांति से,
हर बात करो मत क्रांति से,
चुपके से तुम ना वार करो
मानवता ना शर्मशार करो।
जो समझे तुम्हें मित्र अपना
रखो जवाँ मित्रता का सपना।
पीठ में ना खंजर वार करो,
मर्यादा ना तार तार करो।
छवि तेरी ना हो कहीं दुर्बल,
कहीं छीन ना जाये तेरा संबल
प्रेम से यारी का हाथ मिलाओ
विश्व पटल पर मान बढ़ाओ।
विनास कर क्या करोगे तुम,
करनी अपनी भरोगे तुम।
हर जाँ का मूल्य समझना होगा,
यह घृणित कार्य रुकना होगा।
सरहदों पर ताना तानी है ,
खून में सनती जवानी है।
हो रहे हैं वतन बरबाद ,
बंद करो तुम आतंकवाद।
बंद करो तुम आतंकवाद।।
●◆●अशोक शर्मा●◆●