भ्रमित मानस
सुमन संग वंदन करूं, प्राण अर्पित राम चरणों में
मैं दीन-दु:खी जग-मारा, आया हूं आज चरणों में ।
मैं मूरख मोह- माया में भरमाया
छोड़ राम आसरा, जग-माया को अपनाया।
लिप्त हुआ मैं, हाड-मास की काया में
भ्रमित हुआ मैं, नव- यौवन की छाया में ।
मैं अज्ञानी काम-कर्म में लिप्त हुआ
ना राम भजन ना स्मरण, काम रस में तृप्त हुआ।
ना किया मैंने तरुणाई में, राम नाम सुमिरन
आया बुढ़ापा देख दशा, बेचैन हुआ ये मन ।
समझ ना पाया मैं मूरख, इस भ्रम जाल को
हुआ दु:खी दर-दर भटका, जब देखा जंजाल को ।
तब मुझ अज्ञानी को ज्ञान हुआ, वृद्धावस्था में राम स्मरण हुआ ।
तब दौड़ा भागा भागा आया, कमलनयन राम चरणों में ।।
कवि- हेमेन्द्र परमार