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  • भ्रमित मानस

    भ्रमित मानस

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सुमन संग वंदन करूं,  प्राण अर्पित राम चरणों में
    मैं दीन-दु:खी जग-मारा,  आया हूं आज चरणों में ।
    मैं मूरख मोह- माया में भरमाया
    छोड़ राम आसरा,  जग-माया को अपनाया।
    लिप्त हुआ मैं,  हाड-मास की काया में
    भ्रमित हुआ मैं,  नव- यौवन की छाया में ।
    मैं अज्ञानी काम-कर्म में लिप्त हुआ
    ना राम भजन ना स्मरण, काम रस में तृप्त हुआ।
    ना किया मैंने तरुणाई में,  राम नाम सुमिरन
    आया बुढ़ापा देख दशा,  बेचैन हुआ ये मन ।
    समझ ना पाया मैं मूरख,  इस भ्रम जाल को
    हुआ दु:खी दर-दर भटका,  जब देखा जंजाल को ।
    तब मुझ अज्ञानी को ज्ञान हुआ,  वृद्धावस्था में राम स्मरण हुआ ।
    तब दौड़ा भागा भागा आया,  कमलनयन राम चरणों में ।।

    कवि- हेमेन्द्र परमार

  • प्रेरणादायक दोहे- हेमेंद्र परमार मनु

    प्रेरणादायक दोहे- हेमेंद्र परमार मनु

    नीच कर्म को त्यागिए, सौम्य  गुण अपनाओ
    सौम्य गुण जगजीवन है,  सौम्य लक्ष्य बनाओ ।।

    गुरु के चरण पखारिए,  करे गुरु की सेवा
    गुरु के आशीर्वाद से,  मिलती रहे मेवा ।।

    मीठी वाणी बोलकर,  सब का चित्त हरिए
    सबके चित्त में बसकर, “मनु” काम निकालिए  ।।

    गुरु को प्रणाम कीजिए,  गुरु मधु का प्याला
    गुरु बिना “मनु” ज्ञान नहीं,  गुरो ज्ञान शिवाला।।

    दोहा छंद-  हेमेंद्र परमार मनु

  • दिन गुज़र गए बातें रह गई

    दिन गुज़र गए बातें रह गई

    वह दिन गुज़र गए, पर बात रह गई
    उसके प्यार में, हस्ती हमारी ढह गई

    याद आती हैं वो बातें जो उसने कही
    प्यार किया उसनें,चाहे धोखे में सही

    पल-पल घुटता रहा, उसकी यादों में
    जिंदगी हो गई, दफन उसके वादों में

    आज तक याद है , जहरीली वो बातें
    उसकी यादों में बिताई, गम भरी रातें

    वो मेरे अथाह दर्द पर हँस कर रह गई
    वह दिन गुज़र गए, पर बात रह गई

    प्यार का दर्द क्या है उसने मुझे बताया
    उसकी यादों ने, पल-पल मुझे सताया

    बातें उसकी, मधुर-मधुर प्यारी-प्यारी
    लगती थी वह मुझे सोन परी सी प्यारी

    उस सोन परी की बातें दिल में रह गई
    जिंदगी मेरी उसके हर दर्द को सह गई

    कटुता की ऐसी, आग लगी जीवन में
    जैसे हरियाली युक्त, आग लगी वन में

    कटुता की अग्नि में सारी यादें जल गई
    वादों की चट्टानें बर्फ की भांति गल गई

    दोनों की पीडाएँ, दर्द बनकर रह गई
    वह दिन गुज़र गए, पर बात रह गई

    हेमेन्द्र परमार

  • वन्दनवार:भारतीय के शत्रु हैं भारतीय ही आज

    वन्दनवार:भारतीय के शत्रु हैं भारतीय ही आज

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    =================
    गुरु की आज्ञा मानकर,
    केरल की छवि देख।
    रहने वालों पर लिखे,
    सबने सुन्दर लेख। १।
    सबके लेखों में मिले,
    जीवन सुखमय गान।
    शंकर के इस लेख को,
    मिली अलग पहचान।२।
    भारतीय हैं मानते,
    अतिथि देव की रीति ।
    इसीलिए आगंतुकों,
    से करते हैं प्रीति ।३।
    किन्तु परस्पर हैं बँटे,
    पाने को निज ख्याति।
    तुम नीची मै उच्च हूँ,
    कुल से मेरी जाति। ४।
    यही विदेशी देखकर,
    भारतीय की खोट।
    निम्न वर्ग पर कर रहे ,
    गहरी-गहरी चोट। ५।
    निम्न वर्ग के लोग तब,
    उच्च वर्ग को छोड़।
    छोड़ विदेशी साथ भी,
    लिए मार्ग निज मोड़। ६।
    यही विदेशी बढ रहे,
    उच्च वर्ग की ओर।
    मौका मिलते ही किया,
    वार महा घनघोर।७।
    भारतीय के शत्रु हैं,
    भरतीय ही आज।
    इसीलिए आगे बढ़ा,
    यवन-यहूदी राज। ८।
    =================
    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर 🙏
    **********************

  • झाँसी की रानी- एक श्रद्धांजलि – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    रानी लक्ष्मीबाई
    झाँसी की रानी

    झाँसी की रानी- एक श्रद्धांजलि – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    झाँसी की रानी की है अजब कहानी

    झाँसी को बचाने
    दी प्राणों की कुर्बानी

    सादे जीवन का
    बीज उसने बोया

    चार वर्ष की आयु में
    अपनी माँ को खोया

    बाल्यकाल से ही
    वह बिल्कुल निडर थी

    वीरता उसके
    मन में रची बसी थी

    घोड़े की सवारी
    लगती थी उसे न्यारी

    झाँसी को बचाने वह
    अंग्रेजों पर पड़ी भारी

    मन से निडर वह
    तन से सजग थी

    देश प्रेम की भावना
    उसके मन में बसी थी

    झाँसी से उसको कुछ
    विशेष ही लगाव था

    उसके कोमल मन पर
    शास्त्रों का प्रभाव था

    उसे मराठी , संस्कृत और
    हिंदी का ज्ञान था

    शस्त्रों से उसको
    विशेष ही लगाव था

    उसकी कुंडली में
    रानी का योग था

    मन में उसने अपने
    स्वतंत्रता का बीज बोया था

    बुंदेलों की परम्परा की
    यह महान रानी थी

    बुंदेले हरबोलों के मुहं
    हमने सुनी कहानी थी

    खूब लड़ी मर्दानी वह तो
    झाँसी वाली रानी थी

    नारी उत्थान की वह
    एक अनुपम कहानी थी

    1857 की वह तलवार
    पुरानी थी

    इस महान रानी ने
    झाँसी की बागडोर थामी थी

    यह कहानी उसके
    बलिदान की कहानी है

    जिसने सब मे देश प्रेम की
    नीव डाली थी

    खूब लड़ी मर्दानी वह तो
    झाँसी वाली रानी थी

    खूब लड़ी मर्दानी वह तो
    झाँसी वाली रानी थी