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  • एक ही प्रश्न – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    एक ही प्रश्न – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मै हर एक से
    पूछता हूँ
    केवल एक ही प्रश्न
    क्या तुमको पता है
    इंसानियत का पता ठिकाना
    मानवता के घर का पता
    नेकी के बादलों में उड़ते
    उस परिंदे के
    आशियाँ की खबर

    जवाब यही मिलता
    इंसानियत मानव के दिल में
    पलती है
    इस उत्तर ने
    मुझे कोई विशेष
    संतुष्टि प्रदान नहीं की
    मै और ज्यादा चिंचित हो गया
    और स्वयं ही इसका
    उत्तर खोजने लगा

    मैंने पाया
    कि जो मानव
    अपनी कुप्रवत्तियों
    पर अंकुश नहीं लगा पाता
    उसके दिल में इंसानियत
    किस तरह पल और बढ़ सकती है

    विचारों की श्रृंखला
    और मुखरित हुई

    एक और विचार ने
    जन्म लिया
    कि यह मानव जो
    मानव शरीर के
    रंगों का भेद करता है
    जातिवाद, धर्मवाद
    को अपनी अनैतिक इच्छाओं
    की पूर्ति के लिए
    आतंकवाद के नाम से
    मोहरे की तरह
    इस्तेमाल करता है
    उसके दिल में
    इंसानियत किस तरह पल
    और बढ़ सकती है

    चिंतन प्रवृति ने
    फिर जोर मारा
    तो कुछ और ज्यादा सूत्र
    हाथ आये
    कि लोगों की
    तरक्की की राह में रोड़ा
    बनने वाला
    यह मानव
    शारीरिक व मानसिक हिंसा
    में लिप्त मानव
    हर क्षण
    नैतिक मूल्यों का
    ह्रास करता मानव
    विलासितापूर्ण
    वैभव्य प्राप्ति
    में लिप्त मानव
    कामपूर्ण प्रवृत्ति के चलते
    चरित्र खोता मानव
    शिक्षक से भक्षक बनता मानव
    गुरु से गुरुघंटाल
    होता मानव
    मर्यादाओं व सीमाओं को तोड़ता मानव
    मानव से मानव को
    अलग करता मानव
    अहं में जीता मानव
    हर पल गिरता मानव
    और क्या कहूँ
    और क्या लिखूं
    ये दिल को कचोटने वाली
    क्रियाएँ
    आत्मा को झिंझोड़ने वाली घटनाएं
    इन घटनाओं में लिप्त मानव
    के हृदय में इंसानियत न
    तो पल सकती है और न ही
    बढ़ सकती है
    ऐसे मानव से इंसानियत कोसों
    दूर भागती है
    समझ नहीं आता
    क्या होगा इस मानव का
    मानव रुपी इस दानव का …………………….

  • प्रेरणा- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    प्रेरणा- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मै
    किस्सों को
    प्रेरणा का
    स्रोत
    नहीं मानता

    मै झांकता हूँ
    जिंदगी में उनकी
    जिन्हें
    प्रेरणा स्रोत बनने में
    उस स्तर
    तक पहुँचने में
    अपना
    सम्पूर्ण जीवन
    सर्वस्व समर्पित
    करना पड़ा
    जिनका जीवन
    हर क्षण
    हर पल की
    मुसीबतों
    मुश्किलों
    में भी
    स्वयं को
    संभाल

    गिरने की प्रवृत्ति
    से दूर
    डगमगाने की
    प्रवृत्ति
    से दूर
    संभलना
    और
    दोबारा
    बुलंद हौसलों
    का आसरा
    लेकर
    अग्रसर होना
    हर पल
    एक आदर्श
    स्थापित करना

    प्रेरणा
    स्रोत बन उभरना
    पीछे
    मुड़कर देखना
    इनकी नियति
    नहीं होती

    ये कायम करते हैं
    नित नई – नई मिसालें
    नित नए – नए
    आदर्श
    ये रुकते नहीं
    ये पथ प्रदर्शक
    बन
    स्थापित करते हैं
    नए आयाम
    वे करते
    हैं
    आदर्शों का विस्तार

    संकोच और संकुचन में
    इनका विश्वास नहीं
    ये निश्चल मन से
    अपनी
    इच्छाओं का
    गला घोंट
    उन पर
    अंकुश लगा
    स्वयं को
    हर परिस्थिति
    से
    जूझने के लिए
    करते हैं तैयार

    ये मानसिक, शारीरिक
    सामाजिक व धार्मिक
    तौर पर
    स्वयं को परिपक्व कर
    बढते हैं
    अग्रसर होते हैं
    तब तक
    जब तक
    मंजिल
    इनके क़दमों का
    निशाँ नहीं हो जाती

  • जिंदगी- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    प्रेरणा दायक कविता

    जिंदगी- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    जिंदगी
    अजनबी सी
    असह्य सी
    तिरस्कृत सी
    विफलता के
    दौर से गुजरती

    जिंदगी
    अपनी मौलिकता से
    पीछे छूटती
    निंदा का
    शिकार होती
    आज
    उस मुकाम पर
    आ स्थिर हुई है

    जहां
    भावुकता ,
    मर्यादा ,
    तपस्या
    सब कुछ
    शापित सा
    अनुभव होता है
    जिंदगी के
    दैनिक प्रपंचों
    ने इसे
    दयनीय मुकाम की
    सौगात दी है
    जिंदगी आज
    कुपात्र की मानिंद
    प्रतीत होती है
    जिंदगी
    मूल्यहीन सी
    हास्यास्पद सी
    अपनी ही
    व्यथा पर
    स्वयं को
    असहज सी पा रही है
    अनुकूल कुछ भी नहीं
    जीवन के
    प्रतिकूल चल रही हवायें
    मानसिकता में
    बदलाव
    आस्तिक
    होने का दंभ
    भरती जिंदगी
    नीरसता
    धारण किये
    तीव्र गति से
    नश्वरता की ओर
    अग्रसर होती
    जिंदगी का
    स्वयं के ऊपर
    अतिक्रमण
    किया जाना
    स्वयं को दुराशीष देना

    अवसाद में जीना
    पल – पल टूटना
    क्षण – क्षण बिखरना
    जिंदगी के
    रोयें – रोयें
    का भभकना

    जिंदगी की
    स्वयं के प्रति
    छटपटाहट

    स्वयं के लिए चीखना
    स्वयं को दुत्कारना
    जिंदगी का
    खुद के पीछे
    भागना

    इच्छा तो
    बहुत थी
    काश
    जिंदगी मेरी
    किसी के
    एकाकीपन
    में कुछ
    रंग भर पाती

    काश
    जिंदगी मेरी दूसरों के
    दुखों के समंदर
    को कुछ कम कर पाती
    लज्जा न महसूस करती
    मेरी जिंदगी
    मुझ पर
    अपमानित ना महसूस करती
    जिंदगी उलझाव
    या भटकाव
    का नाम न होती
    जिंदगी छटपटाहट
    का नाम ना होती
    जगमगाहट का पयाम होती
    जिंदगी
    आशीर्वादों का समंदर होती
    जिंदगी दुत्कार ना होती
    जिंदगी आनंद
    का पर्याय होती
    तलाश जिंदगी की
    केवल अर्थपूर्ण
    जिंदगी होती
    केवल अर्थपूर्ण
    जिंदगी होती

  • प्लेटफार्म – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    प्लेटफार्म – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मै अपनी
    यात्रा के एक चरण
    में
    ट्रेन में बैठा
    अपनी मंजिल की ओर
    बढ़ रहा हूँ
    बीच यात्रा में
    एक प्लेटफार्म
    का दृश्य देख
    कुछ लिखने की उत्सुकता
    मन में जागृत हुई
    प्लेटफार्म शब्द
    हमारे मन में
    अनके विचारों
    को जन्म
    देता है
    कुछ इसे
    यात्रा के बीच
    एक पड़ाव
    मानते हैं
    कुछ इसे
    अल्पकाल के लिए
    एक सराय
    मानते हैं
    कुछ इसे तफरी के लिए
    सबसे उपयुक्त
    जगह मानते हैं
    तो इसे कुछ
    लोग समय
    पास करने का सर्वश्रेष्ठ
    साधन मानते हैं
    कुछ इसे मंजिल की
    यात्रा का एक पड़ाव मानते हैं
    पर मै इसे
    कुछ दूसरे
    नज़रिए से देखता हूँ
    प्लेटफार्म शब्द
    मेरे लिए
    विभिन्न संस्कृतियों ,
    संस्कारों, विचारों
    के मिलन की
    एक ऐसी अनुपम कृति है
    जहां बिखराव नहीं दिखाई देता
    यह एक जुड़ाव का केंद्र है
    यह भिन्न – भिन्न
    समुदायों रीतिरिवाजों
    खान-पान व व्यवहारों
    को एक दूसरे से
    जोड़ने का ऐसा माध्यम है
    जो भारत जैसे देश में
    अनेकता में एकता को
    चरितार्थ करता है
    प्लेटफार्म पर
    कुछ लोग अनमने से
    कुछ अपनी ट्रेन का
    इंतज़ार करते
    कुछ एक स्वादिष्ट
    व्यंजनों में व्यस्त
    कुछ बोझ के मारे
    कुली की बात टोहते
    कहीं चाय-चाय की आवाज
    तो कहीं पकोडे वाले का
    अलग सा अंदाज़
    बच्चों को अपनी और आकर्षित
    करते खिलोने वाले
    कहीं रिश्तेदारों
    को लेने आये लोग
    इस बात से परेशान हैं
    कि ट्रेन लेट क्यों हैं
    तो कहीं
    गरीब बच्चे
    लोगों को
    करतब दिखाते
    अपने पेट
    की भूख के
    जुगाड़ में
    तो कोई
    पान की पीक को
    कहीं किनारे
    धीरे से
    पिचकारी मार
    अपने मुख की
    कुंठा को शांत करता
    तो किसी
    को अपनी
    ट्रेन चूक जाने
    का गम
    ये सारे दृश्य
    एक प्लेटफार्म
    की गरिमा को
    और विस्तार देते हैं
    ये सारे चरित्र
    प्लेटफार्म को
    गरिमामय स्वरूप
    प्रदान करते हैं
    अनाउंससमेंट होते ही
    अपने – अपने सामान
    के साथ तैयार लोग
    ट्रेन में बैठ
    प्रस्थान करते दिख रहे हैं

    इसी बीच
    मेरी भी ट्रेन की
    घंटी सुनाई दी
    और मै
    अपनी आगे की यात्रा
    की ओर
    बढ़ चला
    इसी उम्मीद से
    कि
    सभी दूसरे
    यात्रीगण
    भी अपनी – अपनी मंजिल
    तक सुरक्षित पहुचें

  • भाग्य- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    भाग्य- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    भाग्य पर भरोसा न कर
    कर्म से परे न हट
    कर्म धरा पर उतर
    भाग्य को मुटठी में कर

    भाग्य पर भरोसा न कर

    सफलता मिलेगी तुझे
    यह सोच बढ़ा कदम
    कर्महीन बन धरा पर
    भाग्य पर संकट न बन

    भाग्य पर भरोसा न कर

    मंजिलें आसां नहीं पर
    चाहतीं परिश्रम अथक
    रास्ते कठिन पर
    चाहते अनगिनत परीक्षण

    भाग्य पर भरोसा न कर

    कल का भरोसा न कर
    वर्तमान परिवर्तित कर
    जीवन संवार ले
    भाग्य को निखार दे

    भाग्य पर भरोसा न कर

    रुकना तेरी नियति नहीं
    आगे बढ़, बढ़ते चल
    छू ले तू आसमां , फिर
    भाग्य पर इतरा के चल

    भाग्य पर भरोसा न कर