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  • प्यार की बोली का, प्यार से जवाब दो- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    प्रेम

    प्यार की बोली का

    प्यार की बोली का
    प्यार से जवाब दो
    प्यार के पालने में
    जिन्दगी गुज़ार दो

    प्यार एक एहसास है
    घृणा को त्याग दो
    प्यार की बोली का
    प्यार से जवाब दो

    प्यार से बोलो सभी से
    प्यार से मिलो सभी से
    प्यार एक उल्लास है
    यह नहीं उपहास है

    भावना प्यार की
    प्यार से जगा के देख
    अश्रुपूर्ण नेत्रों में
    आस तो जगा के देख

    दिल में किसी के प्यार की
    ज्योति तो जगा के देख
    प्यार मंद – मंद पवन
    यह नहीं आघात है

    प्यार एक चाहत है
    प्यार विश्वास है
    प्यार पतवार है
    प्यार अलंकार है

    प्यार को पतवार बना
    जीवन संवार लो
    प्यार की बोली का
    प्यार से जवाब दो

  • कठपुतली मात्र हैं हम

    कठपुतली मात्र हैं हम

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कुछ भ्रांतियां ऐसी जो, हास्यास्पदसी लगती हैं
    कहावतें भी जीवन का, प्रतिनिधित्व करती हैं।।
    ज़मीं पे गिरी मिठाई को, उठाकर नहीं खाना है,
    वो बोले मिट्टी की काया, मिट्टी में मिल जाना है।।

    बंदे खाली हाथ आए थे खाली हाथ ही जाएंगे,
    फिर बेईमानी की कमाई, साथ कैसे ले जाएंगे।।
    रात दिन दौलत, कमाने में ही जीवन बिताते हैं,
    वो मेहनत की कमाई झूठी मोह माया बताते हैं।।

    पति-पत्नी का जोड़ा, जन्म-जन्मांतर बताते हैं,
    फिर क्यों आये दिन, तलाक़ के किस्से आते हैं।।
    सुना है बुराई का घड़ा एक न एकदिन फूटता है,
    फिर बुरे कर्म वालों का, भ्रम क्यों नहीं टूटता है।।

    ऊपर वाले के हाथों की कठपुतली मात्र हैं हम,
    फिर क्यों लोग, स्वयं-भू बनने का भरते हैं दम।।
    उसने भू-मण्डल, मोहक कृतियों से सजाया है,
    फिर क्यों उसके अस्तित्व पर सवाल उठाया है।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
    9928305806

  • तुम तो लूटोगे ही प्यारे,लुटेरों की बस्ती में

    तुम तो लूटोगे ही प्यारे,लुटेरों की बस्ती में

    पुकार रहे हो किससे बंदे
    खुद ही हो रहबर अपना।
    छिप रहे हो कहां कहां पे
    कहीं नहीं है घर अपना ।।

    आबरू की फिक्र है तुझे
    जाएगी कभी जो सस्ती में ।।
    तुम तो लूटोगे ही प्यारे ,
    हुस्न पाई लुटेरों की बस्ती में।।


    तेरी जिद करने को हासिल
    इस जग की सारी दौलतें।
    तुम्हें पता होना चाहिए ये कि
    यही बनेगी सारी आफतें।।

    दुकान सुनी करो तो सही
    जानोगे सब मौकापरस्ती में ।
    तुम तो लूटोगे ही प्यारे ,
    दौलत पाई लुटेरों की बस्ती में।।

    गर तुझमें खुशबू है प्यारे
    महकोगे एक दिन जहां में।
    इत्र की खुशबू उड़ जाएगी
    कर्म की खुशबू रहे समां में ।।

    दूजे करनी को अपना बताके
    रहते हो क्यों झूठी मस्ती में।।
    तुम तो लूटोगे ही प्यारे ,
    शोहरत पाई लुटेरों की बस्ती में।।

    #मनीभाई नवरत्न

  • जीवन – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    जीवन – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    जीवन स्वयं को प्रश्न जाल में
    उलझा पा रहा है

    जीवन स्वयं को एक अनजान
    घुटन में असहाय पा रहा है

    जीवन स्वयं के जीवन के
    बारे में जानने में असफल सा है

    जीवन क्या है इस मकड़जाल को
    समझ सको तो समझो

    जीवन क्या है , इससे बाहर
    निकल सको तो निकलो

    जीवन क्या है , एक मजबूरी है
    या है कोई छलावा

    कोई इसको पा जाता है
    कोई पीछे रह जाता

    जीवन मूल्यों की बिसात है
    जितने चाहे मूल्य निखारो

    जीवन आनंदित हो जाए
    ऐसे नैतिक मूल्य संवारो

    जीवन एक अमूल्य निधि है
    हर – क्षण इसका पुण्य बना लो

    मोक्ष मुक्ति मार्ग जीवन का
    हो सके तो इसे अपना लो

    नाता जोड़ो सुसंकल्पों से
    सुआदर्शों को निधि बना लो

    जीवन विकसित जीवन से हो
    पर जीवन उद्धार करो तुम

    सपना अपना जीवन – जीवन
    पर जीवन भी अपना जीवन

    धरती पर जीवन पुष्पित हो
    जीवन – जीवन खेल करो तुम

    चहुँ ओर आदर्श की पूंजी
    हर पल जीवन विस्तार करो तुम

    जीवन अंत ,पूर्ण विकसित हो
    नए नर्ग निर्मित करो तुम

  • मानव मन- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मानव मन- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मानव मन
    एक पंछी की भाँति
    उड़ता दूर गगन में
    कभी ना ठहरे
    एक डाल पर
    रैन बसेरा
    बदल – बदल कर
    बढ़ता जीवन पथ
    चाह उसे
    उन्मुक्त गगन की
    चंचल मन
    स्थिरता ठुकराए
    मन उसका
    विस्तृत – विस्तृत
    चाल भी है
    उसकी मतवाली
    संयमता , आदर्श , अनुशासन
    सभी उसके मन पटल पर
    अमित छाप छोड़ते
    फिर भी
    अस्तित्व की लड़ाई
    कर्मभूमि से
    पलायन न करने का
    उसका स्वभाव
    प्रेरित करता
    लड़ो , जब तक जीवन है
    संघर्ष करो
    एक डाल पर बैठकर
    अपने अस्तित्व को
    यूं न रुलाओ
    जियो और जियो
    कुछ इस तरह
    कि मरें तो
    अफ़सोस न हो
    और जियें कुछ
    इस अंदाज़ में
    कि बार – बार
    हार कर
    उठने का गम न हो
    उन्मुक्त
    इस तरह बढ़ें कि
    राह के पत्थर
    फूल बन बिछ जायें
    उडें कुछ इस तरह
    कि आसमान भी
    साथ – साथ उड़ने को
    मजबूर हो जाए
    आगे बढ़ें
    कुछ इस तरह
    कि तूफान की रफ्तार
    धीमी हो जाए
    आंधियां थम जायें
    मौजों को भी
    राह बदलनी पड़ जाये
    कुछ इस तरह
    अपने मन को
    दृढ़ इच्छा को
    पतवार बना
    रुकना नहीं है मुझको
    मन की अभिलाषा
    मन के अंतर्मन में जन्म लेती
    स्वयं प्रेरणादायिनी विचारों की श्रृंखला
    चीरकर हवाओं का सीना
    बढ़ चलूँगा
    कभी न रुकूंगा