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  • बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम – कविता

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम

    परिवार

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी
    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    समय पर जागोगे समय पर पढोगे तो अच्छे नम्बरों से पास हो जाओगे
    माता पिता तुम्हारे आशीर्वाद देंगे तुम्हें शहर में अपने तुम जाने जाओगे

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    समय पर जागोगे समय पर खेलोगे तो तन और मन प्रसन्न हो जाएगा
    जहां से भी निकलोगे स्मार्ट दिखोगे तुम सारा जहां तुमको प्रिंस बुलाएगा

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    अपने बड़ों का सम्मान किया जो तुमने सारा जहां तुमको गले से लगाएगा
    कर्त्तव्य की वादियों में जो उतर जाओगे नाम के आगे टाइटल लग जाएगा

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    सत्य की वादियों में जो उतर जाओगे तो जग में तुम्हारा नाम हो जाएगा
    अपने गुरु का सम्मान किया जो तुमने सारा जग तुम्हारे अधीन हो जाएगा

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

  • हंगामा क्यों कर रहे हो तुम – कविता

    हंगामा क्यों कर रहे हो तुम – कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    छोटी सी बात पर, हंगामा क्यों कर रहे हो तुम
    सियासत तुम्हारा ईमान नहीं , फिर क्यों झगड़ रहे हो तुम

    कुर्बान हुई जवानियों को, कुछ तो सम्मान दो
    राष्ट्र को सर्वोपरि समझो, यूं ही क्यों लड़ रहे हो तुम

    पल – पल जिए , पल – पल मरे जो आजादी के लिए
    उनकी वीरों की कुर्बानियों को , क्यों लजा रहे हो तुम

    भगत सिंग, सुखदेव, बिस्मिल चढ़ गए, फांसी के फंदे पर
    उनकी शहादत पर मगरमच्छी आंसू, क्यों बहा रहे हो तुम

    महसूस नहीं की तुमने , उन जवां दिलों की धड़कन
    क्यों उन वीरों के त्याग को झुठला रहे हो तुम

    हंगामा करना हो गयी है तुम्हारी आदत
    क्यों एक – दूसरे पर आरोप लगा रहे हो तुम

    बात करो देश प्रेम की , बात करो विकास की
    क्यों अपना बहुमूल्य समय गँवा रहे हो तुम

  • आओ चलें कुछ दूर – कविता

    आओ चलें कुछ दूर

    kavita

    आओ चलें कुछ दूर
    साथ – साथ
    लेकर विचारों की बारात

    आओ चलें

    बैठ नदी के तीर
    दें चिंतन को नींद से उठा
    कुछ वार्तालाप करें

    बीते दिनों के
    उन सामाजिक परिदृश्यों पर
    जिन्होंने जीवंत किया

    धार्मिकता , सामाजिकता को
    मानवता को , मानव मूल्यों को

    आओ चलें , बात करें
    उस समय के बहाव की

    मानव का धर्म के प्रति मोह की
    मानव मूल्यों की प्रतिदिन की खोज की

    विवश करती है हमें
    हम चिंतन शक्ति को ना विराम दें

    आओ चलें कुछ दूर

    वर्तमान सामाजिक परिदृश्य पर चिंतन करें
    उन कारणों को खोजें

    जिसने मानव मूल्यों के प्रति
    आस्था को कम किया

    मानवता रुपी संवेदनाओं को भस्म किया

    आओ चलें कुछ दूर

    चिंतन की परम श्रद्धेय स्थली की ओर
    चिंतन करें , मानव पतन के कारणों पर

    ऐसा क्या था विज्ञान में

    ऐसा क्या दे दिया विज्ञान ने
    किस रूप में हमने विज्ञान को वरदान समझा

    विज्ञान के अविष्कारों की चाह में हमने क्या खोया , क्या पाया
    उत्तर खोजेंगे तो पायेंगे

    हमने खोया
    सामाजिक विज्ञान ,

    मानव के मानव होने का कटु सच,
    हमने खोया , मानव की मानवीय संवेदनाओं का सच ,

    साथ ही खोया
    स्वयं के अस्तित्व की पहचान

    हमारी इस पुण्य धरा पर उपस्थिति

    क्यों संकुचित होकर रह गयी हमारी भावनायें
    क्यों हुआ आध्यात्मिकता से पलायन

    क्यों पड़ा हमारी संस्कृति वा संस्कारों पर
    विज्ञान का विपरीत प्रभाव

    शायद
    भौतिक सुख की लालसा
    विलासिता से वास्ता

    जीवन के चरण सुख होने का एहसास देते
    भौतिक संसाधनों की भेंट चढ़ गया

    शायद यही , शायद यही , शायद यही ………….

  • दिल अब भी रोता है मेरा – कविता

    दिल अब भी रोता है मेरा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

    फांसी के फंदों पर झूलते उन वीरों की

    उनकी माओं की सिसकती साँसों पर

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

    जो जवां भी न हो सके और हो गए शहीद

    उनके बलिदान उनकी वीर गाथाओं पर

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

    जिनकी पायल की छमछम सा मधुर स्वर खो गया कहीं अन्धकार में

    जिनकी चूड़ियों की खनक पर लगा गया विराम उन बहनों की व्यथा पर

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

    वो पिता जिनके बेटों ने खुद को कर दिया देश पर कुर्बान

    उनकी ग़मगीन साँसों पर

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

    पीड़ाओं के समंदर में जो डूबे

    उनकी मौत पर आज हो रही राजनीति को देखकर

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

    क्यूं कर भूल जाते हैं लोग उनकी वफाओ का सिला

    क्यूं कर राजनीति की गर्म रोटियाँ सेकने में व्यस्त हैं नेता

    उन मादरे वतन के शहीदों , उनकी क्षत्राणी माँ के लालों की शहादत पर

    मगरमच्छी आंसू बहाते नेताओं को देखकर

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

    शहादत उनकी बनी हमारी आजादी का सबब

    क्यूं कर उनकी शहादत को मुकाम न मिला

    पीर दिल की किसी को सुनाऊँ कैसे

    उनकी शहादत के ज़ज्बे से इन नेताओं को मिलाऊँ कैसे

    उन वीरों की शहादत को सलाम है मेरा

    उन वीरों के बलिदान को प्रणाम है मेरा

    दिल अब भी रोता है मेरा

    दिल का हर एक कोना सिसकता है मेरा

  • तेरे चरणों में पुष्प बनकर मैं बिखर जाऊं तो अच्छा हो- कविता

    तेरे चरणों में पुष्प बनकर मैं बिखर जाऊं तो अच्छा हो

    वर्षा बारिश

    तेरे चरणों में पुष्प बनकर मैं बिखर जाऊं तो अच्छा हो

    तेरे चरणों में दीप बनकर मैं प्रज्जवलित हो जाऊं तो अच्छा हो

    तेरे चरणों का नूर बनकर मैं खिल जाऊं तो अच्छा हो

    पीर दिल की भुलाकर मैं तुझ पर समर्पित हो जाऊं तो अच्छा हो

    तेरी इबादत के गीत बनकर मैं सँवर जाऊं तो अच्छा हो

    तेरा शागिर्द बनकर मैं रोशन हो जाऊं तो अच्छा हो

    तेरे मंदिर के बुर्ज़ पर ध्वज बन लहर जाऊं तो अच्छा हो

    तेरे दीदार की आरज़ू जो पूरी हो जाए तो अच्छा हो

    तेरे करम का सिला नसीब हो जाए तो अच्छा हो

    तेरे करम से भाग्य मेरा भी रोशन हो जाए तो अच्छा हो

    तेरे बन्दों की खिदमत में मेरी जिन्दगी गुजर जाए तो अच्छा हो

    तेरे नाम के साथ खामोश हो जाए जुबाँ मेरी तो अच्छा हो