Blog

  • स्त्री

    माँ बेटी

    स्त्री

    स्त्री मन की भावना है,

    ईश की आराधना है,

    जीवन की साधना है,

    सुखदायी प्रार्थना है।

    स्त्री वृषभानुजा है,

    विष्णु संग पद्मासना है,

    सिद्ध हुई उपासना है,

    समृद्धि की कामना है।

    स्त्री पतित पावनी है,

    चंचल चपल दामिनी है,

    श्री राम की जानकी है,

    खुशियों की पालकी है।

    स्त्री दुर्गा चंडिका भवानी है,

    महागौरी कुमारी कल्याणी है,

    शिवा चामुण्डा चण्डी है,

    कालिका रूप प्रचण्डिनी है।

    स्त्री माँ की पावन मूरत है,

    मनमोहक सुन्दर सूरत है,

    भरा हुआ कलश अमृत है,

    प्रभु की कलाकृति उत्तम है।

    स्त्री है तो ममता है,

    सुखमय जीवन चलता है,

    उपवन फूलों से खिलता है,

    जिससे घर आँगन सजता है।

    स्त्री सृष्टि की संचालक है,

    बच्चों की प्रतिपालक है,

    संस्कृति की प्रचारक है,

    सहनशीलता धारक है।

    स्त्री दुःख में मिला सहारा है,

    प्रेम की अमृत धारा है,

    जगमग कोई सितारा है,

    नदियों का मिला किनारा है।

    स्त्री चमकता सोना है,

    पल्लू का प्यारा कोना है,

    बुरी सोच का रोना है,

    ये ऐसा जादू टोना है।

    स्त्री परम पुनीता है,

    श्री कृष्ण की भगवद गीता है,

    अनन्त असीम महिमा है,

    मर्यादा की सीमा है।

    -प्रिया शर्मा

  • तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से संत नहीं कहलाओगे

    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से संत नहीं कहलाओगे

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                     संत नहीं कहलाओगे ।
    निज कर्मों से ही तय होगा ,
                   जन्म कौन सा पावोगे ।।


    परहित की जो तजी भावना ,
             समझो सब कुछ व्यर्थ गया ।
    अर्थ तलाशी के चक्कर में ,
                 जीवन का ही अर्थ गया ।।
    दंभी कपटी छली लालची ,
                   नाम कमाकर जाओगे ।
    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                    संत नहीं कहलाओगे ।।

    ऊँचे कुल की मान बड़ाई ,
                        तेरे काम न आयेंगे ।
    अपने सुख की खातिर जीना ,
                     बदनामी कर जायेंगे ।।
    कृतघ्नता आडंबर भरकर ,
                   लक्ष्यहीन कहलाओगे ।
    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                   संत नहीं कहलाओगे ।।

    जीवन का उद्देश्य बना ले ,
                  तीर्थ मुझे ही बनना है ।
    अवगाहन मति मज्जन करके ,
                 भव से पार उतरना है ।।
    नाम निशानी इस मेले में ,
                   कर्मों से सिरझाओगे ।
    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                 संत नहीं कहलाओगे ।।

    रामनाथ साहू “ननकी”

  • हिंदी कविता-ज्योति यह जले

    ज्योति यह जले

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    सूत्र संगठन सँभाल, ज्योति यह जले।
    कोटि-कोटि दीप-माल ज्योति यह जले।


    राष्ट्र अंधकार के विनाश के लिए,
    चिर अतीत के धवल प्रकाश के लिए।
    बुद्धि के, विवेक के विकास के लिए
    वृद्धि के समृद्धि के प्रयास के लिए।
    त्याग की लिए मशाल, ज्योति यह जले। सूत्र संगठन…


    राष्ट्र की अखण्ड साधना अमर बने,
    प्राण-प्राण-कंठ की पुकार एक हो।
    राष्ट्र की नवीन कल्पना सँवारने,
    योजनानुसार पुण्य सर्जना घने।
    ले विमुक्ति गर्व भाल, ज्योति यह जले।सूत्र संगठन…


    कोटि-कोटि कंठ की पुकार एक हो,
    कोटि-कोटि बुद्धि का विचार एक हो।
    कोटि-कोटि प्राण का श्रृंगार एक हो,
    एक ध्येय और जीत-हार एक हो।
    राष्ट्र को बना निहाल, ज्योति यह जले। सूत्र संगठन…



    एक बार दुग्ध से स्वदेश महमहा उठे,
    एक बार फिर बहार लहलहा उठे।
    यश-सुगन्धि से स्वदेश महमहा उठे,
    राष्ट्र का विजय निशान गहगहा उठे।
    जगमगा विशाल भाल, ज्योति यह जले। सूत्र संगठन…

  • हिंदी कविता-जन्म चाहिए प्यारे हिन्दुस्तान में

    जन्म चाहिए प्यारे हिन्दुस्तान में

    भारत


    एक हमारी छोटी विनती, भगवन ! रखना ध्यान में,
    हमें हमेशा पैदा करना, प्यारे हिन्दुस्तान में ॥


    सिर पर है हिम मुकुट सलोना, कंठहार गंगा-यमुना,
    हरियाली की चादर मनहर, फूल – फलों का है गहना।
    चन्दन भरी हवा लहराती, प्यारे हिन्दुस्तान में ॥ एक हमारी

    राम-कृष्ण की जन्मभूमि यह, वीर भगत की यह धरती,
    रानी झाँसी और पद्मिनी की गाथा दुनियां कहती।
    राणा और शिवाजी जन्मे प्यारे हिन्दुस्तान में। एक हमारी

    तन तज कर हम स्वर्ग में जायें, इसकी हमको चाह नहीं,
    बनें मनुज चाहे पशु-पक्षी, इसकी भी परवाह नहीं।
    जो भी बनें, बनें हम अपने प्यारे हिन्दुस्तान में। एक हमारी

    मिले हमें सोना – चाँदी या मिले हमें हीरा मोती,
    या कुबेर का मिले खजाना, कभी नहीं इच्छा होती।
    हम फूटी कौड़ी पाकर खुश प्यारे हिन्दुस्तान में॥ एक हमारी

    नहीं चाहिए वस्त्र रेशमी, नहीं चाहिए आभूषण,
    नहीं चाहिए महल-अटारी, नहीं चाहिए सिंहासन।
    हमको केवल जन्म चाहिए प्यारे हिन्दुस्तान में॥ एक हमारी

    इसके पैरों की माटी अपने माथे का टीका है,
    इसके एक घुट पानी के आगे अमृत फीका है।
    मुझे घास की रोटी अच्छी प्यारे हिन्दुस्तान में ॥ एक हमारी

  • रिश्ते नाते (कुण्डलिया )- माधुरी डडसेना

    रिश्ते नाते (कुण्डलिया )- माधुरी डडसेना

    भाई-बहन


    नाते गढ़ने के लिए , रचने पड़ते स्वांग ।
    बार बार हैं जाँचते , कहता क्या पंचांग ।।
    कहता क्या पंचाग , बनी उत्सुकता भारी ।
    करते तिकड़म सर्व , कठिन करते तैयारी ।।
    मुदिता भर मुस्कान , शून्य फल लेकर आते ।
    कभी कहीं बन मीत , निभाते अपने नाते ।।


    नाते देखे हैं बहुत , भरा कूट कर स्वार्थ ।
    हुआ महाभारत यहाँ , कृष्ण कहे सुन पार्थ ।।
    कृष्ण कहे सुन पार्थ , स्वार्थ ही करता अंधा ।
    इसी सिद्धि के हेतु , मनुज मन रचता धंधा ।।
    मुदिता भर मुस्कान , रिक्त ही सब हैं जाते ।
    फिर कैसा संबंध , दिखावे के सब नाते ।।


    नाते ऐसे बाँधिए , जैसे फूल सुगन्ध ।
    महके दिल का आँगना , झरे प्रेम रस रन्ध ।।
    झरे प्रेम रस रन्ध , स्वार्थ तज प्रीत बढ़ायें ।
    अपनापन आभास , सदा यह रीत निभायें ।
    मुदिता भर मुस्कान , चले फिर हँसते गाते ।
    मधुर सुखद सम्बंध , यही हैं रिश्ते नाते ।।


    माधुरी डड़सेना ” मुदिता ”
    भखारा