स्त्री
स्त्री मन की भावना है,
ईश की आराधना है,
जीवन की साधना है,
सुखदायी प्रार्थना है।
स्त्री वृषभानुजा है,
विष्णु संग पद्मासना है,
सिद्ध हुई उपासना है,
समृद्धि की कामना है।
स्त्री पतित पावनी है,
चंचल चपल दामिनी है,
श्री राम की जानकी है,
खुशियों की पालकी है।
स्त्री दुर्गा चंडिका भवानी है,
महागौरी कुमारी कल्याणी है,
शिवा चामुण्डा चण्डी है,
कालिका रूप प्रचण्डिनी है।
स्त्री माँ की पावन मूरत है,
मनमोहक सुन्दर सूरत है,
भरा हुआ कलश अमृत है,
प्रभु की कलाकृति उत्तम है।
स्त्री है तो ममता है,
सुखमय जीवन चलता है,
उपवन फूलों से खिलता है,
जिससे घर आँगन सजता है।
स्त्री सृष्टि की संचालक है,
बच्चों की प्रतिपालक है,
संस्कृति की प्रचारक है,
सहनशीलता धारक है।
स्त्री दुःख में मिला सहारा है,
प्रेम की अमृत धारा है,
जगमग कोई सितारा है,
नदियों का मिला किनारा है।
स्त्री चमकता सोना है,
पल्लू का प्यारा कोना है,
बुरी सोच का रोना है,
ये ऐसा जादू टोना है।
स्त्री परम पुनीता है,
श्री कृष्ण की भगवद गीता है,
अनन्त असीम महिमा है,
मर्यादा की सीमा है।
-प्रिया शर्मा