Blog

  • बहारें तुझ से आई है

    बहारें तुझ से आई है

    kavita


    बहारें तुझ से आई है,

    यह दिल तुझ पर ही मरता है
    बहुत है दर्द इस दिल में
    प्यार तुझसे ही करता है ।

    मुझे तुम राधा दिखती हो
    सांवरा तेरा बन जाऊं ।
    अगर तुम दिल से कह दो तो मैं
    सेहरा बांध कर आऊं।।

    गले से तुम लगा लेना
    यह आशिक तुमसे कहता है
    बहारें तुझसे आई है
    यह दिल तुझपे ही मरता है।।

    तेरी शोहरत को सुनकर के
    दिल को दासी बना दूंगा
    हुआ दीदार जो तेरा तो
    दिलकाशी बना लूंगा।
    तेरे जुल्फों के साए से मैं
    सावन को बुला लूंगा ।।
    तेरे चाहत की ख्वाहिश को मैं
    वृंदावन बना दूंगा।।

    यही अफसोस है यारों,
    वह मुझसे रूठ जाती है ।।
    बुलाओ प्यार करने को तो ,
    हंसकर भाग जाती है ।
    जादू उसकी जुल्फों में ,
    दिल उसी में मस्त रहता है।
    बहारे तुझ से आई है ,
    यह दिल तुझ पर ही मरता है ।।

    (अर्जुन श्रीवास्तव)
    उत्तर प्रदेश
    जिला सीतापुर

  • मां एक ऐसा रिश्ता – हरनीत कौर नैय्यर

    मां एक ऐसा रिश्ता – हरनीत कौर नैय्यर

    मातृपितृ पूजा दिवस भारत देश त्योहारों का देश है भारत में गणेश उत्सव, होली, दिवाली, दशहरा, जन्माष्टमी, नवदुर्गा त्योहार मनाये जाते हैं। कुछ वर्षों पूर्व मातृ पितृ पूजा दिवस प्रकाश में आया। आज यह 14 फरवरी को देश विदेश में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में रमन सरकार द्वारा प्रदेश भर में आधिकारिक रूप से मनाया जाता है।

    mother their kids
    माँ पर कविता

    मां एक ऐसा रिश्ता


    मां एक ऐसा रिश्ता जो दिल के करीब है
    जो दिल की धड़कन है
    मां आज भी तेरी बेटी भी एक मां है
    अब माँ बनकर कर समझी हूं
    जो समझ ना पाई थी कभी तेरी डांट
    सुनकर गुस्सा होती थी  
    कभी जो फिकर मेरे लिए करती थी
    तो मुझे डांट लगा कर 
    तो तुम भी छुप छुप कर रोती थी
    उस प्यार भरे एहसास को समझी हूं मैं अब
    कल तक तो थी मां तेरे आंचल में अब खुद मां हो गई मैं तूने जो   

    सींचा है मुझको प्यार दुलार किया जो मुझको
    बस वही करने लगी हूं मैं
    अपने ही बच्चों में खुद को तलाश रही
    मैं ममता की मूरत बन कर उनको पाल रही हूं
    तेरे दिए संस्कारों से उनको सवार रही हूं
    मां तेरी ही परछाई हूं मैं पर
    तेरे जैसी   ममता कहां
    तेरे बलिदानों के आगे झुकता है मेरा तो मस्तक  

    मां जन्म देकर जो सही थी पीड़ा तुमने
    कर्ज कभी ना चुका पाऊंगी
    प्यार सिखाने सबको ही शायद मां तुम आई हो
    निश्चल प्रेम करके ममता की मूरत कहलाई हो
    अपने दर्द भूल तुम  जीवन देने आई हो
    मां शब्द नहीं है मेरे पास तेरे गुणगान के लिए
    मां तुम हो अनमोल  ममता भरा दिल लाई हो।

    हरनीत कौर नैय्यर

  • आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया

    आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    भूत बनकर बैताल संग भोले की बारात में जायंेगे
    भोले की बरात में नाचेंगे, गायेंगे और खूब धमाल मचाऐंगे।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    हे मेरे भोले, तेरे गले में होगा लिपटा होगा नाग।
    जिसको देखकर हर बाराती में लग जायेगी नाचने की आग।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    तू तो बारात में पी जायेगा बिष का प्याला।
    और तू बन जायेगा जगत का रखवाला।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    हे मेरे शिव शंकर कैलाश पर्वत वाले।
    तुम ही बने हो सबके रखवाले।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    भांग पीकर तेरा रूप हो जाये निराला।
    तू अपने भक्तों पर हो जाये मतवाला।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    तेरी बरात में सब पर चढ गयी भांग ।
    तूने मेरी सबके सामने भर दी माँग।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    पीकर भांग तूने जमा लिया, बरात में अपना रंग
    आज तो मैं साथ जाऊँगी तेरे ही संग।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    अगर तेरे भक्तों को मिल जाये तेरे चरणों की धूल।
    फिर मैं तुमको कभी नहीं पाऊँगी भूल।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    जिसने भी मेरे भोले पर बेलपत्र और घतूरा चढ़ाया।
    उसका इस संसार में कोई भी कुछ भी न बिगाड़ पाया।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’

    धर्मेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)
    जिला-आगरा, राज्य-उत्तर प्रदेश

  • गीतिका छंद पर सृजन -देवता

    गीतिका छंद पर सृजन -देवता

    छंद
    छंद

    देवता मन में बसे हैं, ढूँढ़ने जाएँ कहाँ।
    पूजते मन में सदा हैं, पूजने जाएँ कहाँ।।
    भाव ही हैं द्रव्य सारे , भाव से आराधना।
    भाव से भर शब्द प्यारे ,नित्य कर लें प्रार्थना।।

    क्या करें अर्पण उन्हें हम, है सभी उनका दिया।
    तन उन्हीं का मन उन्हीं का, जो कराया वह किया।।
    कर्म का अभिमान फिर क्यों, इस जगत में हम करें।
    मान या अपमान मिलता, ले चरण में हम धरें।।

    हम सदा से हैं उन्हीं के, और उनके ही रहें।
    जानते सब वो हृदय की, हम भला फिर क्यों कहें।।
    शरण में उनके रहें हम, भाव का दीपक जला।
    जो उचित प्रेरित करेंगे, जगत का जिसमें भला।। *

    ----गीता उपाध्याय'मंजरी'*

    *रायगढ़ छत्तीसगढ़*

  • हे नारी तुम शांति धाम हो

    हे नारी तुम शांति धाम हो

    हे नारी, तुम शांति धाम हो।
    शांति को ‌देती तुम, शांति का दान हो।

    पौरूषता का‌ सम्मान तुम,
    घर की आन हो।

    आंगन की लक्ष्मी तुम,
    सरस्वती का ज्ञान हो।

    दो कुलों को तारने वाली,
    ईश्वर का जग में तुम वरदान हो।

    सारे जगत में आली हो।
    नारी तुम दीवाली हो।

    फूलों में बसती ख़ुशबू हो।
    नारी तुम मतवाली हो।

    तुम प्रियता की प्यास हो।
    काल के , भाल के बार पर तुम प्रहार हो।

    दुर्गा काली तुम हो।
    नयनों में अश्रुजलों की धार हो।

    मुकम्मल सब रिश्ते तुमसे,
    पलकों के द्वार पर,, जो था, “सबरी” के बैठा,,
    तुम उस धीरज की पहचान हो।

    फूलों से ज्यादा कोमल तुम,
    पर दुश्मनों के लिए, चट्टान हो।

    टिक नहीं सकती, कोई दीवार तुम्हारे समक्ष,
    नारी ,तुम अगणित हुंकार हो।

    आशु गुप्ता
    जिला शाहजहांपुर।