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  • चिंता से चिता तक

    चिंता से चिता तक

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मां बाप को बच्चों के भविष्य की चिन्ता,
    महंगे से स्कूल में एडमिशन की चिन्ता।
    स्कूल के साथ कोचिंग, ट्यूशन की चिन्ता,
    शहर से बाहर हाॅस्टल में भर्ती की चिन्ता।।

    जेईई, नीट, रीट कम्पीटीशन की चिन्ता,
    सरकारी, विदेशी कं. में नौकरी की चिन्ता।
    राजशाही स्तर का विवाह करने की चिंता,
    विवाह पश्चात विदेश में बस जाने की चिंता।।

    फर्ज निभाकर अब कर्ज चुकाने की चिंता,
    बुढ़ापे तक कोल्हू में फंसे रहने की चिंता।
    बच्चों के होते अकेले पड़ जाने की चिंता,
    मरने तक बच्चों के वापिस आने की चिंता।।

    बस यही चक्र, जीवन है, यही कड़वा सच है,
    बीज पौधा पेड़ फल, फल ही पेड़ का कल है।
    लीक के फकीर बन, कठपुतली से हो जाते हैं,
    न जाने क्यों चमक के पीछे, दीवाने हो जाते हैं।।

    हम भ्रम पाल लेते हैं, “मैंने ही उसे बनाया है”,
    कभी सोचा तूने, भू-मण्डल किसने बसाया है।
    भाई ये सब कर्मानुसार ही, ब्रह्मा की माया है,
    कोई सूरमा आज तक, अमर नहीं हो पाया है।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी (राजस्थान)
    9928305806

  • शिव महिमा

    प्रस्तुत कविता शिव की महिमा भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    शिव महिमा

    शिव सत्य है, शिव अनंत है,
    शिव अनादि है, शिव भगवंत है|
    शिव ओंकार है, शिव ब्रह्मा है,
    शिव शक्ति है, शिव भक्ति है|
    शिव सूक्ष्म है, शिव संसार है,
    शिव प्रेम है, शिव विश्वास है |
    शिव साकार है, शिव निराकार है,
    शिव विष है, शिव सुधा है|
    शिव त्रिनेत्र है, शिव महाकाल है,
    शिव परमानंद है,शिव की महिमा अपरंपार है|

    प्रस्तुति

    कृष्णा चौहान अमेरी, जिला रायगढ़ (छ.ग.)

  • हिंदी संग्रह कविता-न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है

    न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है

    kavita

    न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है।

    जिसे सुनकर दहलती थी कभी छाती सिकंदर की,
    जिसे सुनकर कि कर से छूटती थी तेग बाबर की,
    जिसे सुन शत्रु की फौजें बिखरती थीं, सिहरती थीं,
    विसर्जन की शरण ले डूबती नावें उभरती थीं।
    हुई नीली कि जिसकी चोट से आकाश की छाती,
    न यह समझो कि अब रणबाँकुरी हुंकार सोई है। न यह…


    कि जिसके अंश से पैदा हुए थे हर्ष और विक्रम,
    कि जिसके गीत गाता आ रहा संवत्सरों का क्रम,
    कि जिसके नाम पर तलवार खींची थी शिवाजी ने,
    किया संग्राम अन्तिम श्वाँस तक राणा प्रतापी ने,
    किया था नाम पर जिसके कभी चित्तौड़ ने जौहर,
    न यह समझो कि धमनी में लहू की धार सोई है। न यह…

    दिया है शान्ति का संदेश ही हमने सदा जग को,
    अहिंसा का दिया उपदेश भी हमने सदा जग को,
    न इसका अर्थ हम पुरुषत्व का बलिदान कर देंगे,
    न इसका अर्थ हम नारीत्व का अपमान सह लेंगे।
    रहे इंसान चुप कैसे कि चरणाघात सहकर जब,
    उमड़ उठती धरा पर धूल, जो लाचार सोई है। न यह …


    न सीमा का हमारे देश ने विस्तार चाहा है,
    किसी के स्वर्ण पर हमने नहीं अधिकार चाहा है,
    मगर यह बात कहने में न चूके हैं, न चूकेंगे।
    लहू देंगे मगर इस देश की माटी नहीं देंगे।
    किसी लोलुप नजर ने यदि हमारी मुक्ति को देखा,
    उठेगी तब प्रलय की आग जिस पर क्षार सोई है। न यह


    रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

  • हिंदी संग्रह कविता-खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है

    खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है

    kavita

    युगों-युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है,
    खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।


    इस धरती पर जन्म लिया है, यही पुनीता माता है,
    एक प्राण, दो देह सरीखा, इससे अपना नाता है।
    यह धरती है पार्वती माँ, यही राष्ट्र शिव शंकर है,
    दिग्मंडल साँपों का कुण्डल, कण-कण रुद्र भयंकर है।
    यह पावन माटी ललाट पर पल में प्रलय मचाती है,
    खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।


    इस भू की पुत्री के कारण भस्म हुई लंका सारी,
    सुई नोंक-भर भू के पीछे, हुआ महाभारत भारी।
    पानी-सा बह उठा लहू था, पानीपत के प्रांगण में,
    बिछा दिए पुरयण-से शव वे, इसी तरायण के रण में।


    शीश चढ़ाया कटा गर्दनें या अरि-गरदन काटी है,
    खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।


    सिक्ख, मराठे, राजपूत, क्या बंगाली, क्या मद्रासी,
    इसी मन्त्र का जाप कर रहे, युग-युग-से भारतवासी।
    बुन्देले अब भी दोहराते, यही मन्त्र है झाँसी में,
    देंगे प्राण न देंगे माटी गूंज रहा है रग-रग में।


    पृष्ठ बाँचती इतिहासों के अब भी हल्दीघाटी है,
    खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।

    इस धरती के कण-कण पर है, चित्र खिंचा कुरबानी का,
    एक-एक कण छन्द बोलता, चढ़ी शहीद जवानी का।
    इसके कण-कण नहीं वरन् ज्वालामुखियों के शोले हैं,
    किया किसी ने दावा इस पर, यह दावा-से डोले हैं।


    इसे मिटाने बढ़ा उसी ने, धूल धरा की चाटी है,
    खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।

  • हिंदी संग्रह कविता-दुश्मन के लोहू की प्यासी भारत की तलवार है

    दुश्मन के लोहू की प्यासी भारत की तलवार है

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    अरे! तुम्हारे दरवाजे पर दुश्मन की ललकार है
    भारत की रणमत्त जवानी, चल क्या सोच विचार है।
    राणा के वंशजो, शिवा के पूतो, माँ के लाड़लो।
    समर-भूमि में बढ़ो, शत्रु को रोको और पछाड़ लो,
    तुम्हें कसम है अपनी मां के पावन गाढ़े दूध की,
    चलो चीन से अपनी चौकी, चाँदी मढ़े पहाड़ लो,
    सुन, उजड़े तवांग की कैसी करुणा भरी पुकार है। भारत की…

    जिसने घोंटा गला शान्ति का उस बेहूदे चीन से,
    कह दो, दुश्मन को दलने के हैं हम कुछ शौकीन से,
    जहाँ दोस्त को दिल देने में अपना नहीं जवाब है,
    वहाँ को पाठ पढ़ाया करते हम से,
    दुश्मन के लोहू की प्यासी भारत की तलवार है। भारत की…


    कहो शम्भु से आज तीसरा लोचन अपना खोल दे,
    हरबोलों से कहो आज हर, हरहर-हरहर बोल दे,
    जाग उठी है दुर्गा लक्ष्मी और पद्मिनी नींद से,
    कहो कि अपने भाले पर हर दुश्मन का बल तोल दे,
    आज देश को आजादी को प्राणों की दरकार है। भारत की…


    रवि दिवाकर