चिंता से चिता तक
मां बाप को बच्चों के भविष्य की चिन्ता,
महंगे से स्कूल में एडमिशन की चिन्ता।
स्कूल के साथ कोचिंग, ट्यूशन की चिन्ता,
शहर से बाहर हाॅस्टल में भर्ती की चिन्ता।।
जेईई, नीट, रीट कम्पीटीशन की चिन्ता,
सरकारी, विदेशी कं. में नौकरी की चिन्ता।
राजशाही स्तर का विवाह करने की चिंता,
विवाह पश्चात विदेश में बस जाने की चिंता।।
फर्ज निभाकर अब कर्ज चुकाने की चिंता,
बुढ़ापे तक कोल्हू में फंसे रहने की चिंता।
बच्चों के होते अकेले पड़ जाने की चिंता,
मरने तक बच्चों के वापिस आने की चिंता।।
बस यही चक्र, जीवन है, यही कड़वा सच है,
बीज पौधा पेड़ फल, फल ही पेड़ का कल है।
लीक के फकीर बन, कठपुतली से हो जाते हैं,
न जाने क्यों चमक के पीछे, दीवाने हो जाते हैं।।
हम भ्रम पाल लेते हैं, “मैंने ही उसे बनाया है”,
कभी सोचा तूने, भू-मण्डल किसने बसाया है।
भाई ये सब कर्मानुसार ही, ब्रह्मा की माया है,
कोई सूरमा आज तक, अमर नहीं हो पाया है।।
राकेश सक्सेना, बून्दी (राजस्थान)
9928305806