Blog

  • हिंदी संग्रह कविता- राष्ट्र की जय

    राष्ट्र की जय

    राष्ट्र की जय चेतना का, गान वन्दे मातरम्
    राष्ट्र भक्ति प्रेरणा का, गान वन्दे मातरम् ।

    बंसी के बजते स्वरों का, प्राण वन्दे मातरम्
    झल्लरी झंकार झनके, नाद वन्दे मातरम् ।
    शंख के संघोष का, संदेश वन्दे मातरम्। राष्ट्र भक्ति.

    सृष्टि बीज मंत्र का है, मर्म वन्दे मातरम्
    राम के वनवास का है, काव्य वन्दे मातरम्
    दिव्य जौहर ज्वाल का है तेज वन्दे मातरम्। राष्ट्र भक्ति

    हल्दी घाटी के कणों में व्याप्त वन्दे मातरम्।
    वीरों के बलिदान की, हुंकार, वन्दे मातरम्।
    जनजन के हर कण्ठ का, हो गान वन्दे मातरम्।

    अरिदल थर-थर कापें सुनकर नाद वन्दे मातरम्।
    वीर पुत्रों की अमर ललकार वन्दे मातरम्। राष्ट्र भक्ति …

  • हिंदी संग्रह कविता- जय जय भारत

    जय जय भारत

    जय जय भारत, जन-मन अभिमत
    जन-गण-तन्त्र विधाता।

    गौरव-भाल-हिमाचल उज्ज्वल
    हृदय-हार गंगा-जल,
    कटि विन्ध्याचल, सिन्धु चरण-तल
    महिमा शाश्वत गाता।

    हरे खेत, लहरें नद-निर्झर
    जीवन-शोभा उर्वर,
    विश्व कर्मरत कोटि बाहु-कर
    अगणित पद ध्रुव पथ पर।

    प्रथम सभ्यता-ज्ञाता, साम-ध्वनित गुण-गाथा,
    जय नव-मानवता-निर्माता
    सत्य-अहिंसा-दाता।
    जय हे! जय हे ! जय हे! शांति-अधिष्ठाता।

    जन-गण-तन्त्र विधाता।
    प्रयाण तूर्य बज उठे,
    पटह तुमुल गरज उठे,
    विशाल सत्य-सैन्य, लौह-भुज उठे।

    शक्ति-स्वरूपिणि, बहुबलधारिणि, वंदित भारत-माता!
    धर्मचक्र-रक्षित तिरंग-ध्वज अपराजित फहराता!
    जय हे ! जय हे! जय हे! अभय, अजय, माता !
    जन-गण-तन्त्र विधाता।

  • हिंदी संग्रह कविता- जन्मभूमि पर कविता

    जन्मभूमि पर कविता

    जहाँ जन्म देता हमें है विधाता
    उसी ठौर में चित्त है मोद पाता।

    जहाँ हैं हमारे पिता-बंधु-माता,
    उसी भूमि से है हमें सत्य नाता।

    जहाँ की मिली वायु है जन्मदानी,
    जहाँ का बिंधा देह में अन्न-पानी।

    भरी जीभ में है जहाँ की सुबानी,
    वही जन्म की भूमि है भूमि-रानी।

    कहीं जा बसे चाहता किन्तु जी है,
    रहे सामने जन्म की जो मही है।

    नहीं मूर्ति प्यारी कभी भूलती है,
    छटा लोचनों में सदा झूलती है।

    जिसे जन्म की भूमि भाती नहीं है,
    जिसे देश की याद आती नहीं है,

    कृतघनी यहाँ कौन ऐसा मिलेगा,
    जिसे देख जी क्या किसी का खिलेगा

    जिसे जन्म की भूमि का मान होगा,
    उसे भाइयों का सदा ध्यान होगा।

    दशा भाइयों की जिन्होंने न मानी,
    कहेगा उसे कौन देशाभिमानी।


    कामता प्रसाद गुरु

  • हिंदी संग्रह कविता-कोटि-कोटि कंठों ने गाया

    कोटि-कोटि कंठों ने गाया

    कोटि-कोटि कंठों ने गाया, माँ का गौरव गान है,
    एक रहे हैं एक रहेंगे, भारत की संतान हैं।

    पंथ विविध चिंतन नाना विधि बहुविधि कला प्रदेश की,
    अलग वेष भाषा विशेष है, सुन्दरता इस देश की।
    इनको बाँट-बाँटकर देखें, दुश्मन या नादान हैं। कोटि-कोटि

    मझायेंगे नादानों को, सोया देश जगायेंगे।
    दुश्मन के नापाक इरादे, जड़ से काट मिटायेंगे।
    भारत भाग्यविधाता हम हैं,जन-जन की आवाज है। कोटि-कोटि

    ऊँच-नीच निज के विभेद ने, दुर्बल किया स्वदेश को,
    बाहर से भीतर से घेरा, अँधियारे ने देश को।
    मिटे भेद मिट जाए अँधेरा, जलती हुई मशाल है। कोटि-कोटि

    बदलेंगे ऐसी दिशा को, जो परवश मानस करती,
    स्वावलंबिता स्वाभिमान से, जाग उठे अम्बर धरती।
    पुनरपि वैभव के शिखरों पर बढ़ता देश महान है। कोटि-कोटि,

  • हिंदी संग्रह कविता-फिर से नवजीवन का विहान

    फिर से नवजीवन का विहान

    जग-जीवन में जो चिर-महान्,
    सौन्दर्य-पूर्ण औ’ सत्य-प्राण

    मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ,
    जो हो मानव के हित समान।

    जिससे जीवन में मिले शक्ति,
    छूटे भय, संशय, अंधभक्ति,

    मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ,
    मिल जाएँ जिसमें अखिल व्यक्ति।

    पाकर प्रभु, तुमसे अमर दान,
    करने मानव का परित्राण,

    ला सकूँ विश्व में एक बार,
    फिर से नवजीवन का विहान।