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  • सभी विद्या की खान है माता

    सभी विद्या की खान है माता

    सभी विद्या, सुधी गुण की,
    अकेली खान है माता।
    इन्हे हम सरस्वती कहते,
    यही सब ज्ञान की दाता।
    इन्हे तो देव भी पूजें,
    पड़े जब काम कुछ उनका-
    सदा श्रद्धा रहे जिसमे,
    इन्हे वह भक्त है भाता।

    सदा माँ स्वेत वस्त्रों मे,
    गले मे पुष्प माला है।
    लिए पुस्तक तथा वीणा,
    वहीं पर हाथ माला है।
    स्वयं अभ्यास रत दिखतीं,
    यही संदेश है सबको —
    सही अभ्यास से खुलता,
    सदा यह भाग्य ताला है।

    पुरा प्रभु कंठ से निकलीं,
    बनी हर जीव की वाणी ।
    शुभ माघ की ही पंचमी,
    “ऐं” बोले सुधी प्राणी।
    ऋतुराज का भी आगमन,
    यहाँ उपवन सभी फूलें —
    दुनिया को देने ज्ञान,
    उदयी धीश्वरी वाणी ।

    मिला अभ्यास से ही है,
    हमे यह ज्ञान भी सारा ।
    यहाँ हम लिख रहे कविता,
    बजाते वाद्य भी प्यारा।
    कठिनतर नृत्य भी करते,
    जगत मे ख्याति है पाई–
    बनाया गुरु-सरस्वति ने,
    हमे जो आँख का तारा।

    नमन् है हर दिशा से माँ,
    मुझे आशीष यह देना ।
    बनूँ निज मातृभाषा का ,
    सही सेवक तथा सेना ।
    करूँ आराधना हरदम,
    चढ़ा मै भाव सुमनों को।
    हमारे दोष-दुर्गुण सब,

    पुराने भस्म कर देना ।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर

  • माँ गंगा पर कविता

    माँ गंगा पर कविता

    कलयुग के अत्याचारों को देख, माँ गंगा पुकारे….
    वर्षों के पावन तप से , मैं इस धरती पर आयी।
    पर आज मनुज ने देखो, मेरी कैसी गति बनायी।
    निर्मल थी मैं मैली हो गयी, तुम सबके कुकृत्यों से।
    कूड़े- कचरे और गंदे जल के, मोटे- मोटे नालो से।
    याद करो त्रेतायुग के, उन महा-प्रतापी राजाओं को।
    सगर, अंशुमान, और वीर दिलीप के आहुतियों को।
    याद करो भगीरथ के ओ, कठिन तपस्या के रातों को।
    त्राहि- त्रहि मचती धरती में, जन-मन के चीत्कारों को।
    सहम गयी हूँ मैं देखो, अब सबका मैला ढोते ढोते।
    समय अभी है उठो नींद से,वरना रह जाओगे सोते।
    राह मोड़ दो गंदे नालों का,कूड़ा-कचरा सब साफ करो।
    मैं जीवन दायनी गंगे हूँ ,कभी न तुम अपमान करो।
    हरी-भरी धरती होगी, खुशियों से भर जाएगा जग सारा।
    तब तुम दीप जला पूजा करना,और मनाना गंगा दशहरा।


    रविबाला ठाकुर”सुधा”
    स./लोहारा, कबीरधाम

  • देश पर कविता

    देश पर कविता

    हे ! मातृभूमि तेरी रक्षा में,
    हम अपना प्राँण लुटाएंगे।
    तन-मन-धन सब अर्पित कर,
    हम तेरा मान बढ़ाएंगे।

    देश के खातिर कफन बाँधके,

    सरहद पर सब डट जाएँगे।

    समय आए जब आहुति का,

    तब प्राँण होम कर जाएंगे।

    पले-बढ़े जिस धरती पर,
    अन्न जहाँ का खाया है।
    खून सींचकर हम अपनी,
    फर्ज धरा का निभाएंगे।

    रविबाला ठाकुर

    स./लोहारा, कबीरधाम, छ.ग.

  • अकिल की शायरी

    अकिल की शायरी

    चाहत है ये मेरी कुछ ऐसा कर जाऊँ,
    भारत की धरती को अपने लहू से रंग जाऊँ।

    ख्वाहिश थी ये मेरी की माँ की गोद में झूमलूँ,
    बुढ़े वालिद की नजर को पढ़ूँ और बीबी के हाथों को चूम लूँ।

    कोई बतादे मुझको कहाँ है वो बचपन की गलियाँ,
    वो गुड्डा – गुड्डी, चोर-सिपाही, दोस्त और सहेलीयाँ।

    वो राखी का त्योहार और प्यारी बहन की वारियाँ,
    वो नटखट दोस्त और रुठ कर मनाने वाली यारीयाँ।

    गाँव में बुढ़े आम का पेड़ और काकी के मटके का ठंडा पानी,
    गुजर गए कैसे बचपन लो आ गई ये जवानी।

    कुछ याद आती है मेहबूबा की वो दिलकश नजरें,
    खिड़की से छुपके कागज में लिख के बताती अपनी दिल की खबरें।

    बना जब मैं सिपाही खुश हुए दोस्त – अहबाब, अब्बू-अम्मी और दादी,
    वादा अपना कर पूरा करली अपनी मेहबूबा से शादी।

    बदला ये वक्त लेकिन हम बदले कभी नहीं,
    ठंड बरसात और गर्मी में ये जज्बात कभी दबी नहीं।

    ख्वाहिश मेरी इतनी सी कि भारत के लोग सोए चैन से मनाए दिपावली और होली,
    क्योंकि हम हैं रखवाले तुम्हारे, हम झेलेंगे बारूद और गोली।

    देकर जान हम अपने तिरंगे को झुकने न देंगे,

    काट सिर दुश्मनों के, विजय – पथ को रूकने न देंगे।

    अगर हो जाऊँ मैं शहीद ए देशवासीयों एक छोटा सा भूल कर देना,
    बस मेरे कब्र में और राहें वीरों को तुम फूल से भर देना।।

    —– अकिल खान, रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

  • धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ – धमेन्द्र वर्मा

    मातृपितृ पूजा दिवस भारत देश त्योहारों का देश है भारत में गणेश उत्सव, होली, दिवाली, दशहरा, जन्माष्टमी, नवदुर्गा त्योहार मनाये जाते हैं। कुछ वर्षों पूर्व मातृ पितृ पूजा दिवस प्रकाश में आया। आज यह 14 फरवरी को देश विदेश में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में रमन सरकार द्वारा प्रदेश भर में आधिकारिक रूप से मनाया जाता है।

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    माँ पर कविता

    धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी

    धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ।
    इस धरती पर मेरी रोशनी है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    इस धरती पर सूने जीवन की आशा है मेरी माँ।
    धरती पर ईश्वर का दूसरा अवतार है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    मेरे रोशन होते चेहरे का कारण है मेरी माँ।
    मेरे घर के स्वर्ग होने का अहसास दिलाती है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    तेरे बिना जीवन में अंधेरा ही अँधेरा है मेरी माँ।
    मेरे प्रति तेरा प्रेम अमूल्य है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    तू है अगर जीवन में, सब मुमकिन हैं मेरी माँ।
    मुझे तूने अपने रक्त से सींचकर बनाया है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    मुझे विश्व मे तू ंसबसे प्यारी है मेरी माँ।
    तेरे आशीर्वाद से बडे से बडे कष्ट टल जाते है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    तू अगर साथ है, तो जीवन में उजाला है मेरी माँ।
    वो घर घर नहीं होता, जिस घर में नहीं होती है माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    जब तक मैं घर नहीं लौटता, तब तक नहीं सोती है मेरी माँ।
    तेरा प्यार ही दुनिया में सबसे निराला है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    मुझे मेरी पहली धड़कन देती है मेरी माँ।
    तेरा प्रेम ही विश्व में सबसे उच्च प्रेम हैं मेरी प्यारी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    जग में है अगर अधियारा, तो मेरे लिये उजाला है मेरी माँ।
    मुझे तेरे आँचल जैसा प्रेम मुझे कहीं नहीं मिलता मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    धमेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)
    जिला-आगरा, राज्य-उत्तर प्रदेश
    मोबाइल नं0-9557356773
    वाटसअप नं0-9457386364