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  • हम भारत के वासी

    हम भारत के वासी


    जन्म लिए जिस पुण्य धरा पर,
    इस जग में जो न्यारा है।
    हम भारत के वासी हम तो,
    कण -कण इसका प्यारा है।

    देश वासियों चलो देश का,
    हमको मान बढ़ाना हैं।
    दया-धरम सदभाव प्रेम से,
    सबको गले लगाना हैं।
    द्वेष-कपट को त्याग हृदय से,
    सुरभित सुख के हेम रहे।
    हिन्दू मुस्लिम,सिख-ईसाई,
    सब में अनुपम प्रेम रहे।
    मुनियों के पावन विधान ने,
    जग को सदा सुधारा है।
    हम भारत के वासी हम तो,
    कण – कण इसका प्यारा है।

    आधुनिक इस दौर में मानव,
    पग – पग आगे बढ़ता हैं।
    जो रखता है शुभ विचार निज,
    कीर्तिमान नव गढ़ता हैं।
    भले भिन्न बोली-भाषा है,
    फिर भी हम सब एक रहे।
    सदियों से भारत वालों के,
    कर्म सभी शुभ-नेक रहे।
    जिस धरती पर प्रीति-रीति की,
    बहती गंगा-धारा है।
    हम भारत के वासी हम तो,
    कण – कण इसका प्यारा है।

    जहाँ वीर सीमा पर अपनी,
    पौरुष नित दिखलाते हैं।
    समय पड़े तो निज प्राणों को,
    न्यौछावर कर जाते हैं।
    नहीं डरे हम कभी किसी से,
    गर्वित चौड़ी-छाती है।
    जहाँ वीर-गाथा यश गूंजे,
    भारत भू की थाती है।
    अरिदल को अपने वीरों ने,
    सीमा पर ललकारा है।
    हम भारत के वासी हम तो,
    कण-कण इसका प्यारा है।
    ★★★★★★★★★


    स्वरचित©®
    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
    छत्तीसगढ़(भारत)

  • सावन पर दोहे

    सावन पर दोहे


    ★★★★★★★★
    सावन में पड़ने लगी,रिमझिम सरस फुहार।
    हरित चुनर ओढ़ी धरा,सुरभित है संसार।।

    कोयल कूके बाग में , दादुर करते शोर।
    सौंधी माटी की महक,फैल रही चहुँ ओर।।

    कल कल कर बहने लगी,धरती में जल धार।
    पावस का वरदान पा,आलोकित संसार।।

    तरु लता सब झूमकर , देते है संदेश।
    प्रेम रहे सब जीव में,छोड़ो कपट कलेश।।

    पावस में धरती बनी,अब खुशियों का केन्द्र।
    देखा जब मोहक छटा,झूमे आज डिजेन्द्र।।
    ★★★★★★★★★★★★★★★★


    रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
    मो. 8120587822

  • चरित्र विषय पर दोहे : राधा तिवारी

    चरित्र विषय पर दोहे : राधा तिवारी


    चिंतन और चरित्र से ,हो जाता उद्धार।
    नीच कर्म करके मनुज ,कैसे हो व्यापार।।

    राधे नेक विचार से ,उत्तम बने चरित्र
    सदा सत्य को ही रखो ,साथ बनाकर मित्र।।

    कर चरित्र निर्माण भी ,और काम के साथ।
    मात-पिता का हो सदा , सबके सिर पर हाथ।।

    सतयुग के तो बाद में ,आया कलयुग काल।
    सद्चरित्र से ही मनुज ,रखना इसे संभाल।।

    दूध दही की ही तरह ,मन को रखें पवित्र।
    अंतर्मन में ही दिखे, खुद का सदा चरित्र।।

    राधा तिवारी
    “राधेगोपाल”
    एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
    खटीमा,उधम सिंह नगर
    उत्तराखंड

  • बेटी कली है फूल है बहार है

    बेटी कली है फूल है बहार है

    बेटी, बेटी कली है, फूल है, बहार है,
    बेटी, बेटी गीत है, संगीत है, सुरों की तार है,
    बेटी, बेटी धन है, ताकत है, साहस का भंडार है,
    बेटी, बेटी घर की जन्नत, स्वर्ग का द्वार है।

    बेटी, बेटी पिता की लाडली, माँ की ममता अपार है,
    बेटी, बेटी प्यारी – प्यारी बहना, भाई का प्यार है,
    बेटी, बेटी आँगन की शोभा, रिश्तों की आधार है,
    बेटी, बेटी है तो धरती है, आकाश है, संसार है।

    बेटी, बेटी सीता है, सावित्री है, अहिल्याबाई है,
    बेटी, बेटी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई है,
    बेटी, बेटी राधा है, रुक्मणि है, मीरा बाई है,
    बेटी, बेटी उर्मिला है,सबरी है,चांडाल भी कहलाई है।

    बेटी, बेटी दुर्गा है, पार्वती है, काली का रूप है,
    बेटी, बेटी अबला नहीं सबला है, प्रचंडा स्वरूप है,
    बेटी, बेटी दीपक है, रोशनी है, उजाला है,
    बेटी, बेटी खुशबू है, सौभाग्य है, चन्दन का प्याला है।

    बेटी, बेटी सुरों की मल्लिका लता है, अनुराधा है,
    बेटी, बेटी अंतरिक्ष यात्री कल्पना है, सुनीता है,
    बेटी, बेटी इंदिरा है, सरोजनी है, देश की शान है,
    बेटी, बेटी गौरव है, गाथा है, अभिमान है।

    बेटी, बेटी प्यार है, करुणा है, त्याग की मूरत है,
    बेटी , बेटी पूजा है, आरती है, गीता की सूरत है,
    बेटी, बेटी ज्वाला है, लक्ष्मी है, सरस्वती आकार है,
    बेटी, बेटी बेटी ही नहीं, ईश्वरीय शक्ति का अवतार है।

    बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
    सिरसा (हरियाणा)

  • तुम लेखक नहीं नर पिचास हो

    तुम लेखक नहीं नर पिचास हो

    सिर्फ तुम ही नहीं
    तुम से पूर्व भी थी
    पूरी जमात भांडों की।
    जो करते रहे ताथाथैया
    दरबारों की धुन पर।
    चाटते रहे पत्तल
    सियासी दस्तरखान पर।
    हिलाते रहे दुम
    सियासी इशारों पर।
    चंद रियायतों के लिए
    चंद सम्मान-पत्रों के लिए।
    करते रहे कत्ल
    जनभावनाओं का।
    करते रहे अनसुना
    करुण चीखों को।
    करते रहे नजर अंदाज
    अंतिम पायदान के
    व्यक्ति की पीड़ा।
    तुम लेखक नहीं
    नर पिचास हो।

    -विनोद सिल्ला©