हम भारत के वासी
जन्म लिए जिस पुण्य धरा पर,
इस जग में जो न्यारा है।
हम भारत के वासी हम तो,
कण -कण इसका प्यारा है।
देश वासियों चलो देश का,
हमको मान बढ़ाना हैं।
दया-धरम सदभाव प्रेम से,
सबको गले लगाना हैं।
द्वेष-कपट को त्याग हृदय से,
सुरभित सुख के हेम रहे।
हिन्दू मुस्लिम,सिख-ईसाई,
सब में अनुपम प्रेम रहे।
मुनियों के पावन विधान ने,
जग को सदा सुधारा है।
हम भारत के वासी हम तो,
कण – कण इसका प्यारा है।
आधुनिक इस दौर में मानव,
पग – पग आगे बढ़ता हैं।
जो रखता है शुभ विचार निज,
कीर्तिमान नव गढ़ता हैं।
भले भिन्न बोली-भाषा है,
फिर भी हम सब एक रहे।
सदियों से भारत वालों के,
कर्म सभी शुभ-नेक रहे।
जिस धरती पर प्रीति-रीति की,
बहती गंगा-धारा है।
हम भारत के वासी हम तो,
कण – कण इसका प्यारा है।
जहाँ वीर सीमा पर अपनी,
पौरुष नित दिखलाते हैं।
समय पड़े तो निज प्राणों को,
न्यौछावर कर जाते हैं।
नहीं डरे हम कभी किसी से,
गर्वित चौड़ी-छाती है।
जहाँ वीर-गाथा यश गूंजे,
भारत भू की थाती है।
अरिदल को अपने वीरों ने,
सीमा पर ललकारा है।
हम भारत के वासी हम तो,
कण-कण इसका प्यारा है।
★★★★★★★★★
स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)