दिल आज शायर है, ग़म आज नग़मा है शब ये ग़ज़ल है सनम गैरों के शेरों को ओ सुनने वाले हो इस तरफ़ भी करम
आके ज़रा देख तो तेरी खातिर हम किस तरह से जिये आँसू के धागे से सीते रहे हम जो ज़ख्म तूने दिये चाहत की महफ़िल में ग़म तेरा लेकर क़िस्मत से खेला जुआ दुनिया से जीते पर तुझसे हारे यूँ खेल अपना हुआ…
ये प्यार हमने किया जिस तरह से उसका न कोई जवाब ज़र्रा थे लेकिन तेरी लौ में जलकर हम बन गए आफ़ताब हमसे है ज़िंदा वफ़ा और हम ही से है तेरी महफ़िल जवाँ जब हम न होंगे तो रो रोके दुनिया ढूँढेगी मेरे निशां…
ये प्यार कोई खिलौना नहीं है हर कोई ले जो खरीद मेरी तरह ज़िंदगी भर तड़प लो फिर आना इसके करीब हम तो मुसाफ़िर हैं कोई सफ़र हो हम तो गुज़र जाएंगे ही लेकिन लगाया है जो दांव हमने वो जीत कर आएंगे ही…
शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब / गोपालदास “नीरज”
शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब होगा यूँ नशा जो तैयार हाँ… होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है
शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब, होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब
हँसता हुआ बचपन वो, बहका हुआ मौसम है छेड़ो तो इक शोला है, छूलो तो बस शबनम है हँसता हुआ बचपन वो, बहका हुआ मौसम है छेड़ो तो इक शोला है, छूलो तो बस शबनम है गाओं में, मेले में, राह में, अकेले में आता जो याद बार बार वो, प्यार है शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब अरे, होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब
रंग में पिघले सोना, अंग से यूँ रस झलके जैसे बजे धुन कोई, रात में हलके हलके रंग में पिघले सोना, अंग से यूँ रस झलके जैसे बजे धुन कोई, रात में हल्के हल्के धूप में, छाओं में, झूमती हवाओं में हर दम करे जो इन्तज़ार वो, प्यार है शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब ओ… होगा यूँ नशा जो तैयार वो प्यार है
याद अगर वो आये याद अगर वो आये, कैसे कटे तनहाई सूने शहर में जैसे, बजने लगे शहनाई याद अगर वो आये, कैसे कटे तनहाई सूने शहर में जैसे, बजने लगे शहनाई आना हो, जाना हो, कैसा भी ज़माना हो उतरे कभी ना जो खुमार वो, प्यार है
शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब अरे, होगा यूँ नशा जो तैयार वो प्यार है
वो हम न थे, वो तुम न थे, वो रहगुज़र थी प्यार की लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की ये खेल था नसीब का, न हँस सके, न रो सके न तूर पर पहुँच सके, न दार पर ही सो सके * कहानी किससे ये कहें, चढ़ाव की, उतार की लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की वो हम न थे, वो तुम न थे…
तुम्हीं थे मेरे रहनुमा, तुम्हीं थे मेरे हमसफ़र तुम्हीं थे मेरी रौशनी, तुम्हीं ने मुझको दी नज़र बिना तुम्हारे ज़िन्दगी, शमा है एक मज़ार की लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की वो हम न थे, वो तुम न थे…
ये कौन सा मुक़ाम है, फलक नहीं, ज़मीं नहीं कि शब नहीं, सहर नहीं, कि ग़म नहीं, ख़ुशी नहीं कहाँ ये लेके आ गयी, हवा तेरे दयार की लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की वो हम न थे, वो तुम न थे…
गुज़र रही है तुम पे क्या, बना के हमको दरबदर ये सोच कर उदास हूँ, ये सोच कर हैं चश्म तर न चोट है ये फूल की, न है ख़लिश ये ख़ार की लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की वो हम न थे, वो तुम न थे…
तूर = सीरिया का पवित्र पर्वत, जहाँ मूसा को दैवी प्रकाश दिखाई दिया था दार = सूली, फाँसी