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  • पंद्रह अगस्त की पुकार / अटल बिहारी वाजपेयी

    पंद्रह अगस्त की पुकार / अटल बिहारी वाजपेयी

    पंद्रह अगस्त की पुकार / अटल बिहारी वाजपेयी

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    पंद्रह अगस्त का दिन कहता:
    आज़ादी अभी अधूरी है।
    सपने सच होने बाकी है,
    रावी की शपथ न पूरी है॥

    जिनकी लाशों पर पग धर कर
    आज़ादी भारत में आई,
    वे अब तक हैं खानाबदोश
    ग़म की काली बदली छाई॥

    कलकत्ते के फुटपाथों पर
    जो आँधी-पानी सहते हैं।
    उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
    बारे में क्या कहते हैं॥

    हिंदू के नाते उनका दु:ख
    सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
    तो सीमा के उस पार चलो
    सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥

    इंसान जहाँ बेचा जाता,
    ईमान ख़रीदा जाता है।
    इस्लाम सिसकियाँ भरता है,
    डालर मन में मुस्काता है॥

    भूखों को गोली नंगों को
    हथियार पिन्हाए जाते हैं।
    सूखे कंठों से जेहादी
    नारे लगवाए जाते हैं॥

    लाहौर, कराची, ढाका पर
    मातम की है काली छाया।
    पख्तूनों पर, गिलगित पर है
    ग़मगीन गुलामी का साया॥

    बस इसीलिए तो कहता हूँ
    आज़ादी अभी अधूरी है।
    कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?
    थोड़े दिन की मजबूरी है॥

    दिन दूर नहीं खंडित भारत को
    पुन: अखंड बनाएँगे।
    गिलगित से गारो पर्वत तक
    आज़ादी पर्व मनाएँगे॥

    उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
    कमर कसें बलिदान करें।
    जो पाया उसमें खो न जाएँ,
    जो खोया उसका ध्यान करें॥

    अटल बिहारी वाजपेयी

  • हरी हरी दूब पर / अटल बिहारी वाजपेयी

    हरी हरी दूब पर / अटल बिहारी वाजपेयी

    हरी हरी दूब पर / अटल बिहारी वाजपेयी

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    हरी हरी दूब पर
    ओस की बूंदे
    अभी थी,
    अभी नहीं हैं|
    ऐसी खुशियाँ
    जो हमेशा हमारा साथ दें
    कभी नहीं थी,
    कहीं नहीं हैं|

    क्काँयर की कोख से
    फूटा बाल सूर्य,
    जब पूरब की गोद में
    पाँव फैलाने लगा,
    तो मेरी बगीची का
    पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
    मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
    या उसके ताप से भाप बनी,
    ओस की बुँदों को ढूंढूँ?

    सूर्य एक सत्य है
    जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
    मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
    यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
    क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
    कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?

    सूर्य तो फिर भी उगेगा,
    धूप तो फिर भी खिलेगी,
    लेकिन मेरी बगीची की
    हरी-हरी दूब पर,
    ओस की बूंद
    हर मौसम में नहीं मिलेगी|

    अटल बिहारी वाजपेयी

  • क़दम मिला कर चलना होगा / अटल बिहारी वाजपेयी

    क़दम मिला कर चलना होगा / अटल बिहारी वाजपेयी

    क़दम मिला कर चलना होगा / अटल बिहारी वाजपेयी

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    बाधाएँ आती हैं आएँ
    घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
    पावों के नीचे अंगारे,
    सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
    निज हाथों में हँसते-हँसते,
    आग लगाकर जलना होगा।
    क़दम मिलाकर चलना होगा।

    हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
    अगर असंख्यक बलिदानों में,
    उद्यानों में, वीरानों में,
    अपमानों में, सम्मानों में,
    उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
    पीड़ाओं में पलना होगा।
    क़दम मिलाकर चलना होगा।

    उजियारे में, अंधकार में,
    कल कहार में, बीच धार में,
    घोर घृणा में, पूत प्यार में,
    क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
    जीवन के शत-शत आकर्षक,
    अरमानों को ढलना होगा।
    क़दम मिलाकर चलना होगा।

    सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
    प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
    सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
    असफल, सफल समान मनोरथ,
    सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
    पावस बनकर ढलना होगा।
    क़दम मिलाकर चलना होगा।

    कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
    प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
    नीरवता से मुखरित मधुबन,
    परहित अर्पित अपना तन-मन,
    जीवन को शत-शत आहुति में,
    जलना होगा, गलना होगा।
    क़दम मिलाकर चलना होगा।

  • नाप-तोल

    देखा है वो वक़्त ज्ञानी, रुक जाती है जुबानी।
    सिल जाते होंठ जहाँ, स्वयं नाप-तोल में।।

    रूह से ये मन बोले, आंखों में ना आंखें डोले।
    सुनने है शब्द सांझे, बेचैनी माहौल में।।

    तेवर की तीव्र होली, अंगारो जैसी रंगोली।
    घुल गई धुँआ भी तो, स्नेह के घोल में।।

    अभिमानी गई जानी, सब मस्त दाना-पानी।
    सीख मैंने सीख लई, प्यार के ही बोल में।।

    स्वयं नाप-तोल में जी, स्वयं नाप-तोल में।
    स्वयं नाप-तोल में जी, स्वयं नाप-तोल में।।

    महेश कुमार

  • तुम आ कर देख लो

    तुम आ कर देख लो

    तुम्हारी वो आलमारी और कमरा
    अब भी वैसी ही है
    जैसे तुम छोड़ गए थे
    अब भी सलीके से जमें


    पोशाक और उनमें तुम्हारी खुश्बु
    तुम आ कर देख लो
    कैसे सजाया हमारा घर मैंने
    तुम्हारी यादों के साथ मिलकर


    तुम्हारी दस्तावेजों वाली दराज़
    और उनमें सजी तुम्हारी लिखावट
    वो किताबों का एक कोना
    और तुम्हारा वो पसन्दीदा मेज़


    जिसमें बैठ घण्टों पढ़ते थे
    तुम्हारा वो प्यारा काफ़ी मग
    और तुम्हारी इंक के छींटे
    अब भी वैसी ही है


    जैसे तुम छोड़ गए थे
    तुम आ कर देख लो
    तुम्हारे दिए तोहफ़े अब भी
    बात करते हैं मुझ से
    हर एक बात ताज़ी है


    बिल्कुल तुम्हारी सांसों की तरह
    हर पहलू में तुम हो
    और मैं हूँ बिल्कुल वैसे
    जैसे तुम छोड़ गए थे


    तुम्हारी वो छोटी सी मटकी
    और उससे जुड़े सभी किस्से
    बातें यादें और अनगिन हिस्से
    अब भी वैसी ही है
    तुम आ कर देख लो

    Dr. R