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  • सदमा पर लघु कथा

    सदमा पर लघु कथा

    दो महीने हो गये। शांति देवी की हालत में कुछ भी सुधार ना हुआ। पुरुषोत्तम बाबू को उनके मित्रों और रिश्तेदारों ने सुझाव दिया कि एक बार अपनी पत्नी को मनोचिकित्सक से दिखवा लें। पुरुषोत्तम बाबू को सुझाव सही लगा। अगले ही दिन अपने बड़े पुत्र सौरभ एवं पुत्रवधू संध्या के साथ अपनी पत्नी को लेकर शहर के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक के पास पहुंच गये।

    डॉक्टर साहब ने मरीज की समस्या पूछी तो पुरुषोत्तम बाबू ने बताया – “क़रीब दो महीने से मेरी पत्नी ने मौन व्रत धारण कर रखा है। चुपचाप बैठी रहती है। ऐसा लगता है जैसे किसी बड़ी समस्या पर गहन चिंतन कर रही हो। किसी के भी पूछने पर ना ही मौन व्रत धारण करने का कारण बताती है और ना ही कुछ बोलती है। बाकी दिनचर्या पूर्व की भांति यथावत है।”

    मरीज़ की समस्या जानने के बाद कुछ सोचकर डॉक्टर साहब ने पुरुषोत्तम बाबू को अपने पुत्र व पुत्रवधू के साथ कुछ देर चिकित्सक कक्ष से बाहर बैठने को कहा।

    उन लोगों के बाहर जाने के बाद डॉक्टर साहब ने शांति देवी से कहा – “मैं आपकी समस्या समझता हूं। इसी समस्या से कुछ दिनों पहले तक मेरी पत्नी भी ग्रसित थी। जब बेटा ही जोरू का गुलाम हो जाये तो बहू वश में कैसे रहेगी? लेकिन जबसे मैंने अपनी पत्नी को एक नायाब तरीक़ा बताया है तब से मेरे घर में सब कुछ मेरी पत्नी के इच्छानुसार ही होता है।”

    इतना सुनते ही शांति देवी अचानक से बोल पड़ीं – “ऐसा कौन-सा तरीक़ा है? कृपया मुझे भी बताइये।

    “आपने अभी तक कौन-कौन से तरीक़े आज़माये हैं? पहले वह तो बताइये। तभी तो मैं आपकी समस्या का सटीक समाधान निकाल पाऊंगा।” डॉक्टर साहब ने चतुराई से पूछा।

    शांति देवी ने कहा – “हिंदुस्तान की सासों और ननदों ने आज तक जितने तरीक़े अपनाये होंगे, मैंने और मेरी बेटी ने उन सभी को आज़मा कर देख लिया। हम दोनों ने मिलकर बहू को अनगिनत शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं। बेटे और बहू को अलग करने के लिए भी दोनों के बीच हर रोज़ ग़लतफ़हमी फैलाने की कोशिश की। दोनों को सामाजिक रूप से बदनाम करने का हमने हरसंभव प्रयास किया। आर्थिक रूप से पंगु बना दिया। जिसमें मेरे पति ने भी बखूबी मेरा साथ दिया। पोते के जन्म के एक माह पश्चात ही मैंने अपने बड़े बेटे को उसकी पत्नी और बच्चे सहित एक वर्ष के लिए घर से निकाल दिया। हर तरह से लाचार बना दिया। लेकिन मेरे बेटे के दिल में अपनी पत्नी के लिए प्रेम तनिक भी कम ना हुआ और हर तरह से उसकी रक्षा करता रहा। यह बात मेरे लिए बर्दाश्त से बाहर था। जब मुझे लगा कि मैं अपने बड़े बेटे के जीते जी अपनी बहू को अपनी मुट्ठी में करके नहीं रख सकती तो मैंने और मेरी बेटी ने मिलकर दो महीने पहले अपने बड़े बेटे को आग लगाकर जान से मारने की कोशिश भी की। लेकिन मेरे पति और मेरी बहू उसे बचाने में सफल हो गये। इस घटना के एक दिन बाद ही मैंने अपनी बहू के कमरे से हंसने की आवाज सुनी। यह सुनकर मुझे सदमा लग गया। आख़िर इतनी प्रताड़ना सहने के बाद भी मेरा बेटा और मेरी बहू आपस में खुश कैसे हैं? अब मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं हार गयी हूं। परंतु, आपने बताया कि कोई नायाब तरीक़ा है आपके पास। मैं वो जानना चाहती हूं।”

    डॉक्टर साहब अब तक अपने क्रोध को छुपाये हुए विस्मित होकर सुन रहे थे। दो मिनट के मौन के बाद डॉक्टर साहब ने कहा – “मेरे कक्ष में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है। आपने अभी जो कुछ भी कहा वो रिकॉर्ड हो चुका है। आपके इकबाले जुर्म और आपके पुत्र एवं पुत्रवधू की शिकायत पर आपको आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है। लेकिन मैं जानता हूं आपके पुत्र व पुत्रवधू ऐसा नहीं होने देंगे। शांति देवी! आप जैसी औरतों का इलाज़ इस सृष्टि में तब तक कोई नहीं कर सकता, जब तक भारत में सौरभ जैसे पुत्र के संग संध्या जैसी पुत्रवधू होगी।”

    :- आलोक कौशिक

    संक्षिप्त परिचय:-

    नाम- आलोक कौशिक
    शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
    पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
    साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
    पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
    अणुडाक- [email protected]

  • शिव-शक्ति पर कविता

    प्रस्तुत कविता शिव शक्ति पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    शिव-शक्ति पर कविता

    शिव शक्ति का रूप है
    शक्ति बड़ी अनूप है
    कहते भोले भंडारी
    शिव को मनाइए।।1।।

    शीश पर गंग धारे
    भक्तों के कष्ट उबारे
    मृत्युंजय महाकाल
    मृत्यु से उबारिए।।2।।

    जटाजूट मुंडमाला
    सर्पहार गले डाला
    गिरिप्रिय गिरिधन्वा
    भवसागर तारिये।।3।।

    नंदी की करे सवारी
    शिव है पिनाकधारी
    शशिशेखर श्रीकंठ
    दरस दिखाइए ।।4।।

    अर्द्धनारीश्वर रूप
    शिव सुंदर स्वरूप
    भगवान पुराराति
    कृपा बरसाइये।।5।।

    चंद्रशेखर कामारि
    रुद्र त्रिपुरान्तकारि
    विश्वेश्वर सदाशिव
    पास में बुलाइए।।6।।


    हलाहल पान करे
    अमृत का दान करे
    गिरीश कपालधारी
    दुर्गुण हटाइये।।7।।


    त्रिनेत्र शिवशंकर
    शाश्वतअभयंकर
    अष्टमूर्ति शिव भोले
    अभय दिलाइये।।8।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • सरहद पर कविता-विनोद सिल्ला

    सरहद पर कविता

    सरहदों पर
    व्याप्त है
    भयावह चुप्पी
    की जा रही है
    चुपचाप निगहबानी
    की जाती हैं बाड़बंधी
    नियन्त्रित करने को
    इंसानों को
    इंसानों की आवा-जाही को
    कहा जाता है
    की जा रही है सुरक्षा
    स्वतंत्रता की
    संप्रभुता की
    सरहद नहीं होती प्रतीत
    स्वतन्त्रता की परिचायक
    सरहद तो
    करती है नियंत्रित
    इंसानों को
    उनकी स्वतंत्रता को

  • होलिका दहन पर कविता-प्रवीण त्रिपाठी

    होलिका दहन पर कविता-प्रवीण त्रिपाठी

    होलिका दहन पर कविता

    holika-dahan
    holika-dahan

    मधुमासी ऋतु परम सुहानी, बनी सकल ऋतुओं की रानी।
    ऊर्जित जड़-चेतन को करती, प्राण वायु तन-मन में भरती।
    कमल सरोवर सकल सुहाते, नव पल्लव तरुओं पर भाते।
    पीली सरसों ले अंगड़ाई, पीत बसन की शोभा छाई।


    वन-उपवन सब लगे चितेरे, बिंब करें मन मुदित घनेरे।
    आम्र मंजरी महुआ फूलें, निर्मल जल से पूरित कूलें।
    कोकिल छिप कर राग सुनाती, मोहक स्वरलहरी मन भाती।
    मद्धम सी गुंजन भँवरों की, करे तरंगित मन लहरों सी।

    पुष्प बाण श्री काम चलाते, मन को मद से मस्त कराते।
    यह बसंत सबके मन भाता, ऋतुओं का राजा कहलाता।
    फागुन माह सभी को भाये, उर उमंग अतिशय उपजाये।
    रंग भंग के मद मन छाये, एक नवल अनुभूति कराये।

    सुर्ख रंग के टेसू फूलें, नव तरंग में जनमन झूलें।
    नेह रंग से हृदय भिगोते, बीज प्रीति के मन में बोते।
    लाल, गुलाबी, नीले, पीले, हरे, केसरी रंग रँगीले।
    सराबोर होकर नर-नारी, सबको लगते परम् छबीले।

    रंग प्रेम का यूँ चढ़ जाये, हो यह पक्का छूट न पाये।
    रँगे रंग में इक दूजे के, मन जुड़ जाएँ तभी सभी के।
    मन की कालिख रगड़ छुड़ायें, धवल प्रेम की परत चढ़ायें।
    नशा प्रीति का सिर चढ़ बोले, आनंदित मन सुख में डोले।

    तन मन जब आनंदित होता, राग-रंग का फूटे सोता।
    ढोलक ढोल खंजड़ी धमके, झाँझ-मँजीरे सुर में खनके।
    भाँति-भाँति के फाग-कबीरा, गाते माथे लगा अबीरा।
    भिन्न-भिन्न विषयों पर गाते, फागुन में रस धार बहाते।

    दहन होलिका जब सब करते, मन के छिपे मैल भी जलते।
    अंतर्मन को सभी खँगालें, निज दुर्गुण की आहुति डालें।
    नई फसल का भोग लगाएँ, छल्ली गन्ने कनक तपाएँ।
    *उपलों की गूथें माला सब, दहन होलिका में करते तब।

    पकवानों की हो तैयारी, गुझिया-पापड़ अति मन हारी।
    पीछे छूटा चना-चबेना, गुझिया हमें और दे देना।
    दिखे कहीं पिसती ठंडाई, संग भाँग ने धूम मचाई।
    जो भी पी ले वह बौराये, भाँति-भाँति के स्वांग रचाये।

    अरहर खड़ी शान से झूमे, मद्धम मलय फली हर चूमे।
    फूली मटर पक रही सरसों, दृश्य याद आएँगे बरसों।
    कृषकों के मन आस उपजती, नई फसल उल्लासित करती।
    पकी फसल जब घर में आये, हर किसान तब खुशी मनाये।

    इसीलिए यह ऋतु मन भाती, खुशियों को सर्वत्र लुटाती।
    मृदु मौसम में पुलकित तन-मन, हर्ष दीखता हर घर-आँगन।
    यद्यपि सब ऋतुएँ हैं उत्तम, है मधुमास मगर सर्वोत्तम।
    ऋतु बसंत सबके मन भाये, तब ही तो ऋतुराज कहाये।

    प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 19 फरवरी 2020

  • साथ-साथ पर कविता- रामनाथ साहू ननकी

    साथ-साथ पर कविता

    सम्मुख यूँ बैठो रहो ,
    जीवन जाये बीत ।
    मुक्त भाव से गा सकें ,
    सिर्फ प्यार के गीत ।।
    सिर्फ प्यार के गीत ,
    गढ़ें हम गीत वफा के ।
    मानस अंकित चित्र ,
    चले हम इसी अदा से ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
    सहेंगे हर इक सुख दुख ।
    सपने होंगे सत्य ,
    रहो जो मेरे सम्मुख ।।

    ~ रामनाथ साहू ” ननकी “
    मुरलीडीह