Blog

  • मिट्टी की घट पर कविता की महिमा बताती सुकमोती चौहान रुचि की छप्पय छंद में यह अनूठा काव्य

    मिट्टी की घट पर कविता

    मिट्टी घट की ओर ,चलो अब लौटे हम सब।
    प्लास्टिक का प्रतिबंध,मनुज स्वीकारोगे कब।
    मृदा प्रदूषण रोक,पीजिए घट का पानी।
    स्वस्थ रहेगा गात, स्वच्छता बने निशानी।
    घड़ा सुराही की शुद्धता, मान रहा विज्ञान भी।
    लाइलाज रोगों की दवा,मिट्टी यह वरदान भी।

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

  • गीता द्विवेदी की शानदार कविता

    गीता द्विवेदी की शानदार कविता

    अलाव

    कभी-कभी जिंदगी
    अलाव जैसी धधकती है
    उसमें हाथ सेंकते हैं
    अपने भी पराए भी
    बुझने से बचाने की
    सबकी कोशिश रहती है,
    डालते रहते हैं,
    लकड़़ियाँ पारी-पारी,
    कितना अजीब है ना!
    न आग न धुआँ
    पर जिंदगी तो जलती है,
    सभी को पता है।
    क्योंकि कभी न कभी,
    सभी को इसका अनुभव हुआ है।
    कोई राख हो जाता है,
    कोई कुन्दन,
    और तब…..
    हाथ सेंकने वाले,
    दूर हो जाते हैं,
    बहुत दूर….. बहुत दूर
    कभी नियति, कभी नीयत,
    बना देती है
    जिन्दगी को अलाव,
    नीयत में स्वच्छता हो,
    नियति से जुझने की ताकत,
    तब ये दुनिया डरावनी नहीं,
    सुहानी लगती है,
    और सब अपने,
    पराया कोई नहीं रह जाता,
    तब अलाव भी नहीं धधकता,
    क्योंकि लकड़ियाँ,
    कम हो जाती हैं,
    ईर्ष्या, द्वेष की लकडिय़ाँ।

    हरे सोने के गहने

    धरती माँ पहनती हैं ,
    गहने…हरे सोने के ,
    सभी गहने सुन्दरता बढ़ाते हैं ।


    छोटे , बड़े सभी आकार के ,
    सुगंध प्रदायक ,
    वायु शुद्ध करनेवाले ।
    दूब , तुलसी ,नीम ,पीपल ।
    नागफनी और बबूल भी ।
    विचित्र बात है न!
    हम धरती माँ की ,
    इन्हीं हरे गहनों के बीच
    जन्म लेते और जीवन बिताते हैं ।


    फिर भी इन्हें समझने में ,
    कितनी देर लगाते हैं ।
    धरती माँ के निर्दोष हरे गहने ,
    निर्दयतापूर्वक तोड़ते  , नोचते ,
    काटते , छाँटते , टुकड़े – टुकड़े कर देते हैं ।


    इतने से भी जी नहीं भरता तो ,
    जला कर संतुष्ट होना चाहते  हैं ।
    पर नहीं , अभी तो इन्हें समूल नष्ट करना है ।
    और सभ्य होने का भ्रम पालना है ।
    दिखने दो धरती माँ को ,
    कुरूप ….. पीड़ित ,
    हम तो प्रसन्न रहेंगें ।
    नष्ट कर गहने ,
    हरे सोने के गहने ।


    गीता द्विवेदी

  • चुनाव में होगा दंगल-दूजराम साहू

    चुनाव में होगा दंगल

    अब होगा दंगल,
    गाँव-गाँव, गली-गली !!
    बजेगा बिगुल चुनाव की,
    गाँव- गाँव, गली-गली !!

    लोकतंत्र की महापर्व में,
    काफिले खूब चलेंगे!
    न दिखेगा अबीर का रंग,
    चुनावी रंग चढ़ेंगे !!
    लुभावने, छलावे की,
    मंत्रोच्चार होगी गली-गली !

    पांव पकड़ेंगे दीन का भी
    याचक बन वोट मांगेंगे !
    लंबी-चौड़ी अस्वासन होगी
    वादे खूब गिनायेंगे !!
    सच्चाई नहीं सुई नोंक बराबर
    परख लेना भली -भली !

    खुल गई पिटारे
    आलसी और कामचोरों की!
    कीमत वसूली चलेगी
    मांग होगी जोरों की!!
    लंबी-लंबी बोली होगी
    लिस्ट होगी बड़ी-बड़ी !

    दूजराम साहू
    निवास-भरदाकला
    तहसील-खैरागढ़ जिला
    राजनांदगांव (छ ग)
    ??????

  • बारी के पताल-महेन्द्र देवांगन माटी

    बारी के पताल

    वाह रे हमर बारी के पताल ।
    ते दिखथस सुघ्घर लाल लाल ।।

    गरीब अमीर दुनो तोला भाथे ।
    झोला मे भर भरके तोला लाथे ।।

    तोर बिना कुछु साग ह नइ मिठाये ।
    सलाद बनाके तोला भात मे खाये ।।

    धनिया मिरची मिलाके चटनी बनाथे।
    रोटी अऊ बासी मे चाट चाट के खाथे।।

    वाह रे हमर बारी के पताल।
    ते दिखथस सुघ्घर लाल लाल ।।


    *महेन्द्र देवांगन “माटी”* ✍
    *पंडरिया छत्तीसगढ़*
    ?????????

  • शरदपूर्णिमा पर कविता-  डा. नीलम

    शरदपूर्णिमा पर कविता

    ओढ़ के चादर कोहरे की
    सूरज घर से निकला था
    कर फैला कर थोड़ी धूप
    देने की, दिन भर कोशिश करता रहा

    सांझ ने जब दामन फैलाया
    निराश होकर सूरज फिर लौट गया
    कोशिश फिर चाँद-सितारों ने भी की थी
    पर कोहरे की चादर वैसी ही बिछी रही

    कोहरे की चादर ,पर ..बहुत गाड़ी थी
    हवाओं ने भी तीखी शमशीर चलाई थी
    चादर को लेकिन खरोंच तक ना आई थी

    तुषारापात ने भी घात किया
    बस छन छन मोती ही गिरा
    भेद सका ना चादर कोई
    *कोहरे की चादर* ज्यों की त्यों तनी रही ।

    डा. नीलम