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  • तदबीर पर कविता – RR Sahu

    तदबीर पर कविता

    रो चुके हालात पे,मुस्कान की तदबीर सोचो,
    रूह को जकड़ी हुई है कौन सी जंजीर सोचो।

    मुद्दतें गुजरीं अँधेरों को मुसलसल कोसने में,
    रौशनी की अब चिरागों में नई तकदीर सोचो।

    जुल्मतों ने हर कदम पे जंग के अंदाज बदले,
    तुम फतह के वास्ते क्या हो नई शमसीर सोचो।

    कामयाबी के लिए हैं कौन से रस्ते मुनासिब,
    कारवाँ की,मंजिलों की साफ हो तस्वीर,सोचो।

    ————-R.R.Sahu
  • कलयुग के पापी -राजेश पान्डेय वत्स

    कलयुग के पापी

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    भूखी नजर कलयुग के पापी
    असंख्य आँखों में आँसू ले आई!

    लालची नजर *सूर्पनखा* की
    इतिहास में नाक कटा आई!!

    मैली नजर *जयंत काग* के
    नयन एक ही बच पाई!!!

    बिना नजर के *सूरदास* को
    *कृष्ण-लीला* पड़ी दिखाई!!

    नजर में श्रद्धा *मीरा* भरकर
    तभी गले विष उतार पाई!!

    तीसरी नजर *शिवशंम्भु* की
    *कामदेव* को पड़ी न दिखाई!!

    तकती आँखें *शबरी* रखकर
    युगों युगों तक नजर बिछाई!!

    खुली नजर *अहिल्या* की
    जब धूलि *राम* के पग पाई!!

    नजर प्रेम की *राधा* रखी
    संग नाम *कृष्णा* जोड़ लाई!!

    रखिये नजर *सुमित्रानंदन* सी,
    जो *सीता* के सिर्फ पायल पहचान पाई!

    – – राजेश पान्डेय *वत्स*

  • रजनी पर कविता- डा. नीलम की कविता

    रजनी पर कविता

    तारा- जड़ित ओढ़े ओढ़नी
    धीरे धीरे चाँदनी की नदी में

    ऐसे उतर रही
    जैसे कोई सद्य ब्याहता
    ओढ़ चुनरिया सजना की
    साजन की गलियों में
    धीमे धीमे पग रखती
    ससुराल की दहलीज़ चली

    खामोशी में झिंगूरों की

    झिमिर झिमिर का संगीत
    कानों में यूं रस घोले
    जैसे दुल्हनिया के बिछुए-
    पायल के घूंघर रुनझुन-
    रुनझुन पिया के हिय में
    प्रेम- रस घोले ।

    है सम्मोहिनी सारा आलम
    ज्यूं मधुयामिनी की रातों में
    दो नयन इक दूजे में खोये- खोये

    मदहोश नशे में चूर हुए।

    डा. नीलम

  • नारी की व्यथा पर कविता

    महिला (स्त्रीऔरत या नारीमानव के मादा स्वरूप को कहते हैं, जो स्त्रीलिंग है। महिला शब्द मुख्यत: वयस्क स्त्रियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। किन्तु कई संदर्भो में यह शब्द संपूर्ण स्त्री वर्ग को दर्शाने के लिए भी प्रयोग मे लाया जाता है, जैसे: नारी-अधिकार। 


    नारी की व्यथा पर कविता

    women impowerment
    स्त्री या महिला पर हिंदी कविता

    बरसों पहले आजाद हुआ देश
    पर अब भी बेटी आजाद नहीं
    हर बार शिकार हो रही बेटियां
    है यह एक बार की बात नहीं ।

    जिस बेटी से पाया जन्म मनुज
    उसी का तन छल्ली कर देता है
    मात्र हवस बुझाने की खातिर
    मासूम कलियों को नोच देता है

    इंसानियत मर चुकी है अब तो
    इंसानो में शैतान का वास होता है
    उस हवसी दरिंदे को क्या मालूम
    परिवार उसका कितना रोता है।

    तन मन की बढ़ती हुई भूख ने
    बच्चो को बना डाला निवाला है
    बेटियों को मनहूस कहने वालों
    तुमने ही हवसी कुत्तो को पाला है

    बेटियों पर लाखो बंदिशें लगाकर
    समाज ने उसेअबला बना डाला है
    खुला छोड़ लाडले बेटो को देखो
    इंसानियत पर तमाचा मारा है।

    आज तो बेटी किसी और की थी
    कल तुम्हारी भी तो हो सकती है
    कुचल डालो हवसी दरिंदों को
    बेटी और दुख नहीं सह सकती है

    क्रान्ति, सीतापुर , सरगुजा छग

  • आर आर साहू के दोहे

    आर आर साहू के दोहे

    ईश प्रेम के रूप हैं,ईश सनातन सत्य।
    अखिल चराचर विश्व ही,उनका लगे अपत्य ।।

    कवि को कब से सालती,आई है पर पीर।
    हम निष्ठुर,पाषाण से,फूट पड़ा पर नीर।।

    क्रूर काल के कृत्य की,क्रीड़ा कठिन कराल।
    मानव का उच्छ्वास है,या फुँफकारे व्याल।।

    लेश मात्र करुणा कभी,जाती छाती चीर।
    अब वो छाती मर गई,मत रो दास कबीर।।

    आशाएँ मृतप्राय हैं,रक्त स्नात विश्वास।।
    समय,पीठ पर ढो रहा,युग की जिंदा लाश।।

    —– रेखराम साहू —