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  • जन्म लेती है कविता- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    जन्म लेती है कविता- 

    सूरज-सा चिरती निगाहें
    संवेदनाओं से भरी दूरदर्शी निगाहें
    अहर्निश हर पल
    घूमती रहती है चारों ओर

    दृश्यमान जगत के
    दृश्य-भाव अनेक
    सुंदर-कुरूप,अच्छे-बुरे,
    अमीरी-गरीबी, और भी रंग सारे

    भावों की आत्मा
    शब्दों की देह धरकर
    जन्म लेती है कविता।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
         9755852479
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  • पंछी की पुकार नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    पंछी की पुकार

    एक दिन
    सुबह-सुबह
    डरा-सहमा 
    छटपटाता 
    चिचिआता हुआ एक पंछी
    खुले आसमान से
    मेरे घर के आंगन में आ गिरा

    मैंने उसे सहलाया
    पुचकारा-बहलाया
    दवाई दी-खाना दिया
    कुछेक दिन में चंगा हो गया वह

    आसमान की ओर इशारा करते हुए
    मैंने उसे छोड़ना चाहा
    वह पंछी
    अपने पंजों से कसकर
    मुझे पकड़ लिया
    सुनी मैंने
    उसकी मूक याचना
    कह रहा था वह–
    ‘एक पिंजरा दे दो मुझे।’

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
        9755852479
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  • बाँके बिहारी बरबीगहीया – छठ पर्व आधारित कविता

    छठ पर्व आधारित कविता

    शुक्ल पक्ष पष्ठी  तिथि को
    कार्तिक मास में आती है ।
    सूर्य की प्रिय बहन प्रकृति 
    छठी मईया कहलाती है ।
    सूर्योपासना का महान पर्व में
    छठी माँ दिव्य रूप दिखाती है।
    महान व्रत इस छठ पर्व में
    करतीं छठवर्ती आदित्य का ध्यान
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करें दंड प्रणाम ।। 

    लोक आस्था का यह महापर्व
    शुद्ध संस्कृति की है पहचान ।
    कठिन तपस्या कर छठवर्ती
    पातीं हैं सूर्य से अभय दान ।
    केला,सेब,नाशपाती,नारियल
    मूली,ईख,घी के  पकवान ।
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करे दंड प्रणाम ।।

    कदुआ-भात नहाय खाय दिन
    खरना के दिन बनें महाप्रसाद।
    माँ के अंश इस महाप्रसाद में
    मिलता है हमें  अद्भुत   स्वाद।
    अरग के दिन घाटो पर गूँजे
    सूर्य छठी माँ की पावन नाद।
    जन-जन की रक्षक है मईया
    करातीं सबको अमृत रसपान।
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करे दंड प्रणाम ।।

    यूपी, बिहार, पूर्वांचल  क्षेत्र से
    झारखंड नेपाल की तराई तक ।
    गंगा ,यमुना ,सरयु तट  पर 
    महासागर की गहराई  तक ।
    महान पर्व होता यह छठ का
    धरती से लेकर जुन्हाई   तक।
    सीता ,द्रोपदी,राजा प्रियव्रत भी
    किए थे यह  पर्व महान ।
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत आज करे  दंड  प्रणाम ।।

    सृष्टि  की  अधिष्ठात्री  प्रकृति
    छठी मईया बन उतपन्न हुईं ।
    जन कल्याण करने को माता 
    सर्वगुण से माता संपन्न हुई ।
    सबकी रक्षक बन आती माता
    जो सूर्य की प्रिय बहन हुई  ।
    छठव्रत करने से प्राणी  को
    हर्ष उल्लास मिलते हैं संतान
    प्रभु सविता और छठी मईया को
    जगत  आज करे  दंड प्रणाम।।

    ✒बाँके बिहारी बरबीगहीया ✒

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  • छत्तीसगढ़ महतारी पर कविता

    सुघ्घर हाबय हमर छत्तीसगढ़ महतारी-पुनीत राम सूर्यवंशी जी

    1 नवम्बर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 1 November Chhattisgarh State Foundation Day
    1 नवम्बर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 1 November Chhattisgarh State Foundation Day

    सुघ्घर हाबय हमर छत्तीसगढ़ महतारी, 
    ओला जम्मो कोनो कइथे धान के कटोरा।
    आवव छत्तीसगढ़िया आरुग मितान-संगवारी मन,
    नवा छत्तीसगढ़ राज बनाय बर हावय।।1।।

    बोली-भाखा, जाति-पाति, छुआछूत ल,
    छोड़के कहन हमन हावन एखरेच संतान।
    महानदी,इंद्रावती,अरपा,पैरी अऊ जोंक नदी म,
    बांध बंधवा के जम्मो कोनो के खेत म पानी पहुंचाय बर हावय।।2।।

    जम्मो आरुग बेरोजगार मन ल रोजगार मिला,
    देवभोग अऊ सोनाखान के खनिज ल।
    बिदेशी मन के हाथ खोदन नइ देवन,
    एला हमीमन बासी नुन-चटनी खा के खोंदे बर हावय।।3।।

    आरुग छत्तीसगढ़ के जम्मो कोनो मजदूर-किसान मन,
    परेम-भाव ले मिर-जुल के के कमाही-खाही।
    छत्तीसगढ़ महतारी के कोनो   भी संतान ल,
    भुख ले मरन नइ देवन बरोबर बांट के खाय बर हावय।। 4।।

    धरती दाई ल मिर-जुल के करन सिंगार,
    छत्तीसगढ़ महतारी के हरियर-हरियर लुगरा ल।
    रुख-राई लगा के चारो कोति ल हरियर रख के,
    महतारी के कोरा ल महर-महर महकाय बर हावय।।5।।

    बईला-नांगर,चिखला-पानी ले मितानी बैठ के,
    छत्तीसगढ़ के भुईयां म रिकीम-रिकीम के।
    धान-चाउर उपजा के छत्तीसगढ़ ल,
    एक सबृद्धशाली नवा राज बनाय बर हावय।।6।।
                 

           पुनीत राम सूर्यवंशी
           ग्राम-लुकाउपाली छतवन

  • अनेकता में एकता कविता- डॉ एन के सेठी

    अनेकता में एकता कविता

                              (1)
    हमे वतन  से प्यार है ,भारत  देश  महान।
    अनेकता में एकता ,  इसकी है पहचान।।
    इसकी  है  पहचान ,  ये  है  रंग  रंगीला।
    मिल जाते सबरंग , गुलाबी नीला पीला।।
    कहे नवलनवनीत ,महिमा बड़ीअपार है।
    संस्कृतिहै प्राचीन ,हमको इससे प्यार है।।


                   
                             (2)
    नाना संस्कृतियां यहाँ,विविध धर्म के लोग।
    मिलजुलकर रहते सभी,नदी नाव संजोग।।
    नदी  नाव  संजोग , विविध है भाषा भाषी।
    जाति पाति हैं भिन्न,सभी है हिन्द निवासी।।
    कहे  नवल  कविराय , नही  कोई  बेगाना।
    संस्कृतियों के रंग , खिले  बिखरे  है नाना।


                   
                              (3)
    ईद दीवाली क्रिसमस,मिलकर सभी मनाय।
    वसुधा ही परिवार है , दिल मे सभी बसाय।।
    दिल मे  सभी  बसाय, ना  ही  कोई  पराया।
    मातृभूमि का प्यार,दिलों मे सबके समाया।।
    सभी  वर्ण  संयोग , भारती  मात  निराली।
    सभी  हिन्द  में  रोज , मनाते  ईद दिवाली।।


               
                         (4)
    कहींनिर्गुण कहींसगुण,आस्तिक नास्तिक भेद।
    सभी मानते एक को , मिट जाय सब द्वैध।।
    मिट  जाय  सब  द्वैध ,भेद  सारे  हट  जाए।
    दृष्टिगत अनेकत्त्व , अखंड भाव आ जाए।।
    कहत नवल कविराय , है  ऐसी भारत मही।
    अनेकत्त्व  में  एक , नही  ऐसा  ओर कहीं।।

                ©डॉ एन के सेठी
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद