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  • मिल कर दिवाली को मनाएँ हम- प्रवीण त्रिपाठी

    मिल कर दिवाली को मनाएँ हम

    चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।*

    *हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*

    *मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।*

    *करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।*

    *भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।*

    *जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।*

    *चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।*

    *करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।*

    *लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।*

    *लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।*

    *जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।*

    *उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।*

    *गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।*

    *चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।*

    *उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।*

    *लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।*

    *बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।*

    *दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।*

    *उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।*

    *हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*

    *प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019*

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

    चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।
    हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।

    मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।
    करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।
    भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।
    जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।
    चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।
    करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।
    लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।
    लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।
    जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।
    उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।
    गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।
    चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।
    उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।
    लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।
    बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।
    दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।
    उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।
    हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।

    प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019
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  • कवयित्री वर्षा जैन “प्रखर” आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    दीपावली की पावन बेला
    महकी जूही, खिल गई बेला
    धनवंतरि की रहे छाया
    निरोगी रहे हमारी काया
    रूप चतुर्दशी में निखरे ऐसे
    तन हो सुंदर मन भी सुधरे

    महालक्ष्मी की कृपा परस्पर
    हम सब पर हरदम ही बरसे
    माँ लक्ष्मी के वरद हस्त ने
    इतना सक्षम हमें किया है
    दिल में सबके प्यार जगाएं
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें

    चहुँ ओर है आज दीवाली
    दीपोत्सव की सजी है थाली
    किसी के आँगन में है खुशियाँ 
    किसी का आँगन हो गया खाली
    आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं
    सबका आँगन भी चमकाएं

    नौनिहालों को बाँटे खुशियाँ
    उनके घर भी मने दीवाली
    दिये तले क्यूँ रहे अंधेरा
    उसको क्यों तम ने है घेरा
    आस का एक दीपक जलाएँ
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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  • मन पर कविता -शशिकला कठोलिया

    मन पर कविता

    रे मेरे मन ,
    ये तू क्या कर रहा है ,
    जो तेरा नहीं 
    उसके लिए तू 
    क्यों रो रहा है? 
    दफन कर दे अपने सीने में, 
    अरमानों को ,
    जो सागर की लहरों की तरह, 
    हिलोरे ले रहा है ,
    यादों को आंखों में 
    संजोकर रख, 
    जो नदी की धारा की तरह ,
    बहे जा रहा है ,
    रे मेरे मन,
    मत पाल अरमान दिल में इतना,
    जो तू आंसू को 
    एक एक मोती की तरह, 

    पिरोए जा रहा है।

    श्रीमती शशिकला कठोलिया
    उच्च वर्ग शिक्षिका
    अमलीडीह, डोंगरगांव
    जिला-राजनांदगांव (छ ग)
    मो न 9340883488
            9424111041
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  • मैं नन्हा दीपक हूँ -डाँ. आदेश कुमार

    मैं नन्हा दीपक हूँ

    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।

    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।

    निपट अकेला कोई होता ।
    चिंताओ में जब है खोता ।।
    रक्षक बन जाता हूँ उसका ,
    मैं अपलक जगता रहता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    होता दो दिल का बंधन जब ।
    जुड़ना चाहें दो जीवन जब ।।
    सौगंध दिला के जन्मों की ,
    मैं साक्षी उनका बनता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    आलोकित करता कुंज कुंज ।
    आलोक पुत्र ,आलोक पुन्ज ।।
    कर देता हूँ सब कुछ अर्पण ,
    मैं शीश कटा कर हँसता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    जहाँ प्रभो का मान रहेगा ।
    इक मेरा भी स्थान रहेगा ।।
    मैं प्रभु मंदिर की आरति हूँ ,
    मैं पद पंकज में जलता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    डाँ. आदेश कुमार पंकज
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  • स्नेह का दीप पर कविता -डॉ एन के सेठी

    स्नेह का दीप पर कविता

    जगमग हो जाए हर कोना
    हरेक चीज लगे अब सोना
    हर दुख का हो जाय शमन
    भर जाए खुशियों से दामन
    अंधियारा जग से मिट जाए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
              ???
    विश्व में शांति का प्रसार हो
    प्रेम और सद्भाव अपार हो
    घर घर दीप करे उजियारा
    बढ जायआपसी भाईचारा
    चहुँ और चेतना फैल जाए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
               ???
    मन का हर कोना साफ करें
    हम  इक दूजे को माफ करें
    न भय आतंक का काम हो
    अधर्म का  काम  तमाम हो
    मिलकर हमअज्ञान मिटाएं
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
              ???
    कर्म दीप करें  प्रज्ज्वलित
    जनजन का मन हो हर्षित
    हो  जाए  सफल हर काज
    दीपोत्सव का करें आगाज
    धर्मध्वजाअब सदा लहराए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
              ???
    अहंकार का हम करें विनाश
    अंतस  में फैले ज्ञान प्रकाश
    मिट जाए यह तम घनघोर
    सुख समृद्धि फैले चहुँ और
    हिय में प्रेम सुधारस बरसाए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।

    ???????

          ©डॉ एन के सेठी
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद