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  • त्यौहार पर कविता-तेरस कैवर्त्य ‘आंसू’

    त्यौहार पर कविता

    आया कार्तिक मास अब, साफ करें घर द्वार।
    रंग बिरंगे लग रहे, आया है त्यौहार।।१।।

    गली गली में धूम है , जलती दीप कतार।
    सभी मनाये साथ में, दीवाली त्यौहार।।२।।

    श्रद्धा सुमन चढ़ा करें, पूजे लक्ष्मी मान।
    मेवा घर घर बांटते , नया पहन परिधान।।३।।

    सुमत सहज ही बांध के, आये जब त्यौहार।
    महक दहक बहती हवा, देख खुशी परिवार।।४।।

    बैर भाव को छोड़ के, निज मन सुर कर गान।
    दया धरम के राह चल, तभी मिलेगा मान।।५।।

    तेरस कैवर्त्य ‘आंसू’ सोनाडुला बिलाईगढ, जिला – बलौदाबाजर (छ. ग.)
                  
               
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  • इस दिवाली कुछ ऐसा कर देना -शैलेन्द्र चेलक

    इस दिवाली कुछ ऐसा कर देना

    हे ऐश्वर्य की देवी ! 
    कल्याणकारिणी तुझे प्रणाम !
    एक निवेदन मेरी सुन लो ,
    लाया हूं विकट पैगाम ,

    तुझसे कोई अछूता नहीं ,
    फिर गरीबो को क्यूं छूता नही ,
    तेरी महिमा अपरंपार ,
    तेरी चरणों मे समृद्धि भंडार ,

    अमीरों के घरों में बिन बुलाए आती ,
    गरीबो को भूल जाती ? 
    ध्यान धरा तेरी है पर ,
    नंगा तन क्षुधा अकुलाते बच्चे ,
    रो रहे विवश ,
    क्यूं तुम्हें लगते अच्छे ?
     शायद वे तुम्हें वैसे ही पसंद है ,
    तभी इनकी संख्या बढ़ते जाते ,
    अभावग्रस्त बिलखती माता ,
    रो -रोकर तुझे खुश नहीं कर पाते ,

    है दयामयी ! हे करुणामयी ! 
    इस दिवाली कुछ ऐसा कर देना ,
    इन जैसों का भी घर भर देना ,
    अधनंगे घूमते थक गए है ,
    झिड़कियों से वे पक गए हैं ,
    मेरा पैगाम तुम सुन लेना ,
    उन्हें अब तक की सारी दीवाली देना ,

              – शैलेन्द्र चेलक –
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  • दीपक हो उदास-माधवी गणवीर

    दीपक हो उदास

    गर दीपक हो उदास 
    तो दीप कैसे जलाऊ……
    उन्यासी बरस की आजादी का
    क्या हाल हुआ 
    उनकी बर्बादी का,
    सत्ता के लुटेरे देखे,
    बेरोजगारी की बार झेले
    भष्ट्राचारी, लाचारी,
    भुखमरी का,
    क्या अब राग सुनाऊ…..
    दीप कैसे जलाऊ।
    अपने ही करते आए
    अपनो पर आहत,
    लाख करू जतन 
    मिलती नही राहत
    कैसे बचेगा देश विभीषणों 
    की चाल से,
    बच जायेंगे दुश्मनों से,
    पर क्या बचेंगे जयचंदो की चाल से।
    कपटी, बेईमानो,
    धोखेबाजो को कैसे
    पार लगाऊ……
    दीप कैसे जलाऊ……..
    पर…. टूटी मन की आश नही
    खोया मन का विश्वास नही
    नव प्रभात, नव पल्लव का
    चन्द्रोदय हम खिलाएंगे,
    होगा नूतन फिर उजियारा,
    भागेंगा कपटी अंधियारा,
    छल, कपट और राग द्वेष
    दूर हो ऐसी अलख जगाऊँ
    फिर मैं दीप जलाऊ।

    माधवी गणवीर
    राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षिका
    राजनादगांव
    Mo n.7999795542
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  • माँ लक्ष्मी वंदना- डॉ.सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”

    माँ लक्ष्मी वंदना- डॉ.सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”

    माँ लक्ष्मी वंदना

    jai laxmi maata

    चाँदी जैसी चमके काया, रूप निराला सोने सा।
    धन की देवी माँ लक्ष्मी का, ताज चमकता हीरे सा।

    जिस प्राणी पर कृपा बरसती, वैभव जीवन में पाये।
    तर जाते जो भजते माँ को, सुख समृद्धि घर पर आये।

    पावन यह उत्सव दीपों का,करते ध्यान सदा तेरा।
    धनतेरस से पूजा करके, सब चाहे तेरा डेरा।

    जगमग जब दीवाली आये,जीवन को चहकाती है।
    माँ लक्ष्मी के शुभ कदमों से, आँगन को महकाती है

    तेरे साये में सुख सारे, बिन तेरे अँधियारा है।
    सुख-सुविधा की ठंडी छाया, लगता जीवन प्यारा है।

    गोद सदा तेरी चाहें हम, वन्दन तुमको करते हैं।
    कृपादायिनी सुखप्रदायिनी,शुचिता रूप निरखते हैं।

    डॉ.सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”

  • धनतेरस पर कविता-सुकमोती चौहान रुची

    धनतेरस पर कविता

    सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारी
    धनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी।
    जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते।
    लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते।
    खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना।
    रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना।

    ✍ सुकमोती चौहान “रुचि”