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  • बेटी की पुकार

          बेटी की पुकार

    beti mahila
    बेटी की व्यथा

    पिता का मैं ख्याल रखूंगी
    तेरे कहे अनुसार मैं चलूंगी
    रूखी सूखी ही मैं खा लूंगी
    मत मार मुझे सुन मेरी मां
    मुझे धरा पर आने तो दे।।
    बोझ मैं तुमपर नहीं बनूंगी
    पढ़ लिख कर बड़ा बनूंगी
    तेरा मैं नाम रोशन करुंगी
    मत मार मुझे सुन मेरी मां
    मुझे  धरा पर आने तो दे।।
    खिलती हुई नन्ही कली हूं
    फूल बन जाने दे तू मुझको
    तेरा आंगन मैं महकाऊंगी
    मत मार मुझे सुन मेरी मां
    मुझे  धरा पर आने तो दे।।
    दहेज प्रथा  मैं मिटाऊंगी
    रूढ़िवादिता को हटाऊंगी
    हर रिश्ते प्रेम से निभाऊंगी
    मत मार मुझे सुन मेरी मां
    मुझे धरा पर आने तो दे।।

    श्रीमती क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • संकल्प कविता

    संकल्प

    मेरी अंजुरी में भरे,
    जुगनू से चमकते,
    कुछ अक्षर हैं!
    जो अकुलाते हैं,
    छटपटाते हैं!
    सकुचाते हुए कहते हैं-
    एकाग्र चित्त होकर,
    अब ध्यान धरो!
    भीतर की शांति से
    कोलाहल कम करो!
    अंतर के तम को मिटाकर,
    दिव्य प्रकाश भरो!
    झंझोड़ कर जगाओ,
    सोयी हुई मानवता को,
    भटकते राहगीरों को
    सही दिशा दिखाओ!
    बुद्धत्व का बोध करो
    कुछ करो,कुछ तो करो!
    शब्दों की चुभन से,
    सचेत,सजग हुई मैं,
    फिर लिया संकल्प!
    कुछ करना होगा!

    कुछ तो करना ही होगा…..

    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • हिन्दी हमारी शान – भुवन बिष्ट

    हिन्दी हमारी शान

    14 सितम्बर हिन्दी दिवस 14 September Hindi Day
    14 सितम्बर हिन्दी दिवस 14 September Hindi Day

    हिन्दी न केवल बोली भाषा,  
                           ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी,   
                            ये बड़ी महान है।।……..

    चमकते तारे आसमां के ,  
                             हैं भारत के वासी हम।
    कोई चंद्र है कोई रवि,  
                            कोई यहां भी है न कम।।
    आसमां बनकर सदा,  
                              हिन्दी मेरी पहचान है।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा , 
                              ये हमारी शान है।।
    मातृभाषा  है  हमारी,   
                              ये बड़ी महान है।…

    पूरब है कोई पश्चिम,  
                              कोई उत्तर है दक्षिण।
    अलग अलग है बोलियां,  
                              पर एक सबका है ये मन।।
    अंग भारत के हैं सभी,  
                              पर हिन्दी दिल की है धड़कन।
    एकता में बांधे हमको, 
                              इस पर हमें अभिमान है।।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा,  
                               ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी,  
                             ये बड़ी महान है।।…

    बने राष्ट्रभाषा बनी राजभाषा, 
                             मातृभाषा भी बनी,
    आओ इसको हम संवारें,  
                             हिन्दी के हम हैं धनी।
    गर्व हिन्दी पर है हमको,  
                            एकता में जोड़े सबको।
    आंकते कम हैं इसे जो,  
                             वे बड़े नादान हैं।।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा, 
                              ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी,  
                               ये बड़ी महान है। । 

                                         …..भुवन बिष्ट
                                  रानीखेत (उत्तराखण्ड)

  • मुझे अभी नहीं सोना है

    मुझे अभी नहीं सोना है

    मुझे अभी नहीं सोना है। 
    जब तक थक कर चूर न हो जाऊँ, 
    भावनाओं का बोझ ढोना है। 
    मुझे अभी नहीं सोना है।

    ख्वाब जब तक न हों पूरे, 
    मैंने ही बंदिशें लगायीं खुद पे
    ख्वाब देखने पर।। 
    घटाटोप अँधेरा पर
    ये झींगुर के शोर
    कहते हैं कुछ तो । 
    शायद बुझाने को कहते
    आँखों के दीये। 
    पर इन कूप्पियों में तेल बाकी है, 
    इन्हें अभी प्रज्वलित होना है । 
    मुझे अभी नहीं सोना है

    मनो-मस्तिष्क पर 
    ये उठती-गिरती अनवरत लहरें, 
    उस पर डगमगाती
    मेरी कागज की नाव। 
    लेखनी का सहारा ले
    मुझे पार करनी है ये मझधार। 
    जब तक ठहर ना जातीं
    या मिल न जाता किनारा
    श्वासें रोक खुद को डुबोना है। 
    मुझे अभी नहीं सोना है।

    मुझे न्याय करना है
    अपनी अर्जित धारणाओं के साथ। 

    परखना है पूर्व मान्यताओं को। 

    नित नूतन प्रयोग कर

    अनुभवों की लेनी है परीक्षा। 

    भीड़ में स्वयं को पाना
    और फिर स्वयं को खोना है। 
    मुझे अभी नहीं सोना है। 
    मनीभाई नवरत्न, छत्तीसगढ़
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • प्रश्न है अब आन का-प्रवीण त्रिपाठी

    प्रश्न है अब आन का

    हर  प्रगति  के  मूल में  स्थान  है  विज्ञान का।
    खोज करता नित्य जो उपयोग करके ज्ञान का।1

    रात दिन वो जूझते भारत कभी पीछे न हो।
    देश जे हित काम करके ध्यान रखते मान का।2

    टोलियाँ वैज्ञानिकों की खोज करतीं नित नयी।
    राष्ट्र करता है प्रशंसा उनके नए अवदान का।3

    भूलकर परिवार जो बस हिंद सेवा में जुटें। 
    उन सपूतों को यहाँ अधिकार है सम्मान का।4

    चन्द्र पर भेजा नया इक यान कितने जोश से।
    गाड़ पाया ध्वज नहीं जो था निशानी शान का।5

    हारना हिम्मत नहीं तूफान में डटना सदा।
    लौट आएगा समय फिर से सफल अभियान का।6

    भक्त भारत के खड़े वैज्ञानिकों के संग में।
    जान जी से फिर जुटेंगे प्रश्न है अब आन का।7

    प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 08 सितंबर 2019
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद