बेटी की पुकार
पिता का मैं ख्याल रखूंगी
तेरे कहे अनुसार मैं चलूंगी
रूखी सूखी ही मैं खा लूंगी
मत मार मुझे सुन मेरी मां
मुझे धरा पर आने तो दे।।
बोझ मैं तुमपर नहीं बनूंगी
पढ़ लिख कर बड़ा बनूंगी
तेरा मैं नाम रोशन करुंगी
मत मार मुझे सुन मेरी मां
मुझे धरा पर आने तो दे।।
खिलती हुई नन्ही कली हूं
फूल बन जाने दे तू मुझको
तेरा आंगन मैं महकाऊंगी
मत मार मुझे सुन मेरी मां
मुझे धरा पर आने तो दे।।
दहेज प्रथा मैं मिटाऊंगी
रूढ़िवादिता को हटाऊंगी
हर रिश्ते प्रेम से निभाऊंगी
मत मार मुझे सुन मेरी मां
मुझे धरा पर आने तो दे।।
श्रीमती क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद