समर शेष है रुको नहीं
समर शेष है रुको नहीं
अब करो जीत की तैयारी
आने वाले भारत की
बाधाएँ होंगी खंडित सारी,
राजद्रोह की बात करे जो
उसे मसल कर रख देना
देश भक्ति का हो मशाल जो
उसे शीश पर धर लेना,
रुको नहीं तुम झुको नहीं
अब मानवता की है बारी
सुस्त पड़े थे शीर्ष पहरुए
जन मानस दण्डित सारी,
कालचक्र जो दिखलाए, तुम
उसे बदल कर रख देना
कठिन नहीं है कोई चुनौती
दृढ़ निश्चय तुम कर लेना,
तोड़ो भी सारे कुचक्र तुम
आदर्शवाद को तज देना
नयी सुबह में नई क्रांति का
गीत वरण तुम कर लेना ।
राजेश पाण्डेय “अब्र”
अम्बिकापुर
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