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  • कर डरेन हम ठुक-ठुक ले

    कर डरेन हम ठुक- ठुक ले

    पुरखा के रोपे रूख राई
    कर डरेन हम ठुक-ठुक  ले.. ……
    नोहर होगे तेंदू चार बर..
    जिवरा कईसे करे मुच-मुच ले…

    ताते तात के जेवन जेवईया ,
    अब ताते तात हवा खावत हन ..
    अपन सुवारथ के चक्कर म,
    रूख राई काट के लावत हन.
    कटकट- कटकट करत डोंगरी …
    कर डरेन हम बूच -बूच ले …
    कर डरेन हम ठुक -ठुक ले…

    बड़े-बड़े मंजिल कारखाना ,
    आनी बानी अब गढ़हत हे!
    सुरसा कस जनसंख्या देख ले,
    दिनो दिन ये बढ़हत हे ।।
    जंगल ले मंगल़़ दुुुरिहागे..
    जिनगी कईसे करे मुच- मुच ले …
    कर डरेन हम ठुक ठुक ले…

    बिरान न होवए अब ये भुइया..
    हमला बिचार करना हे ..
    खोज- खोज के खाली जगह म..
    रूख राई लगा के भरना हे ..
    सरग बरोबर ये भुईया ल ..
    सिंगार करन अब लुक – लुक ले…
    कर डरेन हम ठुक ठुक ले….

    दूजराम साहू अनन्य
    भरदाकला (खैरागढ़)

    ले

  • धरती के श्रृंगार

    धरती के श्रृंगार

    वृक्ष हमारी प्राकृतिक सम्पदा,
    धरती के श्रृंगार हैं!
    प्राणवायु देते हैं हमको,
    ऐसे परम उदार हैं!!
    वृक्ष हमें देते हैं ईंधन,
    और रसीले फल हैं देते!
    बचाते मिट्टी के कटाव को,
    वर्षा पर हैं नियंत्रण करते!!
    वृक्ष औषधियाँ प्रदान कर,
    जीवन सम्भव बनाते हैं!
    औरों की खातिर जीना हमको,
    परमार्थ भाव सिखलाते हैं!!
    वृक्ष सदा दे करके छाया,
    पथिकों को विश्राम हैं देते!
    मिले इनसे इमारती लकडियाँ,
    बदले में नही कुछ लेते!!
    वृक्ष हैं जीवन का आधार,
    करते दूर प्रदूषण हैं!
    वन्य जीवों के आश्रयदाता,
    इस धरा के आभूषण हैं!!
    वृक्ष लगायें खूब यदि,
    चाहें भविष्य की सुरक्षा!
    फिर से हरियाली छायेगी,
    होगी पर्यावरण की रक्षा!!
    कंचन कृतिका
    गोण्डा, उ० प्र०
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे

    विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे

    विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे

    save nature

    सरिता अविरल बह रही, पावन निर्मल धार ।
    मूक बनी अविचल चले, सहती रहती वार ।।

    हरी-भरी वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार ।
    बनी रहे जल शुद्धता, धुलते सकल विकार ।।

    नदियाँ है संजीवनी, रखलो इनको साफ ।
    नदियाँ गंदी जो हुई, नहीं करेंगी माफ ।।

    छतरी है आकाश की, ओजोन बना ताज ।
    उड़ा नहीं सी एफ सी, यही निवेदन आज ।।

    करो प्रदूषित जल नहीं, ये जीवन का अंग ।
    निर्मल पावन स्वच्छता, जो डालो वो रंग ।।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

  • वृक्ष कोई मत काटे

    वृक्ष कोई मत काटे

    काटे जब हम पेड़ को,कैसे पावे छाँव।
    कब्र दिखे अपनी धरा,उजड़े उजड़े गाँव।।
    उजड़े उजड़े गाँव,दूर हरियाली भागे।
    पर्यावरण खराब,देख मानव कब जागे।।
    उपवन को मत काट,कमी को हम मिल पाटे।
    ऑक्सीजन से जान,वृक्ष कोई मत काटे।।

    देते ठंडक जो हमे,करते औषधि दान।
    आम बेल फल सेब खा,भावे खूब बगान।।
    भावे खूब बगान,रबर भी हमको मिलता।
    चले हवा जब जोर,लचक कर तरु है हिलता।।
    पेड़ो से है साँस,जीव सब के सब लेते
    दफना कर फल बीज,वादियाँ फिर रख देते।।

    पानी बरसे मेघ से,नीम आम हो मेड़।
    स्रोत मिले जब नीर का,लगे भूमि में पेड़।।
    लगे भूमि में पेड़,धार पानी बढ़ जाए।
    पानी बोतल दाम,समस्या दूर हटाए।।
    शादी षष्ठी होय,वृक्ष रोपे सब ज्ञानी।
    संकट काहे आय,बचा ले मिलकर पानी।।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जांजगीर
    छत्तीसगढ़
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • प्रकृति मातृ नमन तुम्हें

    प्रकृति मातृ नमन तुम्हें

    हे! जगत जननी,
                 हे! भू वर्णी….
    हे! आदि-अनंत,
                हे! जीव धर्णी।
    हे! प्रकृति मातृ नमन तुम्हें
    हे! थलाकृति…हे! जलाकृति,
    हे! पाताल करणी,हे! नभ गढ़णी।
    हे! विशाल पर्वत,हे! हिमाकरणी,
    हे! मातृ जीव प्रवाह वायु भरणी।
    हे! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
    तू धानी है,वरदानी है..
    तुझे ही जुड़े सब प्राणी है।
    तू वर्षा है,तू ग्रीष्म…है
    और तू शीतल शीत है…..!
    तू ही माँ प्राण-दायनी है।
    हे ! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
    तू ज्वाल है, तू उबाल है…
    समंदर की लहरों का उछाल है।
    तू हरितमा,तू स्वेतमा…
    तू शांत है, तू ही भूचाल है…!
    हे! उर्वरा, हे! सरगम स्वरा,
    झरने की झर-झर..
    हिम के स्वेत रंग निर्झर..
    मुक्त पवन की सर-सर।
    हे ! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
    हे! खेत खलिहान,मरूथल,
    हे! रेतिली रेंगिस्थान……!
    हे! पंक तू, हे! उत्थान तू…
    नित करती माँ नव निर्माण..!
    हे! महाद्वीप, हे!न्युन शिप,
    है पहान तू, है निशान तू ।
    हे! पृथ्वी,हे! प्रकृति,हे! शील,
    परमाणु की पहचान तू।
    हे ! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
    नमन करता आपको..यादव,
    हे! देवी तुम ही मेरा आधार…हो।
    जीवन में,हर स्पर्श में, स्वांस में,
    पुक्कू कहता सब तुम ही सार..हो।
    हे प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
                   रचना-
       _पुखराज यादव”पुक्कू”
              9977330179