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  • हां मै कवि हूं

    हां मै कवि हूं

     जीने की राह दिखाता हूं।
    अपनी लेख से,
    लोगो को जगाता हूं।
    हा मै कवि हूं………
    रूठे मन को मनाता हूं।
    हास्य कविता लिखकर
    आम जनों को हसाता हूं।
    हां मै कवि हूं………
    कभी प्रकृति सौंदर्य।
    कभी श्रृंगार रस पर,
    नारी का वर्णन करता हूं।
    हां मै कवि हूं………
    अदम्य पराक्रम ।
    साहसी वीरता पर,
    सैनिकों की गाथा लिखता हूं।
    हां मै कवि हूं………
    रंग बिरंगी होली ।
    दिवाली की उजियारे पर,
    त्योहारों पर लिखता हूं।
    हां मै कवि हूं………
    मेरी इन जिज्ञासा ।
    मानव जीवन जगाने की,
    कोहिनूर की कलम से लिखता हूं।
    हां मै कवि हूं………
    “”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
     कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभवना,बिलाईगढ़,बलौदाबाजार (छ.ग.)
    ‌8120587822

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  • नमन हे विश्ववन्दनीय महावीर

    नमन हे विश्ववन्दनीय महावीर

    त्याग और अहिंसा की मूर्ति है महावीर।
    क्षमा और करूणा का सागर है महावीर।
    दर्शन ज्ञान चरित्र की ज्योति है महावीर।
    ‘रिखब’का नमन हे विश्ववन्दनीय महावीर!
    राजा सिद्धारथ के घर जन्में,
    माता जिसकी त्रिशला रानी।
    तीर्थंकर प्रभु की याद दिलाने,
    आई प्यारी महावीर जयन्ति।
    चैत्रशुक्ल दिन त्रयोदशी आया,
    कुण्डलपुर नगरी अानंद छाया।
    दिव्य स्वरूप धरती पर आया,
    जन्मदिवस का उत्सव मनाया।
    राजमहल में मंगल घड़ियाँ आई,
    मृदंग,ढ़ोल, नगाड़े बजी शहनाई।
    राजा सिद्धारथ का कुटुंब हर्षाया,
    नगरवासियों ने मंगल गीत गाया।
    स्वर्णिम मंगल शुभावसर आया,
    इंद्र स्वर्ण कलश जल भर लाया।
    मेरू पर्वत पर अभिषेक कराया,
    देवियों ने लाल पालना झुलाया।
    स्वर्ग से वसुधा पर देवगण आए,
    प्रभु के दर्शन कर गुणगान गाए।
    धन धान्य अभिवृद्धि हुई अपार,
    राजकोष में भरा अतुल्य भंडार।
    ‘जियो और जीने दो’ है महान,
    जीव दया का दान है सम्मान।
    अहिंसा परमो धर्म से कल्याण,
    जैन धर्म का होगा नव निर्माण।
    अहिंसा के अवतार है महावीर,
    त्याग, तप करूणा के आधार।
    श्रीमहावीर जिनशासन सरकार,
    ‘रिखब’ का वंदन करो स्वीकार।

    रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’
    जयपुर राजस्थान

  • पाँच वर्ष का है त्यौहार

    पाँच वर्ष का है त्यौहार

    लोकतंत्र का रखना मान।जाकर करना तुम मतदान।
    पाँच वर्ष का है त्यौहार।चुन लेना अपनी सरकार।
    मत आना लालच में आप।वोट बेंचना होता पाप।
    सुधरे भारत की हालात।संसद भेजो रखने बात।
    लालच में आकर ना खोय।मत अपनी जस बेटी होय।
    पहनो या पहना लो ताज।सुंदर हो भारत का राज।
    संविधान देता अधिकार।जाने भारत को संसार।
    नर नारी सब एक समान।कर लें जाकर के मतदान।

    राजकिशोर धिरही
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  • मैं भुंइया अंव

    मैं भुंइया अंव

    बछर- बछर ले पानी पीएव ,
    मोर कोरा के सुख
    ला भोगेव,
    रोवत हे तुंहर महतारी ,
    मोर लइका मन अब तो चेतव,
    सब के रासा -बासा मोर संग,
    मैं जग के सिरजइया अंव।
    मैं भुंइया अंव, मै भुंइया अंव।
    मोर कोरा मा उपजेव खेलेव,
    जिनगी के रद्दा ला गढ़ेव।
    तुंहर बर मैं हाँसेव रोएंव
    कुटका -कुटका तन ला करेंव।
    हिरदे मा पीरा ल भरके—
    देवत सुख के छँइहा अंव ।
    मैं भुंइया——-
    मोर तन हा खंडहर होथे,
    रूख राई नदियां हर रोथे।
    सुग्घर- सुग्घर मोर काया मा,
    परदूसन के कैन्सर होथे।
    जागव रे अब मोर लइका मन,
    डगमग डोलत नइया अंव।
    मैं भुंइया—–‘
    मया के तरिया ल झिन
    सुखावव,
    जघा -जघा मा रुख ला लगावव।
    मोर छाती मा तुंहला खेलाएंव,
    माटी के करजा ला चुकावव।
    मन के मतौना मा झन मातव ,
    दाई तुंहर सुमिरइया अंव।
    मै भुंइया——
    मैं सिराहूं त आगी बरस ही,
    जम्मो अन पानी बर तरसही ।
    रूख- राई, नदियां बिलमाही,
    मनखे ला मनखे खा जाहीं।
    आगी- पानी अउ हवा ला
    महीच्च तो देवइया अंव ।
    मैं भुंइया—-
    बइरी -हितवा सब ला दुलारेंव ,
    जीव- जंतु ला घलव पोटारेंव।
    हाँसत- हाँसत छाती चीर के,
    जम्मो बर मैं अन उपजाएंव ।
    झन चीरव मोर अंचरा ला,
    जीती- मरती लाज रखइया अंव।
    मैं भुंइया—-
    बाढ़त तुंहर तपनी के कुटना,
    मोर टोंटा मा फाँसी के झूलना।
    कारखाना मोटर- गाड़ी के धुंगिया,
    देखत हव बस पइसा रुपिया।
    उबुक -चुबूक मोर जीव हा होगे,
    भीतरे- भीतर रोवइया अंव।
    मैं भुंइया———
    स्वरचित
    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़
    17-4-2019
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  • पिरामिड विधा पर रचना

    हनुमत पिरामिड

    पिरामिड विधा पर रचना

    हे
    वायु
    तनय
    हनुमान
    दे वरदान
    रहें खुस हाल
    प्रभू  हर हाल में ।

    हे
    दुखः
    हर्ता हे
    बजरंगी
    राम दुलारे
    भक्तन पुकारे
    हे कष्ट विनाशक।

    माँ
    सीता
    को प्यारे
    ले-मुदृका
    समुद्र लांधे
    सिया सुधि लाये
    भक्तन हितकारी ।

    श्री
    राम
    छपते
    लंका जला
    दानव   दल
    संहार  करके
    बाग उजारे प्रभू।

    ले
    वैद
    सुखेन
    संजीवनी
    लेकर आये
    प्राण  लक्ष्मण के
    बचाये     बजरंगी ।

    हे
    देव
    मनाये
    तुम्हें रक्षा
    करो जगत
    भव ताप हरो
    हे नाथ  महाबली ।

    केवरा यदु “मीरा “

    तुलसी पिरामिड

    हे
    विष्णु
    प्रिया माँ
    तुलसी तू
    सब जग की
    माता सुख दाता
    तुलसी  महारानी ।

    हे
    श्यामा
    सुर वल्ली
    ग्राम्य माता
    तुमको मना
    दीप जलाकर
    वाँछित फल पाऊँ।

    ले
    जन्म
    विजन
    आई है माँ
    भवन मेरी
    हरि की प्यारी तू
    श्यामवर्णी  हे माते।

    हे
    श्यामे
    तुम हो
    गुणकारी
    रोग ऊपर
    रूज से रक्षा रत
    संजीवनी  हो तुम ।

    हो
    सर्दी
    खाँसी  तो
    या  बुखार
    काली  मिर्च व
    तुलसी के पत्ते
    उबालें  काढ़ा  पी लें।

    हो
    गर
    दस्त तो
    तुलसी  के
    पत्ते को जीरे
    मिला के पीस  लें
    दिन में  तीन बार ।

    केवरा यदु “मीरा “

    हनुमत पिरामिड

    को
    नहीं
    जानत
    जग में तु
    दूत राम को।
    महिमा दी तूने
    सालासर ग्राम को।
    राम लखन को लाए
    पावन किष्किंधा धाम को।
    सागर लांघा  लंकिनी  मारी
    लंका में छेड़ दिया संग्राम को।
    सौंप मुद्रिका  उजाड़ी  वाटिका
    जारे तब लंका ललाम को।
    स्वीकार   करो  बजरंगी
    तुम मेरे प्रणाम को।
    हे बाबा  रक्षा  कर
    आठहुँ याम को।
    ‘नमन’ करूँ
    पूर्ण करो
    सारे ही
    काम
    को।
    बासुदेव अग्रवाल नमन
    तिनसुकिया